गांधी के स्वराज में प्रकृति का आदरभाव केंद्र में था: आनंदी
प्रयागराज ब्यूरो । गांधी को वही समझ सकता है जिनके पास जीवन दृष्टि है। गांधी जी का शब्द स्वराज था विकास नहीं वे विकास में सम्यक विकास के समर्थक थे। ये बातें गांधी विचार एवं शांति अध्ययन संस्थान में जल साक्षरता एवं जागरूकता विषय पर तीन दिवसीय कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए डॉ कृष्ण स्वरूप आनन्दी ने कही। संयोजक एवं संस्थान के निदेशक प्रो संतोष भदौरिया ने स्वागत करते हुए कार्यशाला की प्रस्तावना रखी। डॉ आनन्दी ने आज के समय में गांधी की आवश्यकता और उनकी दृष्टि में जल, जंगल, जमीन और पानी का क्या महत्व है उस पर विस्तार से चर्चा की। गांधी के चरित्र को जीवन में उतारें
व्याख्यान की अगली कड़ी में उद्घाटन सत्र के विशिष्ट अतिथि प्रो एके शरण ने कहा कि गांधी जी के चरित्र उनकी कर्मठता उनके विचारों और कार्यक्रमों को जीवन में उतारने की आवश्यकता है। बताया कि हमारी सभ्यता का विकास ही जल के साथ हुआ है। जहाँ जल था मनुष्यों ने वहीं रहन शुरू किया। जल के लिए कई युद्ध भी हुए और आने वाले समय में अगर कोई युद्ध हुआ तो उसका सम्बन्ध जल से ही होगा। अंत में उन्होंने जल संरक्षण के तीन सूत्र दिए पहला इस तरह के विषयों को सिर्फ कार्यशालाओं तक सीमित न रखें, दूसरा अपनी आवश्यकता के अनुसार जल का उपयोग करें। तीसरा ऐसी संस्थाओं में अपना योगदान दे जो मूलभूत समस्याओं को उठती हैं। रंगकर्मी प्रवीण शेखर ने जल,जीवन और नाटक के संबंधों पर विस्तार से अपनी बात रखी। बुन्देलखंड के वाटरमैन डॉ संजय सिंह ने भारत में जल साक्षरता पर ऑनलाइन बातचीत की। शोधार्थियों को जल और भोपाल एक्सप्रेस फिल्म की क्लिप दिखाई गई। जिस को आधार बनाकर डॉ। धनंजय चोपड़ा ने गम्भीर तर्कों के साथ अपनी बात को रखा। अंत में अनुपम मिश्र की किताब आज भी खरे हैं तालाब पर डॉ दीनानाथ मौर्य और शोधार्थियों ने चर्चा की। संचालन डॉ तोषी आनंद ने किया और अंत में धन्यवाद ज्ञापन डॉ सुरेंद्र कुमार ने किया। तकनीकी सहयोग हरिओम कुमार का रहा। इसमें बड़ी संख्या में प्रतिभागी शोधार्थी एवं छात्र छात्राएं उपस्थित रहे।