बेहतरीन उत्पाद पर केंद्रित हो शोध: प्रो. पांडेय
प्रयागराज (ब्यूरो)। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के वनस्पति विज्ञान विभाग में शुक्रवार को भारतीय वनस्पति सोसायटी के सहयोग से प्रो। एसएन चतुर्वेदी संस्मरण व्याख्यान का आयोजन किया गया। इसमें मानसरोवर ग्लोबल यूनिवर्सिटी भोपाल के प्रति-कुलाधिपति और दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डॉ। अरूण कुमार पांडेय ने कुकरबिटेसी की विविधता और वंशवृक्ष के बारे में जानकारी दी। प्रो। एसएम प्रसाद ने स्वागत भाषण दिया। विभागाध्यक्ष प्रो। सत्यनारायण ने मुख्य वक्ता को साइटेशन अवार्ड दिया तो प्रो। डीके चौहान ने मेडल पहनाकर सम्मानित किया। व्खायान का विषय 'डायवर्सिटी, फालोगेनी एवं डोमेस्टीकेशन आफ कुकरबिटेसीÓ रहा।
11 हजार साल पुराने हैं कुकरबिटेसी वंश के पौध
प्रो। अरूण कुमार पांडेय ने पूरे विश्व में फैले कुकरबिटेसी की विभिन्न प्रजातियों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि कुकरबिटेसी वंश के पौधे करीब 11000 साल पुराने हैं। भारत में कुकरबिटेसी वंश जैसे कि खीरा, कद्दू, तरबूज, परवल, खरबूजे आदि की 94 प्रजातियां पाईं जाती हैं। कुछ वन्य प्रजातियां अपने प्राकृतिक वातारण में अधिक फलती-फूलती हैं। यदि उन्हें कहीं और उगाया जाता है तो उनकी उत्पादकता में नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वर्तमान में इस दिशा में काफी शोध कार्य किए जा रहे हैं ताकि पौधों को अन्य पर्यावरणीय दशाओं में भी उगाया जा सके। उन्होंने कहा कि नए शोध करने के दौरान शोधार्थी को ध्यान रखना चाहिए कि शोध के उत्पाद बेहतरीन हों जिससे समाज को अधिक फायदा मिल सके। शोधकार्य केवल शोधपत्र प्रकाशित करने तक सीमित नहीं रखा जाए। डॉ। श्वेता शेखर ने धन्यवाद ज्ञापित किया। संचालन डॉ। हरमंजीत कौर ने किया। प्रो। संजय मिश्र, प्रो। सोनाली, डॉ। प्रतीक श्रीवास्तव, डॉ। अश्वनी कुमार, डॉ। वैभव श्रीवास्तव और प्रो। मनोज कुमार सिंह मौजूद रहे।