स्कूलों की गड़बड़, झेल रहे बच्चे
सेंटर्स की दूरी का ये है मानक
- गर्ल्स के लिए स्कूल से 5 किलोमीटर दूर - ब्वायज के लिए स्कूल से 10 किलोमीटर दूर - मानक से ज्यादा दूरी ने बढ़ाई बोर्ड परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स की टेंशन - स्कूलों की लापरवाही से स्टूडेंट्स हो रहे परेशान prayagraj@inext.co.inPRAYAGRAJ: कोरोना महामारी के बीच बोर्ड परीक्षा की तैयारियां जारी है। यूपी बोर्ड की ओर से बोर्ड परीक्षा सेंटर्स की पहली संभावित लिस्ट ने परीक्षा में शामिल होने वाले स्टूडेंट्स की टेंशन बढ़ा दी। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है स्कूल से सेंटर की दूरी। कई किलोमीटर दूर सेंटर पड़ने से स्टूडेंट्स के सामने समय से परीक्षा सेंटर तक पहुंचाना टफ टास्क होगा। ऐसे में दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने सेंटर्स बनने का पूरा प्रॉसेस समझा। साथ ही दूरी को लेकर आ रही दिक्कत के कारणों को समझा.् आखिर हर बार सेंटर बनाने में ये दिक्कत कहां से आ रही है।
ऐसे होता है बोर्ड के सेंटर का चयन - बोर्ड के सेंटर का चयन करने के लिए यूपी बोर्ड ने पिछले कुछ सालों से सेंट्रलाइज व्यवस्था बनायी है। - जिसके अनुसार स्कूलों को अपने यहां उपलब्ध सुविधाओं की सूचना बोर्ड की वेबसाइट पर अपलोड करना होता है।- इसके बाद स्कूल प्रिंसिपल को कैंपस में खड़े होकर यूपी बोर्ड के एप पर यूजर आईडी और पासवर्ड के जरिए लॉग इन करना पड़ता है।
- जैसे ही प्रिंसिपल लॉग इन करते है। उसकी लोकेशन बोर्ड के पास गूगल मैप के जरिए पहुंच जाती है। - इसी प्रकार सभी स्कूलों को अपने यहां करना रहता है। ऐसे में बोर्ड के पास सभी स्कूलों की लोकेशन और आस-पास के स्कूलों की दूरी की जानकारी कलेक्ट हो जाती है। - जिसके बाद बोर्ड सेंटर बनाने के लिए मानकों को देखते हुए एक स्कूल से दूसरे स्कूल सेंटर की दूरी निर्धारित मानकों के हिसाब से तय करता है। - ऐप की मदद से कम से कम तीन रास्तों की डिटेल बोर्ड के पास पहुंचती है। - ऐप तीनों रास्तों में सबसे कम दूरी को सलेक्ट करता है। जिसके बाद सेंटर फाइनल होता है। कहां आ रही दिक्कतयूपी बोर्ड के अधिकारियों ने बताया कि इसमें सबसे बड़ी दिक्कत प्रिंसिपल के स्तर से आती है। स्कूल कैंपस में खड़े होकर लोकेशन भेजने के लिए जब प्रिंसिपल से कहा जाता है। तो वह जहां रहते हैं, वहीं से अपने मोबाइल में पड़े यूपी बोर्ड के एप पर यूजर आईडी व पासवर्ड के जरिए लॉग इन कर देते है। जिससे वहां की लोकेशन बोर्ड तक पहुंच जाती है। ऐसे में बोर्ड को मिली लोकेशन के अनुसार ही मानकों के अन्तर्गत निर्धारित दूरी को देखते हुए बोर्ड में मौजूद साफ्टवेयर सेंटर्स का चयन करता है। उदाहरण के लिए शंकरगढ़ का कोई स्कूल है। स्कूल प्रिंसिपल से जब लोकेशन के लिए कहा गया तो वह डीआईओएस आफिस या सिविल लाइंस के आस-पास है। ऐसे में प्रिंसिपल ने वहीं से लोकेशन को अपलोड कर दिया। ऐसे में स्कूल का सेंटर निर्धारित मानक के अनुसार लोकेशन मिलने वाले स्थान से ही उसके आस-पास के स्कूल को सेंटर के रूप में चयन कर लेता है। उन्होंने बताया कि लास्ट इयर बरेली में एक स्कूल का जिले के सभी स्कूलों से दूरी 400 किलोमीटर के करीब आ रही थी। ऐसे में जब उसकी जांच करायी गई, तो पता चला कि लोकेशन बरेली से चार सौ किलोमीटर दूर से अपलोड की गई।
- सेंटर बनाते समय स्कूल के प्रिंसिपल को उनके कैंपस से ही ऐप पर लॉग इन करने का निर्देश है। लेकिन प्रिंसिपल ऐसा नहीं करते है। जिसके कारण ये दिक्कत आ रही है। डीआईओएस को भी प्रिंसिपल को ट्रेनिंग देने का निर्देश है। दिव्यकांत शुक्लसचिव, यूपी बोर्ड