मरीज के ठीक होने के बाद आती है रिपोर्ट
प्रयागराज (ब्यूरो)। बता दें कि कोरोना की जांच तो मेडिकल कॉलेंज की माइक्रोबायलाजी लैब में हो जाती लेकिन इसके ओमीक्रोन वैरिएंट की पुश्टि के लिए इसे लखनऊ केजीएमसी भेजा जा रहा है। वहां से यह सैंपल बंग्लुरु की लैब में भेजे जोत हैं। वहां से जांच रिपोर्ट आने में 15 से 20 दिन का समय लग जाता है। तब तक संक्रमित ठीक होकर डिस्चार्ज भी हो जाता है। क्योंकि कोरोना के इलाज की आइसोलेशन पीरियड अधिकतम 14 दिन माना गया है। इस दौरान मरीज पूरी तरह से संक्रमण मुक्त हो जाता है।देश मेें कहां होती है जीनोम सिक्वेंसिंगनई दिल्ली, हैदराबाद, भुवनेश्वर, बंग्लुरु, पंश्चिम बंगाल, पुणे।क्या है जीनोम सिक्वेंसिंग
जीनोम सिक्वेंसिंग एक तरह से किसी वायरस का बायोडाटा होता है। कोई वायरस कैसा है और किस तरह से दिखता है। इसकी जानकारी जीनोम सिक्वेंसिंग के जरिए मिल जाती है। इसी वायरस के विशाल समूह को जीनोम कहा जाता है। इससे पता चलता है कि कौन सा वैरिएंट मरीज के भीतर मौजूद है। जीनोम के भीतर अल्फाबेटिकल बदलाव के आधार पर ही नए स्ट्रेन का पता लगाया जाता है। इसके जरिए वायरस की वैक्सीन बनाने की फार्मूला भी पता चलता है। किसका भेजा जाता है सैंपल
बताया जाता है कि जीनोम सिक्वेसिंग की प्रक्रिया काफी महंगी है। एक सैंपल की जांच होने में 5 से 6 हजार रुपए का खर्च होता है। यही कारण है कि सभी का सैंपल नही भेजा जाता है। अभी तक केजीएमसी में महज 15 सैंपल ही जांच के लिए भेजे गए है और अभी तक जितनी रिपोर्ट आई है उसमें एक भी ओमिक्रॉन पाजिटिव नही मिला है। जानकारी के मुताबिक जिस मरीज की कोरोना रिपोर्ट की सीटी वैल्यू वीक होती है उनका सैंपल जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए भेज दिया जाता है।आरएनए से बना है कोरोना वायरसबता दें कि कोरोना वायरस आरएनए से बना है। जीनोम सिक्वेंसिंग वो तकनीक है, जिससे इसी आरएनए की जेनेटिक जानकारी मिलती है। लैब में कंप्यूटर के जरिए उसकी आनुवंशिक संरचना का पता लगाते हैं। इससे उसका जेनेटिक कोड निकाला जाता हैं। हमारी कोशिकाओं के भीतर जेनेटिक मटेरियल होता है। इसे डीएनए व आरएनए कहा जाता है। यह भी बता दें कि आरएनए से बना वायरस तेजी से अपना रूप बदलता है और धीरे धीरे यह कमजोर होता जाता है। यही कारण है कि माना जा रहा है कि ओमिक्रॉन वायरस से कोरोना के डर का अंत हो सकता है।
यहां से सैंपल एकत्र करके लखनऊ केजीएमसी भेजे जाते हैं। वहां से वह जांच के लिए बंग्लुरु जाते हैं। इस प्रक्रिया में देर हो जाती है और रिपोर्ट 15 से 20 दिन में आती है। इस बीच मरीज का इलाज का पीरियड पूरा हो जाता है।प्रो। एसपी सिंह, प्रिंसिपल, एमएलएन मेडिकल कॉलेज प्रयागराज