पैदावार जमीन का हर साल कम होता जा रहा हेक्टेयर क्षेत्र इन पर रियल स्टेट वाले बना रहे तमाम प्रोजक्ट 85 से 100 हेक्टेयर में हो रही है इलाहाबादी अमरूद के रूप में प्रसिद्ध सुरखा की खेतीदैनिक जागरण आई-नेक्स्ट से बातचीत में अमरूद बेचने वालों ने बताया मात्र दस प्रतिशत ही रह गई है पैदावारदेश-दुनिया में अपने मिठास के लिए मशहूर इलाहाबादी अमरूद की खुशबू संगमनगरी की फिजाओं से गायब होती नजर आ रही है. इसके पीछे की बड़ी वजह रियल स्टेट मार्केट का कब्जा होना. प्रयागराज और कौशांबी जिले में तीन हजार हेक्टेयर क्षेत्र में अमरूद की खेती होती थी. अब धीरे-धीरे पैदावार जमीन हेक्टयेटर का क्षेत्र कम होता जा रहा है. किसानों को पैदावार जमीन का अच्छा रेट मिलने पर रियल स्टेट को बेचते चले जा रहे हैं. जिसके कारण अब घटकर 24 सौ हेक्टेयर में रह गई है. यही कारण है कि इलाहाबादी अमरूद के रूप में प्रसिद्ध सुरखा की खेती 85-100 और सफेदा व लाल बिहि की खेती 100-110 हेक्टेयर में होती है. दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट से बातचीत में विक्रेताओं ने बताया कि पैदावार कम होने से इस बार अमरूद के दाम चढ़े हैं. यही कारण है कि इस बार अमरूद महंगा बिक रहा है. वहीं इसकी खेती करने वालों ने बताया कि इस बार कीटाणुओं ने फसलों को नुकसान पहुंचाया है.

प्रयागराज (ब्यूरो)। सिविल लाइंस एरिया चर्च चौराहे के पास आधा दर्जन से अधिक फुटपाथ विक्रेताओं ने बताया कि एक दिन में सिर्फ इन एरिया में पांच से सात क्ंिवटल तक अमरूद की डिमांड है। सुरखा सेविया दो सौ, लाल बिहि 220 और सफेदा पचास से साठ रुपये किलो में बिक रहा है। पैदावार कम होने के चलते इस बार इलाहाबादी अमरूद के नाम से जाने जाना वाले शहर में छत्तीसगढ़ से लाये गए अमरूद की बिक्री की जा रही है। यही कारण है कि इस बार छत्तीसगढ़ से जाये गए अमरूद की भरमार देखी जा रही है। मार्केट में इलाहाबादी कुछ ही दुकानों पर अमरूद बिक रहा है।

एक हजार भी नहीं निकल रही पेटी
- 2006 में इलाहाबादी सुरखा अमरूद को जीआई टैग मिला था
- सुरखा अमरूद देखने में होता है सुर्ख लाल और इसका स्वाद भी है बेजोड़
- सुरखा और सफेदा अमरूद की खेती का गढ़ कहे जाने वाला गांव है बाकराबाद
- एक बाग से दस से पंद्रह हजार निकलता था अमरूद की पेटी अब एक हजार भी नहीं निकल रहा पेटी
इस बार मात्र दस से पंद्रह प्रतिशत की पैदावार हुई है। यही कारण है कि अमरूद का रेट हाई है। फिलहाल हम लोग की दुकानों पर जो माल है वह यहीं के हैं और अच्छे क्वालिटी के भी।
नीतिन सोनकर

पिछले दो सालों से फसल अच्छी नहीं होने से कई लोग इस खेती के कारोबार से हट गए हैं। सुरखा इस बार दो सौ जबकि
220 रुपये किलो लाल बिहि बिक रहा है। इन दोनों का स्वाद मिठास से भरा है।
मोहम्मद मेहताब

कुछ दुकानों पर छत्तीसगढ़


का अमरूद बिक रहा है। लेकिन खाने वाले पकड़ लेते हंै। जो सेल पहले हुआ करती थी अब नहीं रह गया। हाईवे किनारे खेती होने वाली कुछ जगहों पर प्लाटिंग हो रही है। बिक्री कम होने से आमदनी भी कम हो गई।
गोलू सोनकर

पिछले दो सालों से अमरूद पर कीटों का प्रकोप है। इसके चलते पैदावार कम होने के साथ आवक भी कम हो गई है। दूसरे राज्यों से अमरूद मंगाना पड़ रहा है।
प्रतीक पांडेय

किसान रियल स्टेट को हाईवे किनारे वाली उपजाऊ जमीनों को बेच चुके हैं। पहले एक बाग से दस हजार से ऊपर पेटी निकल जाती थी। अब एक हजार भी मुश्किल है।
विजय किशोर, उद्यान विशेषक, खुसरोबाग प्रभारी

Posted By: Inextlive