रोड पर साइन बोर्ड न होने से कनफ्यूज हो रहे यात्री
प्रयागराज (ब्यूरो)। दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट के रियलिटी चेक में सामने आया कि सबसे ज्यादा दिक्कत उन रास्तों पर होती है, जहां से अन्य जिलों के लिए हाईवे कनेक्ट होता है। इसलिए रिपोर्टर ने बालसन से लेकर धोबी घाट तक का रूट तय किया। जो लखनऊ और कानपुर जिलों के हाईवे से कनेक्ट होता है। इस तीन किलोमीटर की दूरी पर पडऩे वाले पांच चौराहे बालसन, इंडियन प्रेस, हिन्दू हॉस्टल, लोक सेवा आयोग और धोबी घाट में से सिर्फ एक जगह अन्य जिले की ओर जाने का साइन बोर्ड लगा था। वह भी छुपा हुआ था। इस रूट से गुजरने वाले राहगीर को सबसे ज्यादा कनफ्यूज लोक सेवा आयोग और धोबी घाट चौराहों पर होते हैैं। इन चौराहों पर अक्सर राहगीर को टर्न लेने से पहले पूछना पड़ता है। राहगीरों की मानें तो दिन में तो लोग पता बता भी देते हंै। लेकिन सबसे ज्यादा दिक्कत रात में होती है। जब कोई रोकने पर भी नहीं रुकता है। इसके कारण उनको लखनऊ जाना होता ह,ै तो अगले साइन बोर्ड तक जाना पड़ता है। अक्सर बालसन की ओर से आनेवाले व्यक्तिधोबी घाट चौराहे तक पहुंच ही जाते हेंै।
केस 01 रिपोर्टर द्वारा किए जा रहे रियालिटी चेक के दौरान पाया गया कि आंध्रप्रदेश जिले का एक नागरिक लोक सेवा आयोग चौराहे पर कनफ्यूज खड़ा था। लोगों से पूछ रहा था कि लखनऊ जाने के लिए कौन सा रूट है। पब्लिक की आवाज क्लियर न समझ पाने के चलते राइट की जगह उसने लेफ्ट टर्न ले लिया। फिर दोबारा घूमकर आना पड़ा। बातचीत पर बस ड्राइवर रमेश आर ने बताया कि कई बार तो लोग रोक देते है। कई बार रात में लोग रोकते ही नहीं है और सीधे निकल जाते है। रात में चौराहे पर ट्रैफिक सिग्नल बंद रहता है। इसके चलते लोग बिना रोके निकल जाते है।
केस 02 लखनऊ नंबर की गाड़ी को चौराहे पर रुका देख रिपोर्टर ने साइन बोर्ड न दिखने पर सवाल पूछा। उन्होंने हंसते-हंसते कहां कौन साइन बोर्ड के भरोसे चलता है। गूगल मैप से ही चलता है। अगर जगह-जगह रोक कर पूछने लगे तो हो गया काम। इसलिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है। मगर नगर निगम को इस ओर ध्यान चाहिए। क्योंकि ज्यादातर कमर्शियल गाड़ी चलाने वाले लोग कनफ्यूज होते है। हर कोई गूगल मैप के जरिए नहीं चलते। वे आज भी लोगों से पूछकर व साइन बोर्ड के भरोसे ही गाड़ी चला रहे हंै। कुछ बोर्ड पर नेता और छात्रों के पोस्टर तक लगे मिल जाएंगे।तीन लोगों की होती है जिम्मेदारी
नगर निगम अधिकारी उत्तम कुमार वर्मा ने बताया कि जिसने रास्ते को बनाया होगा। वह ही साइन बोर्ड लगाता है। इस कार्य को तीन लोग करते है। पीडब्लूडी, नगर निगम और पीडीए। जिसके द्वारा बनाया गया होगा। उसके द्वारा लगाया जाता है।
यह रूट पीडब्लूडी द्वारा ही बनाया गया है। इस रूट पर जरूर लगा होगा। भले एक ही तरफ लगा हो। अगर कहीं नहीं है, तो चेक करा उसे लगाने का निर्देश दिया जाएगा।
पीडब्लूडी इंजीनियर आशोक कुमार द्विवेदी