बमरौली के रहने वाले एक ठेकेदार की प्लेटलेट के नाम पर फेक कम्पोनेंट चढ़ाने से मौत हो गई. परिजनों का कहना है कि मजबूरी का फायदा उठाकर दलाल ने उन्हें पीले रंग का लिक्विड बेच दिया. जब इसे मरीज को चढ़ाया तो उसकी हालत बिगड़ गई और बुधवार सुबह उसकी जान चली गई. परिजनों ने प्लेटलेट के नमूने की जांच कराने की मांग की है. 36 वर्षीय प्रदीप पांडेय बमरौली एरिया के रहने वाले थे. परिजनों के मुताबिक कुछ दिन पहले उन्हें फीवर आया तो नजदीक में झलवा पीपलगांव स्थित एक निजी अस्प्ताल में भर्ती करा दिया गया था. वहां पर डॉक्टर ने आठ यूनिट प्लेटलेट की मांग की. जिसमें से तीन यूनिट एसआरएन अस्पताल से लेकर मरीज को 16 अक्टूबर की रात चढ़ाया गया तब तक मरीज स्टेबल था. इस दौरान डॉक्टर ने बचे हुए पांच यूनिट प्लेटलेट की और मंाग की. एक दलाल के संपर्क में आने के बाद प्रदीप के साले सौरभ त्रिपाठी ने पांच यूनिट प्लेटलेट खरीदी और इसके बदले में 25 हजार रुपए का भुगतान किया. यह भुगतान ऑनलाइन किया गया.

प्रयागराज (ब्‍यूरो)। 17 अक्टूबर की सुबह बाहर से खरीदा गया प्लेटलेट जैसे ही मरीज को चढ़ाया गया, वह दर्द से उछलने लगा। उसकी हार्ट बीट बढ़ गई। पूछने पर नर्स ने बताया कि कभी कभी ऐसा होता है। इस दौरान मरीज को तीन यूनिट चढ़ा दी गई लेकिन तब तक उसकी हालत काफी खराब हो चुकी थी। मजबूरी में परिजनों को मरीज को सिविल लाइंस स्थित एक दूसरे हार्ट स्पेशलिस्ट अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। उसे आईसीयू में भर्ती किया गया। जांच के बाद डॉक्टर ने बताया कि मरीज की हालत काफी खराब है, उसके पूरे शरीर में ब्लड क्लाटिंग हो गई है। उसके किडनी और लीवर डैमेज हो चुके हैं। उसकी यूरिन रुक गई है। उसकी डायलिसिस करानी होगी। इससे पहले परिजन कुछ समझ पाते बुधवार सुबह प्रदीप की मौत हो गई।

बेटी भी है अस्पताल में भर्ती
सौरभ ने बताया कि प्रदीप की तीन माह की बेटी भी एक अस्पताल में भर्ती है। उसका भी डेंगू का इलाज चल रहा है। ऐसे में प्रदीप की मौत से पूरा परिवार सदमे में चला गया है। परिजनों का कहना है कि इस मामले में पुलिस और प्रशासन को प्लेटलेट के बचे हुए सैंपल की जांच करानी चाहिए। जिससे पता चल सके कि मरीज की मौत किस वजह से हुई। पांच हजार रुपए प्रति यूनिट की कीमत लेकर आखिर प्लेटलेट की जगह कौन सा फेक कम्पोनेंट दिया गया है। बता दें कि मरीज को जो फेक कम्पोनेंट चढ़ाया गया है उस बैग पर स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल का लेबल लगा है। इसमें पीले रंग का लिक्विड भरा है जो हूबहू प्लेटलेट की तरह नजर आ रहा है।

यह हमारे यहां का नहीं था। डुप्लीकेट लेबल लगाकर हमारे नाम से प्लेटलेट बेची जा रही है और यह जांच का विषय है। मरीज के परिजन पहले ही हमारे यहां इसकी शिकायत लेकर आए थे लेकिन हमने बता दिया कि यह प्लेटलेट हमारे अस्पताल के ब्लड बैंक में नहीं बना है।
डॉ। वत्सला मिश्रा
एचओडी पैथोलाजी, एसआरएन

Posted By: Inextlive