रामभरोसे का इलाज अब भगवान भरोसे
प्रयागराज (ब्यूरो)। एमडीआई अस्पताल में आयुष्मान कार्ड वाले मरीजों को आसानी से इलाज नहीं मिल रहा है। कुछ ऐसा ही बांदा के रहने वाले रामभरोसे के साथ हुआ। उनकी आंख में दर्द की शिकायत है। पूछने पर बताया कि आंखों से खून आ रहा है। एसआरएन अस्पताल से यहां रिफर किया गया है। एमडीआई में डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने कहा कि 26 हजार रुपए कीमत के इंजेक्शन लगाए जाने हैं। रामभरोसे कहते हैं कि मेरे पास इतना पैसा नही है। आयुष्मान कार्ड दिखाया तो भी इलाज करने से मना कर दिया। अब इन आंखों का क्या करूं। समय से इलाज नही मिला तो अंधा होने का खतरा मंडरा रहा है। बोले, आठ हजार की लिमिट फिक्स
जब रिपोर्टर ने इस मामले में हॉस्पिटल के आयुष्मान कार्ड हेल्प डेस्क से पूछा तो कर्मचारी ने बताया कि सरकार की ओर से पांच लाख रुपए इलाज की सुविधा कार्ड पर दी गई है। इसमें तमाम बीमारियों के इलाज की रकम का क्राइटेरिया दिया गया है। आंख के इलाज में मोतियाबिंद का फेको विधि से इलाज का आठ हजार रुपए लिमिट दी गई है। इससे अधिक पैसा खर्च नही किया जा सकता है। इस स्थिति में रामभरोसे का इलाज अधर में लटक गया है। जानकारी के मुताबिक इस नियम के चलते रोजाना कई मरीजों को निराश होकर वापस लौटना पड़ता है। मांगने पर भी नही मिली व्हील चेयरअस्पताल में ही व्हील चेयर और स्ट्रेचर मौजूद रही, उसे जंजीर से बांधकर रखा गया था। रिपोर्टर ने मरीज का परिजन बनकर कर्मचारियों से व्हील चेयर मांगा। उस समय दोपहर में 1.40 बजे हुए थे। ओपीडी बंद होने में बीस मिनट बाकी था लेकिन कर्मचारियों ने व्हील चेयर देने से साफ मना कर दिया। बोले वार्ड में जाकर ले लीजिए। अब हम लोग के जाने का समय हो गया है। रिपोर्टर ने जब बीस मिनट बाकी होने की बात कही, तो भी उन्होंने एक ही जवाब दिया। एक बजे कुर्सी से उठ गए डॉक्टरवैसे तो अस्पताल बंद होने का समय दोपहर दो बजे का है लेकिन ओपीडी से डॉक्टर एक बजे ही नदारद हो गए थे। कुछ मरीज इंतजार में थे, पूछने पर बताया गया कि मरीज नही थे इसलिए डॉक्टर साहब निकल गए हैं। हालांकि अन्य चैंबर में मरीजों की आंखों की जांच का क्रम चल रहा था। दवाईयों का काउंटर भी खुला था। कौडि़हार से आई सुरेखा ने बताया कि वह डॉक्टर का इंतजार कर रही हैं। फिर भी लोग बाजार से खरीदते हैं लेंस
राजरूपपुर के रहने वाले परमवीर सिंह के चाचा का दो दिन बाद मोतियाबिंद का आपरेशन होना है। उन्होंने बताया कि हॉस्पिटल से लेंस देने की बात कही गई है। लेकिन मार्केट से आए एक बंदे ने कहा कि बाजार में बिकने वाले लेंस की क्वालिटी ज्यादा अच्छी होती है। जब उन्होंने इस बारे में डॉक्टर से बात की तो उन्होंने कहा कि यह सब लोग मरीजों का बरगलाते हैं। जबकि अस्पताल का लेंस बेहतर है। आप इसे ही लगवाइए। परमवीर ने अस्प्ताल प्रशासन से ऐसे बाहरी लोगों के अस्पताल में प्रवेश पर रोक लगाने की मांग की है।