घटा दी दिहाड़ी, फिर भी हाथ खाली
- काम की तलाश में रोज घर से बाहर निकल रहे मिस्त्री- लेबर, फिर भी नहीं मिल रहा काम
- आर्थिक संकट से जूझ रहे दिहाड़ी मजदूर - प्रयागराज शहर के मजदूर अड्डे भी अब मजबूर हो गए हैं। जो अड्डे सालों से इन्हें दो वक्त की रोटी दिला रहे थे। अब दो महीने से इनकी रोजी-रोटी का जुगाड़ तक नहीं कर पा रहे। शहर के तीन प्रमुख मजदूर अड्डे कंधईपुर मोड़, अल्लापुर लेबर चौराहा और तेलियरगंज चौराहे पर है। जहां मजदूर काम की तलाश में रोज जमा तो होते हैं। लेकिन उन्हें यहां काम नहीं मिलता। घंटों इंतजार करने के बाद वह अपने घरों को लौट जाते हैं। मजदूरी का रेट कम करने के बावजूद काम नहीं मिल रहा है। दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट ने इन मजदूरों से बात की तो उन्होंने अपना दर्द बयां किया। मिलना तो दूर कोई पूछ भी नहीं रहासुबह लोग अपने जरूरी कामों के लिए निकल रहे हैं कोई दूध की डोलची लिए जा रहा है तो कोई सिर्फ टहलने निकल रहे है। ऐसे में इस चौराहों पर राजेश मिस्त्री के साथ अलग-अलग तीन से चार जगहों पर कुछ मजदूर काम की तलाश में बैठे हैं। मिस्त्री राजेश ने बताया कि यहां इस चौराहे से बीते एक हफ्ते से किसी को कोई काम नहीं मिल रहा है। रोजाना आते हैं और 10 बजे तक इंतजार करते रहते हैं। लेकिन काम नहीं मिल रहा है। रोजी-रोटी चलाने के लिए कर्जदार हो गए हैं। पहले यहां आने के आधे घंटे के अंदर ही सभी मजदूरों को काम मिल जाता था कभी 8 बजे तक भी इंतजार नहीं करना पड़ा लेकिन अब 10 बजे तक भी काम नहीं मिल रहा है।
आते ऑटो से हैं जाते पैदल हैकाम की तलाश में बैठे लेबर दीपक ने बताया कि मिस्त्री से लेकर लेबर तक ने अपना दिहाड़ी घटा दिया है फिर भी काम नहीं मिल रहा है। आज स्थिति यह है कि इस कड़ाके की धूप में घंटों काम के इंतजार में पेड़ की छांव के नीचे बैठना पड़ता है। कभी कबार इक्का-दुक्का मजदूरों को काम मिल जाता है तो ठीक, नहीं तो अधिकतर मजदूरों के पास काम नहीं है। मजदूरों के पास जमा पूंजी तो होती नहीं है। इसलिए रोटी चलाने को लगभग सभी मजदूर कर्जदार हो गए हैं। यह स्थिति रही तो हालात बहुत खराब होने वाले हैं। यहां हम लोग करीब 3 घंटे रोजाना खड़े होकर व बैठकर समय बिताते हैं। घर पहुंचने पर बच्चे वह पत्नी इस आस में रहते हैं कि आज दो पैसा आएगा तो घर पर खाना बनेगा। लेकिन रोजाना निराश होकर ही घर वापस जाना पड़ता है। नौबत तो यह आ जाती है कि आते वक्त तो ऑटो में बैठ कर आ जाते हैं। लेकिन जाते वक्त पैसा व काम न मिलने पर पैदल ही सफर तय करना पड़ता है।
इंतजार में ही बीत जाता है दिन यहां सड़क किनारे फुटपाथ पर बंद दुकानों के सामने बैठे कई मजदूर दिन भर काम के इंतजार में बैठे रहते हैं। मिस्त्री संजय बताते हैं कि पिछले एक महीने से तो काम मिला नहीं है। किसी एकाध मजदूर को काम मिल गया हो तो जानकारी नहीं। पहले कभी आधा घंटा से अधिक इंतजार नहीं करना पड़ा। अब यहां सिर्फ इंतजार करते हैं। सीधे कहे तो अब काम नहीं है। लेकिन हाजिरी लगाने आते हैं और दो ढाई घंटे इंतजार के बाद घर लौट जाते हैं। रोजाना घर से भाड़ा लेकर आते हैं वह भी खर्च हो जाता है। ऐसी स्थिति में अगर काम न मिले तो घर का खर्च चलाना मुश्किल हो जाता है। अपना तो भूखे रह कर समय कट जाता है लेकिन बच्चों का काटना बड़ा मुश्किल होता है।काम न मिलने पर मंडी में उठाना पड़ता है बोरा
गाड़ी रुकते ही आस होता है कि काश कोई काम देने को पूछेगा। लेकिन ऐसा भी दिन भर में नहीं होता है। यह कहना लेबर ननका का। बताया कि पहले खड़े होते ही काम करवाने वालों की भीड़ जुट जाती थी। रेट तो कोई पूछता ही नहीं था। क्योंकि मजदूर मिल ही नहीं पाते थे। लेकिन अब कोई मोटरसाइकिल या कार वाले रुककर काम देने की बात नहीं करते। घर पर बच्चे दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहे हैं। सुबह काम पर जब घर से निकलते हैं तो बच्चे एक ही चीज बोलते हैं शाम को पापा काम से लौट आएगा तो मेरे लिए कुछ खाने को लेते आइएगा। इस समय मजदूर का दर्द बहुत कम ही लोग समझ पाएंगे। क्योंकि रोज कमाने खाने वालों की जिंदगी लाले पड़े हुए।मिस्त्री राजू ने बताया कि पहले सात सौ और आठ सौ से नीचे मजदूरी नहीं लेते थे। लेकिन अब चार सौ भी नहीं मिल पा रहा है। अब सौ भी नहीं मिल पा रहा है। जबकि चार सौ रुपये लेबर भी बड़ी मुश्किल से लेते थे। उनका भी चार्ज पांच सौ रुपये हुआ करता था। अब वह तीन सौ रुपये में काम करने को तैयार हैं। काम करना तो दूर की बात है कोई पूछने तक नहीं आता है। ज्यादातर मजदूर काम न मिलने पर मंडी की और चले जाते हैं। क्योंकि वहां पर बोरा को उतारना वह चढ़ाने की दिहाड़ी मिल जाती है। जबकि यह काम राजमिस्त्री के लिए मुश्किल होता है।
गाड़ी रूकते ही जग जाती है आस