तहसीलदार के कार्यालय में व कोर्ट कक्ष में चल रहे चुनावी कार्य से दाखिल खारिज की प्रक्रिया पड़ी ठप

प्रयागराज ब्यूरो । चुनावी कार्यों को पूरा करने में तहसीलदार व कर्मचारियों के व्यस्त होने से भटक रहे हैं लोग
क्कक्र्रङ्घ्रत्रक्र्रछ्व: लाखों रुपये के कीमत की जमीन का बैनामा कराने वाले सैकड़ों लोगों के लिए दाखिल खारिज अब बड़ा सिर दर्द बन गया है। जमीन की रजिस्ट्री कराने के बाद दाखिल खारिज नहीं होने से तमाम लोग तहसील का चक्कर काट रहे हैं। तहसीलदार और उनकी टीम इन दिनों चुनावी कार्यों में व्यस्त है। कोर्ट के कक्ष में चुनाव के कार्य किए किए जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में तहसीलदार की कोर्ट भी बंद चल रही है। इन अफसरों के चुनावी कार्यों में व्यस्त होने का खामियाजा दाखिल खारिज के लिए भटक रहे लोगों को भुगतना पड़ रहा है। इसमें ज्यादातर वे शामिल हैं जिन्हें रजिस्ट्री के बाद दाखिल खारिज की जानकारी नहीं थी। इनमें वे लोग भी शामिल हैं जो रजिस्ट्री कराने के बाद कागज लेकर किन्हीं कारणों से बाहर चले गए। अब लौटने के बाद खतौनी की जरूरत पडऩे या जानकारी होने के बाद दाखिल खारिज के लिए भटक रहे हैं। एक्सपर्ट अधिवक्ता कहते हैं कि जमीन सम्बंधी मामलों में दाखिल खारिज एक अहम प्रक्रिया है। जिन्हें जानकारी होती भी है वे चंद रुपयों को बचाने के चक्कर में दाखिल खारिज कराना अवॉयड कर गये।

बहुत जरूरी है दाखिल खारिज
शहर हो या गांव, जमीन खरीदने जा रहे हैं या खरीद चुके हैं तो इसकी पूरी प्रक्रिया को लेकर सतर्क रहने की जरूर है। एक छोटी सी अनभिज्ञता व लापरवाही अथवा थोड़े पैसे बचाने की कोशिश भारी पड़ सकती है। राजस्व मामलों के एक्सपर्ट अधिवक्ता कहते हैं कि रजिस्ट्री के तत्काल बाद दाखिल खारिज के लिए आवेदन आवश्यक है। बगैर दाखिल खारिज कराए राजस्व अभिलेखों में उसी शख्स का नाम चढ़ा रहेगा जिससे जमीन की खरीद की गई है। जमीन का बैनामा यानी रजिस्ट्री की कॉपी यह बात साबित करती है कि आप ने सम्बंधित व्यक्ति से भूमि की खरीद की है। मगर, दाखिल खारिज के बाद ही उसकी जगह खरीदार का नाम चढ़ता है। राजस्व अभिलेख में नाम के नहीं चढऩे से जमीन बेचने के बावजूद नाम विक्रेता या उसके परिवार का ही दर्शाता रहता है। ऐसी स्थिति में जरूरत पडऩे पर जब जमीन खरीदने वाले को खतौनी आदि की जरूरत पड़ती है तो बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है। क्योंकि खतौनी में तब तक खरीदार का नाम शो नहीं करता जब तक कि दाखिल खारिज नहीं हो जाता।
45 दिन में पूरी होती है प्रक्रिया
दाखिल खारिज के लिए वाद दायर करने के बाद पूरी प्रक्रिया में 45 दिन का टाइम वैल्यू होता है। इसी 45 दिनों में सारी प्रक्रिया पूर्ण करके तहसील प्रशासन को खरीदार का नाम जमीन पर एड कर देता है। दाखिल खारिज यानी नामांतरण के बाद खरीदी गई जमीन का विभाजन भी करा लें। अधिवक्ता कहते हैं कि यह विभाग दोनों पक्षों के हित में होता है। विभाजन नहीं होने की दशा में एक ही जमीन यानी नंबर पर खरीदार और मालिक का नाम अभिलेखों में शो करता रहता है। खरीदार जमीन या मकान का टैक्स तो देता है। मगर बेचने वाले उस पूरी जमीन के मालिक रहे शख्स को पूरे प्लाट का टैक्स अदा करना पड़ता है।


जानिए किसे कहते हैं दाखिल खारिज
अधिवक्ता कहते हैं कि दाखिल खारिज की कानून में एक परिभाषा है।
इसका अर्थ है कि खरीदार का नाम राजस्व अभिलेखों में दाखिल किया जाय और जमीन बेचने वाले का नाम खारिज यानी हटाया जाय।
यही प्रक्रिया राजस्व व कानून की भाषा में दाखिल खारिज कहलाती है।
दाखिल खारिज के तुरंत बाद या साथ ही विभाजन की प्रक्रिया शुरू की जाती है।
इसलिए जमीन की रजिस्ट्री कराने व दाखिल खारिज कराने के बाद विभाजन के लिए भी एप्लीकेशन जरूर मूव करा दें।

जमीन के क्रय एवं विक्रय में दाखिल खारिज कराया जाना जरूरी है। देखा जा रहा है कि लोग रजिस्ट्री कराने के बाद दाखिल खारिज नहीं कराते। कुछ मजबूरी वश नहीं करा पाते तो कई जानकारी व जागरूकता के अभाव में। इसलिए लोगों को चाहिए कि अपने अधिवक्ता से इस बारे में अच्छी तरह पहले समझ लें। अधिवक्ता द्वारा बताई गई प्रक्रियाओं पर अमल करें।
पंकज त्रिपाठी
अधिवक्ता हाईकोर्ट

कभी-कभी जो लोग जागरूक हैं और जानते हैं वह भी दाखिल खारिज चंद पैसे बचाने के लिए नहीं कराते। बाद में इसी के लिए उन्हें कोर्ट कचहरी का चक्कर काटना पड़ता है। इसलिए लोगों को चाहिए कि रजिस्ट्री कराने के तुरंत बाद दाखिल खारिज की प्रक्रिया शुरू कर देनी चाहिए। राजस्व मामलों में यह एक जरूरी प्रक्रिया है।
गौर मिश्र
अधिवक्ता हाई कोर्ट

राजस्व अभिलेख में खरीदार का नाम तब तक दर्ज नहीं होता जब तक कि जमीन का दाखिल खारिज नहीं कराया जाय। दाखिल खारिज के साथ विभाजन की भी एप्लीकेशन मूव करनी चाहिए। तमाम लोग दाखिल खारिज के लिए आ रहे हैं। मगर तहसीलदार के चुनावी कार्यों में व्यस्त होने से थोड़ी दिक्कतें आ रही हैं।
प्रवीण कुमार
अधिवक्ता डिस्ट्रिक्ट कोर्ट

जमीन की रजिस्ट्री होने के बाद उसका मालिक कानूनन खरीदार हो जाता है। फिर भी दाखिल खारिज करा लेना खरीदार के हित में होता है। दाखिल खारिज के लिए वाद दायर करना या कराना पड़ता है। बगैर पैरवी के अक्सर ऐसा होता है कि प्रक्रिया लटक जाती है।
सोनू पांडेय
अधिवक्ता डिस्ट्रिक्ट कोर्ट

अभी सारे लोग निकाय चुनाव के कार्यों में व्यस्त हैं। इसी वजह से थोड़ी दिक्कतें आ रही हैं। फिर भी कोशिश रहती है कि लोग परेशान नहीं हों। 13 मई के बाद जो थोड़ी सब कुछ स्मूथ हो जाएगा।
आरपी त्रिपाठी
तहसीलदार सदर

Posted By: Inextlive