मलाल है जीएसटी से मर्माहत है व्यापार
कागज कम्प्लीट करें व्यापारी या बिजनेस पर दें ध्यान?सात साल से जीएसटी का कोरम पूरा करने में व्यापारी परेशान प्रभावित हो रहा व्यापारदैनिक जागरण आईनेक्स्ट से शहर के व्यापारियों ने जीएसटी को लेकर बयां किया दर्द
प्रयागराज (ब्यूरो)। गुड्स सर्विस टैक्स यानी जीएसटी को लागू हुए आज सात साल का वक्त बीत गया। इन सात सालों में इसे लेकर जिले के काफी परेशान हैं। इसमें कागजात कम्प्लीट करने का प्रेशर व्यापारी पूरी तरह व्यापार पर फोकस नहीं कर पा रहे। एक छोटी सी चूक व्यापारियों के लिए मुसीबत बन जा रही है। ऐसे में व्यापारी ग्राहक देखें और व्यापार करें कि जीएसटी के नियमों की शर्तों को पूरा करें। सात वर्षों में जीएसटी को लेकर जिले के व्यापारी खुद को परेशान बता रहे हैं। फिर वह ज्वैलर्स हों या फिर कपड़ा और इलेक्ट्रानिक्स सामानों के बिजनेस मैन। सभी का दर्द एक जैसा ही सोमवार को सामने आया।
खोखला साबित हो रहा दावा
शहर के व्यापारी कहते हैं कि पिछले सात सालों से जीएसटी को लेकर व्यापारी परेशान हैं। जीएसटी एक जुलाई 2017 में लागू हुई। इसे लागू करने के पूर्व सरकार ने वन नेशन वन टैक्स पर बात कर रही थी। मगर आज इसे लागू करने के बाद यह दावा खोखला साबित हो रहा है। जीएसटी की आधार शिला सूचनाओं पर आधारित तथा स्वकर निर्धारण पर आधारित है। पिछले सात वर्षों में इस जीएसटी प्रणाली में कई सुधार व बदलाव भी किए गए हैं। पर अभी भी कई तरह के सुधार की जरूरत है। व्यापारी नेता कहते हैं कि इससे नए व छोटे व्यापारियों का व्यापार प्रभावित हो रहा है। यदि जीएसटी मैनूफैक्चरिंग व सर्विस पर लगाया जाय तो छोटे व्यापारियों को थोड़ी राहत मिल सकती है। कागज पूरा करने में इन व्यापारियों का लगने वाला वक्त वह बिजनेस पर लगाएंगे। इससे उनका व्यापार बढऩे के साथ सरकार का टैक्स भी कई गुना बढ़ जाएगा। क्योंकि जितना व्यापार होगा उतना टैक्स सरकार को मिलेगा।
केंद्र सरकार ऑनलाइन पेमेंट को बढ़ावा दे रही है। आज हर चीज ईएमआई पर मिल रही है। मगर सोने व चांदी के आभूषण की खरीदारी में ईएमआई सुविधा नहीं दी जाती। ज्वैलरी खरी के लिए बैकिंग नियमों के बदलाव की जरूरत है। जीएसटी के लागू होने से आज गरीब पबका इस इस मार्केट से दूर हो गया है। आज जीएसटी को लगे सात साल हो गए। तब से आज तक ज्वैलर्स परेशान हैं।
दिनेश सिंह, जिला अध्यक्ष इंडियन बुलियन एण्ड ज्वैलर्स एसोसिएशन
जीएसटी यानी गुड्स सर्विस टैक्स के नियमों से छोटे व मीडियम क्लास के व्यापारी पिछले सात सालों से परेशान हैं। सरकार का वादा था वन नेशन व टैक्स का, मगर इसका पालन नहीं हो रहा। अप्रैल माह में व्यापारियों ने सरकार को दो सौ दस हजार करोड़ टैक्स दिया। यह जीएसटी टैक्स यदि मैनूफैक्चरिंग व सर्विस पर लगे तो छोटे व्यापारी ज्यादा समय व्यापार देंगे और टैक्स भी बढ़ जाएगा।
राजीव कृष्ण श्रीवास्तव, संरक्षक/अध्यक्ष जिला महानगर उद्योग व्यापार मंडल
अनूप वर्मा, जिला अध्यक्ष महानगर उद्योग व्यापार मंडल
यह जीएसटी मेरे हिसाब से आज तक पूरी तरह न तो व्यापारियों को समझ आई और न ही सीए को। बस किसी तरह लोग काम चला रहे हैं। सरकार को नियमों में बदलाव करके रूल्स को सरल करना चाहिए। आज व्यापारी द्वारा खरीदे गए सामान पर जीएसटी मांगते ही ग्राहक कतराने लगते हैं। आम गरीब तबके का ग्राहक बमुश्किल कुछ खरीद पाता है। वह जीएसटी कहां से देगा। व्यापारियों के साथ इससे आम लोग भी परेशान हैं।
अभिषेक केशरवानी, वरिष्ठ उपाध्यक्ष जिला महानगर उद्योग व्यापार मंडल
बेरोजगारी के इस दौर में कल तक युवा परिवार व रिश्तेदारों से मदद लेकर कोई न कोई रोजगार कर लेते थे। आज किसी भी व्यापार के लिए जीएसटी नंबर का होना कम्पल्सरी है। नए व्यापारी जब नंबर लेंगे तो जीएसटी ग्राहक से वसूलेंगे तो कस्टमर नए व्यापारियों के पास क्यों आएंगे। सरकार बेरोजगारों को व्यापार करने के लिए तमाम प्रोत्साहन दे रही है। मगर जीएसटी पर किसी तरह की छूट नहीं देती। यह एक बड़ी समस्या है।
उज्ज्वल टण्डन, व्यापारी/समाजसेवी चौक