मिट्टी के चूल्हे पर बना प्रसाद खरना प्रसाद
प्रयागराज (ब्यूरो)। मिट्टी का चूल्हा, वैसे तो गुजरे जमाने की बात हो गयी है लेकिन इसका इस्तेमाल कुंभ के दौरान कल्पवास के लिए आने वाले श्रद्धालु भी करते हैं। गैस की सप्लाई मेला क्षेत्र में शुरू हो जाने के बाद से इसका दिखना कमजोर पडऩे लगा है। लेकिन, छठ पर्व ने इसकी उपयोगिता फिर से खड़ी कर दी है। डाला छठ का व्रत रखने वाली महिलाएं मंगलवार यानी नहाय खाय के दिन से ही मिट्टी के चूल्हे का इस्तेमाल कर रही हैं। बुधवार को खरना प्रसाद भी इसी चूल्हे पर तैयार हुआ और छठ पूजा का प्रसाद भी इसी चूल्हे पर तैयार किया गया। ज्यादातर महिलाओं से इसे घर पर ही तैयार किया था। वैसे यह मार्केट में भी उपलब्ध था। सिर्फ मिट्टी का चूल्हा इस्तेमाल किये जाने का कारण इसका इसकी शुद्धता है और इसमें लकड़ी का ही इस्तेमाल किया गया। यह भी शुद्धता के लिए बेहद जरूरी मानी जाती है।
सभी करते हैं सहयोग
महेवा स्थित पारस कुंज अपार्टमेंट में रहने वाली मैत्रेयी इस बार अपने परिवार के सदस्यों के बीच नहीं पहुंच पायी हैं। वह बताती हैं कि छठ का व्रत तो परिवार की एक ही महिला रखती है लेकिन वह पूरे परिवार को साथ लेकर चलती है। वह परिवार के सभी सदस्यों के लिए डाला तैयार करती है। इसमें परिवार के सभी सदस्य अपने तरीके से मदद करते हैं। छठ के मौके पर पूरे परिवार के इकट्ठा होने का राज भी उन्होंने बयां किया। मैत्री बताती हैं कि घर के हर सदस्य का डाला अलग होने के चलते यह भारी भरकम हो जाता है। व्रत रखने वाली महिला को पूजा के लिए तैयार हुए सम्पूर्ण प्रसाद तो उस स्थान तक ले जाना होता है जहां वह अघ्र्य देती है। यह वह अकेले नहीं कर सकती, इसलिए परिवार के पुरुष और बच्चे इसमें सहयोग करते हैं।
मांगती हैं खरना प्रसाद
मैत्री बताती हैं कि कुछ महिलाएं ऐसी भी होती हैं जो व्रत तो रखती हैं लेकिन पूजन में शामिल नहीं हो पातीं। ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि कुछ परिवार में एक ही महिला के व्रत रखने की परंपरा होती है। यानी परिवार में पांच महिलाएं हैं तो एक व्रत रखेगी और बाकी चार उसका सहयोग करेंगी। संयोग से वह महिला उस स्थान पर नहीं है जहां छठ का व्रत हो रहा है तो वह जहां है वहीं व्रत रखेगी। वह खरना में इस्तेमाल होने वाली गुड़ की खीर और देशी घी की रोटी बनाएगी लेकिन उसे प्रसाद में तभी ग्रहण करेगी जब उसके आसपास रहने वाली महिला जिसने व्रत रखा हो से प्रसाद मांग कर ले आएगी।
मूलरूप से बलिया की रहने वाली नीरज सिंह न्यू कैंट एरिया में रहती हैं। उनके पति फौज में हैं और वर्तमान में राजस्थान में उनकी पोस्टिंग है। वह बताती हैं कि डाला छठ का व्रत रखने की परंपरा उनके परिवार में दादी सास के जमाने से चली आ रही है। उनके परिवार की मान्यता है कि परिवार की सभी महिलाएं व्रत रख सकती हैं। वह बताती हैं कि पति अभिषेक सिंह को इस बार छुट्टी नहीं मिली तो वह घर नहीं आ सके हैं। इस बार पति और बच्चों के लिए डाला तैयार किया है। अघ्र्य कहां देंगी सवाल के जवाब में उनका कहना था कि इसमें आर्मी का पूरा सहयोग मिलता है। संगम तट पर आर्मी परिवारों के लिए अलग से घाट तैयार किया जाता है। आर्मी की तरफ से महिलाओं को वहां आने-जाने के लिए वाहन मिलता है। इसी से वह वहां जाती हैं। वह बताती हैं कि न्यू कैंट में उनकी जानने वाली करीब बीस से अधिक महिलाएं छठ का व्रत रखने जा रही हैं। सभी एक दूसरे का पूरा सहयोग करती हैं।
पड़ोसी भी करते हैं मदद
न्यू कैंट एरिया की ही रहने वाली रीना सिंह मूल रूप से बक्सर बिहार की रहने वाली हैं। उनके पति संजय की पोस्टिंग जैसलमेर में है। उनके दो बच्चे एक १७ और दूसरा १४ साल का है। सबके लिए तैयार डाला घाट तक लेकर जाने में दिक्कत नहीं होती? इसके जवाब में वह कहती हैं कि यहां तो अड़ोस पड़ोस के लोग भी मदद करते हैं। सभी एक दूसरे के यहां प्रसाद ग्रहण करने के लिए पहुंचते हैं। व्रत न रखने के बाद भी वह छठ व्रत के सभी नियमों का पालन करते हैं। इससे कभी कोई दिक्कत नहीं होती। आजकल इंटरनेट का जमाना है तो पति से भी वीडियो कॉल पर बात हो जाती है। आर्मी परिवार भी इसमें सहयोग करता है तो कोई दिक्कत होती ही नहीं।
बजने लगे छठी के गीत
बुधवार को खरना के बाद प्रसाद तैयार होने का दिन होने के चलते घरों में छठी मइया के गीत सुनायी देने लगे। महिलाएं प्रसाद तैयार करते हुए इस गीत को खुद गा रही थीं तो कुछ स्थानों पर छठ के मौके पर लांच किये गये गीत भी बजते रहे। संगम तट पर पूर्वांचल छठ पूजा समिति के पंडाला में भगवान सूर्य की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद यहां भी छठ के गीत सुनायी देने लगी। बलुआघाट में भी छठ पर्व को लेकर पूरी तैयारी दिखी।
छठ में घर में तैयार किये जाने वाले प्रसाद के आलावा सीजनल फल की भी खूब डिमांड होती है। ज्यादातर यह वे फल होते हैं जो ज्यादा डिमांड होने पर ही मंगवाये जाते हैं। इसमें सबसे ऊपर है गन्ना। गन्ना की छावनी बनायी जाती है। इसके चलते गन्ने का भाव बेहद हाई रहा। इसे ४० रुपये प्रति पीस की दर से बेचा गया। इसके बाद नंबर आता है केले की घार का। चूंकि प्रसाद में इसे वितरित किया जाता है तो महिलाएं पूरी घार ही खरीदकर ले जाती हैं। कच्चे केले की पूरी घार बुधवार को पांच सौ से लेकर १५०० तक में बिकी। छठ पूजा में इस्तेमाल होने वाला स्पेशल फल घाघरा ४० रुपये प्रति पीस की दर से बिका। नारंगी भी फल मार्केट में अटी पटी दिखी। इसे पांच रुपये प्रति पीस की दर से बेचा जा रहा था। इसके अलावा प्रत्येक डाठा में आंवला, शरीफा, इमली, बंडा, सुतनी, मुसम्मी, शकरकंद, सिंघाड़ा भी रखा जाता है। इसके चलते इसकी मार्केट भी हाई रही। पुरुष भी रखते हैं व्रत
छठ का व्रत पुरुष भी रखते हैं। ऐसा करने वाले ज्यादातर पुरुष ऐसे होते हैं जिन्होंने कोई मन्नत मांगी हो और छठी मइया ने उसे पूरी कर दिया हो। ऐसा होने की स्थिति में वह व्रत रखने वाली महिला का सम्पूर्ण सहयोग करते हैं। वह 'ठडिय़ाÓ के समय खड़े होते हैं। अघ्र्य व्रत रखने वाली महिला ही देती है। चला सफाई अभियान
गुरुवार को छठ का व्रत रखने वाली महिलाएं डूबते हुए सूर्य को अघ्र्य देंगी। अघ्र्य देने के लिए गंगा और यमुना तट पर बड़ी भीड़ होती है। संगम तट और बलुआ घाट पर इसके लिए विशेष तैयारिया की गयी हैं। घाटों की साफ सफाई का अभियान बुधवार को युद्धस्तर पर चलाया गया। यहां लाइटिंग की व्यवस्था भी की गयी है ताकि शुक्रवार को सूर्योदय के वक्त अघ्र्य देने के लिए आने वाली महिलाओं को परेशानी न हो। शाम को हुआ खरना
मंगलवार को नहाय खाय के साथ व्रत का शुभारंभ करने वाली महिलाओं को बुधवार को खरना प्रसाद मिला। इसे उन्होंने खुद ही तैयार किया था। सूर्यास्त से ठीक पहले इसे बनाया जाने लगा। गुड़ की खीर और देशी घी की रोटी का प्रसाद परिवार के प्रत्येक सदस्य के साथ ही उनके लिए भी तैयार किया गया जो व्रत तो रख सकती हैं लेकिन पूजा का हिस्सा नहीं बन सकतीं। यह प्रसाद चंद्रोदय के बाद सभी को वितरित किया गया। यह प्रसाद ग्रहण करने के बाद ३६ घंटे के कठिन व्रत का आगाज हो गया। यानी अब व्रत रखने वाली महिलाएं शुक्रवार को उगते हुए सूर्य को अघ्र्य देने के बाद ही अन्न या जल ग्रहण करेंगी।