जीएसटी के पुनर्गठन से व्यापारियों को होगी सहूलियत
प्रयागराज (ब्यूरो)। पांच साल बाद भी जीएसटी ऐसा नियम है जो आम व्यापारी के समझ में नहीं आया है। इसमें होने वाले लगातार संशोधन लोगों को भ्रमित कर रहे हैं। मेरी राय में संशोधन करने से पहले व्यापारियों से भी पूछ लेना चाहिए। जीएसटी जैसे कानून के लिए यह जरूरी है।
राजेश केसरवानी, कोषाध्यक्ष, प्रयागराज
व्यापारी सही तरीके से रिटर्न दाखिल करते हैं फिर भी उनको इसका लाभ नहीं मिलता है। उनकी लायबिलिटी बनी रहती है। सरकार उनकी आईटीसी रोक देती है। गलती किसी की भी हो व्यापारी को उसे भुगतना पड़ता है। मेरा मानना है कि जीएसटी के नियमों के सरल बना देना चाहिए।
राजीव कृष्ण श्रीवास्तव बंटी भैया, अध्यक्ष, प्रयागराज जिला/महानगर उद्योग व्यापार मंडल
जीएसटी काउंसिल की बैठक में जो नए टैक्स लगाए गए हैं उनसे केवल महंगाई बढ़ेगी। आम जनता फिर से महंगाई के बोझ से दब जाएगी। इस दिशा में राहत नही मिल रही है। अस्पतालों के कमरों पर जीएसटी लगाना समझ से परे है। सरकार को एक बार फिर सोचना चाहिए।
अनूप वर्मा, महामंत्री, महामंत्री, प्रयागराज जिला/महानगर उद्योग व्यापार मंडल
जीएसटी का सबसे बड़ा ड्राबैक है कि इसमें व्यापारी की कहीं सुनवाई नहीं है। जबकि यह कानून व्यापारियों के हित के लिए बनाया गया था। मौजूदा समय में इसमें व्यापारियों से संशोधन करने से पहले राय भी नही ली जाती है। यह बात हमारी समझ के बाहर है।
अंकित टंडन, टंडन ऊन भंडार चौक
नितिन अग्रहरि, व्यापारी हम टैक्स जमा भी करा देते हैं तब भी नियमों की आड़ में व्यापारियों का शोषण किया जाता है। अगर विश्वास नहीं है तो हमारी फिजिकल इनवाइस सरकार देख ले। आईटीसी को रोकने का क्या मतलब होता है। सभी लायबिलिटी केवल व्यापारियेां के सिर मढ़ दी जाती हैं। आरसीएम भी विचित्र टैक्स प्रक्रिया है। इसे खत्म कर देना चाहिए।
शिव शंकर सिंह, महामंत्री, सिविल लाइंस व्यापार मंडल विभाग को दो लाख करोड़ का टैक्स व्यापारी देते हैं। जिससे अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाया जाता है। फिर भी जब व्यापारियों के हित की बात आती है तो जीएसटी के नियमों की आड़ में उनको नुकसान पहुंचा दिया जाता है। इस नियम को बदलना जरूरी है।
अनु पांडेय, व्यापारी
जीएसटी के पुनर्गठन की जरूरत है। इसमें बदलाव जरूरी है। इतने संशोधन के बाद अब जीएसटी को फिर से लागू करने से ही व्यापारियों का भला होगा। सबसे अहम कि जीएसटी के नियमों में व्यापारियों की राय भी ली जानी चाहिए जो जरूरी है।
विभु अग्रवाल, प्रदेश उपाध्यक्ष, कैट
मनीष कुमार गुप्ता, संयोजक, प्रयागराज व्यापार मंडल हम लोग जितना मुनाफा नहीं कमाते, उतनी फीस तो सीए को दे देते हैं। अब सरकार सेवा पर टैक्स मांगते मांगते फीस पर भी जीएसटी लेने जा रही है। इससे तो आम जनता को काफी नुकसान होगा। व्यापार में मुनाफा कम और नुकसान अधिक होने लगा है।
सौरभ गुप्ता, अध्यक्ष, प्रयाग कम्प्यूटर डीलर वेलफेयर ऐसोसिएशन
जीएसटी एक तकनीकी कानून है। इसे इस तरह से डिजाइन किया जाना चाहिए कि इसे आम व्यापारी भी समझ सके। लेकिन यह इतना जटिल है कि वकील और सीए को भी काफी समय लग जाता है। अगर जरा सी गलती हो गई तो नुकसान व्यापारी को भुगतना पड़ता है।
मनोज कुमार चंदेल, लीगल एडवाइजर इलाहाबाद कम्प्यूटर डीलर वेलफेयर एसोसिएशन
किशोर कुमार अग्रवाल, महामंत्री, इलाहाबाद डिस्ट्रीब्यूटर एसोसिएशन जीएसटी का पुनर्गठन होना चाहिए। पांच साल बीत गए अभी तक ट्रिब्यूनल नही बना है। कहा गया था कि व्यापारियों को रेटिंग दी जाएगी लेकिन वह भी नही किया गया। अपने किसी वादे पर सरकार खरी नही उतरी है। हालांकि जीएसटी का एक सकारात्मक पहलू भी है। लेकिन इससे अधिक नकारात्मक पहलू हैं जिससे व्यापारियों में नाराजगी है।
महेंद्र गोयल, प्रदेश अध्यक्ष, कैट ट्रिब्यूनल समय की मांग है। अगर व्यापारी पर गलत टैक्स लगाया जाता है तो वह विवाद कहां दाखिल करेगा। हाईकोर्ट जाएगा तो वहां समय और पैसा दोनों अधिक लगेगा। एक्ट में प्रावधान होने के बाद भी अभी तक जीएसटी का ट्रिब्यूनल नही बन सका है।
अजय अग्रवाल, महामंत्री कैट प्रयागराज
लखनऊ और प्रयागराज की लड़ाई में ट्रिब्यूनल अटका हुआ है। यूपी में इसकी अधिक आवश्यकता है। व्यापारी आखिर अपनी बात कहां रखे। अंत में होता यही है कि अधिकारी की मनमानी चलती है और व्यापारी को मांगा गया टैक्स चुकाना ही पड़ता है।
मनोज अग्रवाल, अध्यक्ष, कैट प्रयागराज
केके अग्रवाल, अध्यक्ष, इलाहाबाद फर्टिलाइ्रजर एंड सीमेंट एसोसिएशन फाइन की सीमा को कम किया जाना चाहिए। लेट होने पर प्रतिदिन पचास रुपए का फाइन सही नही है। छोटे व्यापारी इसे बर्दाश्त नही कर पाते हैं। जीएसटी में एक यह भी सुधार किया जाना जरूरी है। मनमानी तरीके से फाइन लगाया जाना व्यापारियों के हित में नही है।
अंकित अग्रवाल, व्यापारी जीएसटी की समाधान योजना के व्यापारियों को काफी नुकसान होता है। पहले तो उन्हें दो बार टैक्स देना पड़ता है और फिर उन्हे रिफंड भी नही मिलता। सरकार को इस नियम को शिथिल करना चाहिए। छोटे व्यापारियों को भी टैक्स का रिफंड समय से दिया जाए।
संजय जैन, व्यापारी मान लीजिए दो व्यापारी हैं। ए और बी। दोनों को जीएसटी ने पंजीकृत किया है तो फिर ए की गलती की सजा बी को क्यों दी जाती है। जीएसटी की आईटीसी की नियमावली में यही है। इसमे सुधार नही होने से व्यापारियों को नुकसान हो रहा है। कैसिनों को जीएसटी में शामिल करने की बात थी लेकिन इसे फिर से विचार में डाल दिया गया। उल्टे काउंसिल की बैठक में नए टैक्स लगा दिए गए।
सुशील खरबंदा, अध्यक्ष, सिविल लाइंस व्यापार मंडल गो ग्रीन में इ वेस्ट पर पालिसी बनी है। अब जीएसटी के तहत इसमें पांच फीसदी टैक्स लगा दिया गया है। अब कचरे के निस्तारण में भी टैक्स लेंगे। फिर लोग इससे बचने लगेंगे। सफाई अभियान से जुड़े इस कार्य में टैक्स नही लगाया जाना चाहिए था बल्कि इसे प्रमोट करना था।
शेख दावर, सचिव, सिविल लाइंस व्यापार मंडल जीएसटी में व्यापारियों को भी स्थान दिया जाना चाहिए। सरकार को केवल टैक्स लेने से मतलब नही होना चाहिए बल्कि व्यापारियों की सहूलियत पर भी ध्यान देना जरूरी है। ऐसा नही होने स व्यापारी अब जीएसटी में दिलचस्पी नही ले रहे हैं। बस वह टैक्स भरने का साधन रह गए हैं।
आशीष टंडन, व्यापारी चौक जीएसटी काउंसिल की बैठक में फिर से लोवर मिडिल क्लास पर महंगाई का बोझ बढ़ा दिया गया है। जिस तरह से नए टैक्स लगाए जा रहे हैं वह जनता के लिए सही नही है। सरकार को और राहत देनी चाहिए। इतना टैक्स आने के बाद भी सरकार की इच्छा कम नही हो रही है।
रिषभ टंडन, व्यापारी अगर विक्रेता ने रिटर्न नहीं भरा और जानकारी अपलोड नही की तो क्रेता को अधिक टैक्स भरना पड़ता है। इससे उसको नुकसान होता है। ऐसे नियमों में संशोधन की दरकार है। इसकी मांग भी की जा चुकी है लेकिन सरकार ध्यान नही दे रही है।
अभिषेक केसरवानी, टैक्स कंसल्टेंट जीएसटी के नियमों में काफी पेचीदगी है। व्यापारी इसमें उलझकर रह गया है। उसे सीए और वकील पर निर्भर रहना पड़ता है। जबकि कानून ऐसा होना चाहिए कि व्यापारी इसे समझ सके। क्योंकि कानून भी उन्ही के लिए है। इसे बिल्कुल सरल और स्पष्ट बनाना होगा।
मो। नफीस, ओनर, ईट आन बिरयानी