महंगी हो गई स्कूल यूनीफार्म, बढ़ गया पढ़ाई का बजट
प्रयागराज (ब्यूरो)। बढ़ी हुई फीस, एडमिशन शुल्क, कॉपी किताबों के खर्च से बचे तो अप्रैल की रही सही सैलरी बच्चों की स्कूल यूनिफार्म खरीदने में खर्च हो गई। पैरेंट्स की माने तो इस साल स्कूलों ने यूनिफार्म के दाम पर बीस फीसदी तक दाम बढ़ा दिए हैं। मजबूरी में पैरेंट्स को फिक्स्ड रेट पर यूनिफार्म खरीदना पड़ता है। वह भी फिक्स दुकान से। कहीं और गए तो यूनिफार्म मिलना मुश्किल है।
रिजल्ट के साथ थमा दिया जाता है ब्रोशर
स्कूलों का नया सेशन शुरू होते ही पैरेंट्स को रिजल्ट के साथ एक ब्रोशर पकड़ा दिया जाता है। जिसमें कॉपी किताब और ड्रेस खरीदने की दुकान का नाम व पता लिखा रहता है। मजबूरी में पैरेंट्स इन दुकानों पर जाकर स्कूल की ड्रेस खरीदते हैं। कमीशन के खेल में लगभग हर स्कूल की अपनी शॉप फिक्स होती है। अगर अगल बगल की दुकान पर यूनिफार्म मिल भी रही है तो डर के चलते पैरेंट्स वहां से खरीदारी नही करते हैं।
कैसे सैलरी पर डाका डाल रही यूनिफार्म
केस वन- प्रफुल्ल वर्मा, सिविल लाइंस
महीने की इनकम- 35 हजार
बच्चों की संख्या- फिलहाल एक
नए सेशन मे यूनिफार्म की तीन सेट की कीमत- 3200 रुपए
विंटर के दो सेट, ब्लेजर और स्वेटर सहित कीमत- 5000
केस टू- आशीष मेहरा, नैनी
महीने की इनकम- 40 हजार
बच्चों की संख्या- 2
नए सेशन में तीन सेट यूनिफार्म की कुल कीमत- 7 हजार
विंटर के दो सेट की कीमत- 10 हजार
निजी स्कूलों में रेगुलर डे्रस दो सेटर खरीदनी पड़ती है, इसके अलावा हाउस ड्रेस व स्पोट्र्स डे्रस की अलग से खरीद करनी पड़ती है, वीक में दो दिन अलग-अलग तरह की यूनिफार्म पहनकर जाना होता है, इनमें एक सैटरडे और दूसरा स्पोट्र्स एक्टिविटी डे होता है)
बीस फीसदी बढ़ा यूनिफार्म का बजट
हर साल यूनिफार्म के रेट में कुछ न कुछ बढ़ोतरी होती है। इस बार बीस फीसदी तक दाम बढ़े हैं। जो शर्ट चार सौ की थी वह इस बार 430 से 440 रुपए तक बिक रही है। जो स्कर्ट 400 से 500 रुपए की थी वह इस बार 45्र0 से 550 रुपए तक बेची जा रही है। स्वेटर और ब्लेजर के दामों में भी बढ़ोतरी हुई है। शॉप ओनर्स का कहना है कि स्कूल गोइंग बच्चों की फिजिकल ग्रोथ लगातार होती है, इसलिए कोई भी यूनिफार्म एक से डेढ़ साल से अधिक नही चलती है। इसे चेंज करना ही होता है।
फिर भी खरीदना पड़ता है यूनिफार्म
कई स्कूल ऐसे भी हैं जिन्होंने इस बार अपनी स्कूल यूनिफार्म में कुछ बदलाव कर दिया है। इसकी वजह से नई ड्रेस खरीदना मजबूरी हो गई है। कुछ स्कूलों ने शूज के कलर या बेल्ट के बक्कल का डिजाइन बदला है। यहां पर भी पैरेंँट्स को आराम से 400 से 500 रुपए खर्च करना पड़ जाता है। शहर में कुछ दुकाने ऐसी भी हैं जो लगभग सभी स्कूलों की यूनिफार्म सेल करती हैं। लेकिन स्कूलों द्वारा किए जाने बदलाव के डर से पैरेंट्स उनके यहां चाहकर भी सस्ती यूनिफार्म नही खरीद पाते हैं।
पैरेंट्स को अप्रैल माह में स्कूलों नए सेशन के दौरान जरा भी आर्थिक राहत नही मिलती है। पूरी सैलरी केवल फीस, किताब और डे्रस में चली जाती है। अब तो यूनिफार्म के दाामों में भी मनमानी शुरू हो गई है।
राहुल अग्रवाल
आरती केसरवानी
स्कूलों की ओर से दुकानें फिक्स होती हैं। अगर पैरेंट्स को यूनिफार्म लेनी है तो इन्ही दुकानों में जाना पड़ता है। यहां कमीशन का खेल होता है और पैरेंट्स को बाजार दाम से कहीं अधिक पैसे देकर ड्रेस लेनी होती है।
दुर्गा प्रसाद गुप्ता
विजय कुमार गुप्ता, अध्यक्ष, अभिभावक एकता समिति प्रयागराज