हनुमान के दरबार में निशान ही निशान
शनि अमावस्या पर दर्शन- पूजन के बाद बड़ी संख्या में भक्तों ने चढ़ाए निशान
हर गम से दूर सभी ईश्वर आस्था और उमंग में झूमते हुए पहुंचे बड़े हनुमान मंदिर PRAYAGRAJ: कोई नाच रहा तो कोई जयकारा लगा रहा। चेहरे पर न तो काम का तनाव और मन में न तो दुनियादारी की चिंता। सभी के चेहरे पर खुशियां और लबों पर प्रभु का नाम। सिर्फ पुरुष ही नहीं, महिलाएं व बच्चे भी प्रसन्नचितमुद्रा में नजर आए। सभी की आंखों में प्रभु हनुमान जी के दर्शन की तलब झलकती रही। डीजे पर भक्ति गीत व भजन की मीठी धुन से फिजा में आस्था की खुशबू फैलती रही। हम बात कर रहे उन भक्तों की जो निशान चढ़ाने के लिए शनि अमावस्या पर बड़े हनुमान मंदिर आ रहे थे। शनिवार को यहां राम भक्त हनुमान की एक झलक पाने के लिए हजारों भक्तों की भीड़ रही।विजय का प्रतीक है निशान यानी ध्वज
बड़े हनुमान मंदिर में यूं तो शनिवार को वैसे भी भीड़ होती है। इस दिन शनि अमावस्या के होने से भक्तों की संख्या में इजाफा हो गया। मिन्नतें पूरी होने पर खुशी से झूमते हुए तमाम लोग राम भक्त हनुमान जी को निशान चढ़ाए। देवी देवताओं को निशान चढ़ाने की परंपरा सदियों पुरानी है। पुरोहित कहते हैं कि सनातन संस्कृत में मान्यता है कि निशान यानी ध्वजा विजय का प्रतीक होता है। ईश्वर की कृपा से मिन्नतें पूरी होने के बाद लोगों को किसी समस्या पर विजय मिल जाती है। इसी विजय की खुशी में लोग जिस देवी देवता को निशान चढ़ाते हैं। निशान चढ़ाकर वे मिली सफलता यानी विजय का सारा श्रेय वह प्रभु के श्रीचरणों को देते हैं।
ऐसे शनि का प्रभाव होता है कम मान्यता है कि शनिवार को भगवान हनुमान जी के दर्शन से शनि का प्रभाव कम होता है। यही वजह है कि शनिवार को भक्तजनों की भीड़ हनुमान मंदिरों में पूजा अर्चन के लिए बढ़ जाती है। शनि अमावस्या पर तो हनुमान के साथ शनि पूजा का शास्त्रों में विशेष महत्व बताया गया है। कहते हैं कि इस दिन शनि के साथ हनुमान जी की पूजा आराधना का विशेष फल भी प्राप्त होता है। शनि प्रकोप से बचने के लिए शनिवार को हनुमानजी की चालीसा का पाठ करें और शनि देव को तेल का दीप जलाएं। काली तिल भी शनिदेव को अर्पित करें। कहां चले जाते हैं निशान के बांस मंदिरों में चढ़ाए जाने वाले निशान के बांस कहां चले जाते हैं।यह सवाल हर किसी के मन में कभी न कभी जरूर आता होगा।
पुरोहितों से किए गए सवाल में उत्तर मिला कि अब निशान चढ़ाने के बाद बांस का कोई क्या करेगा? मंदिर के आसपास यदि छप्पर आदि के निर्माण होते हैं तो उसमें उपयोग लाए जाते हैं। हालांकि ज्यादातर निशान के बांस को मंदिर के जिम्मेदारों द्वारा बेच दिए जाते हैं। बेचे गए बांस से मिले हुए रुपयो को मंदिर की देखरेख और सुरक्षा में खर्च किया जाता है। इस तरह भक्त की मिन्नत भी पूरी हो जाती है और बांस से मिले हुए रुपये मंदिर में लगने से उसका फल उसे ही मिलता है।