आफलाइन है बहाना, स्कूल फीस है टारगेट
स्कूलों में नहीं पहुंच रहे हैं कक्षा छह से आठ तक के बच्चे
नौ से 12 तक के बच्चों की उपस्थिति भी है बेहद कम ट्रांसपोर्टेशन समेत कापी-किताबों पर मंथ के लिए हजारों खर्च को लेकर परेशान हैं पैरेंट्स दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट ने उठाया सवाल तो पब्लिक ने बताया कारण prayagraj@inext.co.inPRAYAGRAJ: कोरोना महामारी के चलते बंद स्कूलों को अब सरकार ने खोलने की इजाजत दे दी है। लेकिन पैरेंट्स अभी तक इसके लिए तैयार नहीं हो रहे हैं। यही कारण कि पिछले दिनों 6वीं से 8वीं तक के स्कूल खुलने की इजाजत मिलने के बाद भी अभी तक स्कूलों में इन क्लास के बच्चों की अटेंडेस उम्मीद से काफी कम है। साथ ही 9वीं से 12वीं तक की क्लासेस में पहले जैसी स्ट्रेंथ नहीं पहुंच रही है। ऐसे स्कूल पैरेंट्स को कंसर्न लेटर भेजकर आफलाइन परीक्षा में बच्चों को भेजने के लिए कन्वेंस करने में जुटे हैं। बावजूद पैरेंट्स बच्चों को स्कूल भेजने को तैयार नहीं हो रहे हैं। दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट ने कुछ पैरेंट्स से इस बारे में बात की। जिस पर बच्चों को मार्च के बाद स्कूल भेजने के पीछे कारण बताए।
पैरेंट्स पर अचानक से बढ़ेगा बोझबच्चों को स्कूल नहीं भेजने को लेकर पैरेंट्स का कहना है कि सरकार ने भले ही स्कूल खोलने की इजाजत दे दी है, लेकिन इससे पैरेंट्स पर आर्थिक बोझ बढ़ना तय है। क्योंकि स्कूल फाइनल एग्जाम के बहाने बच्चों को स्कूल बुलाने की तैयारी में है। ऐसे में जब बच्चा स्कूल जाएगा, तो स्कूलों के पास भी साल की बची हुई फीस मांगने का एक जरिया मिल जाएगा। जबकि पैरेंट्स अभी तक सिर्फ ट्यूशन फीस ही ले रहे थे। लेकिन जब बच्चें स्कूल जाने लगें, तो सिर्फ एक महीने के चक्कर में मौजूदा सेशन के बचे हुए पूरे टाइम की ट्रांसपोर्टेशन से लेकर अन्य फीस मांगने का स्कूलों को राइट मिल जाएगा। यहीं कारण है कि स्कूल लगातार पैरेंर्ट्स पर बच्चों को स्कूल भेजने का प्रेशर बना रहे है।
किताब- कापियों के साथ बैग, स्कूल ड्रेस पर भी करना होगा खर्चपैरेंट्स का कहना है कि सिटी के ज्यादातर स्कूल अभी तक ऑनलाइन परीक्षा के लिए कह रहे थे। लेकिन सिर्फ पूरी फीस लेने के चक्कर में स्कूलों ने फिजिकल एग्जाम कराने की तैयारी कर रखी है। इसके साथ ही बच्चों को सिर्फ एक ही महीने के लिए स्कूल भेजने के चक्कर में कापी, किताब, स्कूल बैग से लेकर स्कूल यूनिफार्म तक पर खर्च करना पड़ेगा। जबकि अभी तक स्कूल से ही सिलेबस मिल जा रहा था। उसी से पढ़ाई हो रही थी, लेकिन स्कूल भेजने पर इन सभी भी हजारों रुपए सिर्फ एक महीने के लिए ही खर्च करने होगा। जिससे पैरेंट्स पर आर्थिक बोझ पड़ेगा। जबकि अप्रैल में नए सेशन से इन वस्तुओं पर फिर से खर्च करना है। ऐसे में दो मंथ के अंदर ही दो बार हजारों रुपए खर्च करने की नौबत आ जाएगी। इससे पैरेंर्ट्स को कई तरह की दिक्कत उठानी पड़ेगी।
- पूरे साल यानी 11 महीने स्कूल में ऑनलाइन व्यवस्था थी। ऐसे में सिर्फ एक महीने के स्कूल भेजने का मतलब हजारों रुपए का खर्च। इसमें किताबों से लेकर ड्रेस, ट्रांसपोर्टेशन आदि का खर्च भी स्कूलों को देना हेागा। - विजय गुप्ता, अध्यक्ष अभिभावक एकता समिति - अभी तक बेटी की फीस काफी कम थी। लेकिन अचानक से स्कूल ने इस क्वार्टर की फीस 14 हजार से अधिक की भेज दी। उसके अलावा स्कूल जाते ही दूसरे खर्च की रसीद भी मिलनी तय है। पंकज गुप्ता - सिर्फ एक महीने के लिए बच्चों को बुलाना कहां से उचित है। जबकि अप्रैल में नए सेशन के लिए पूरा खर्च करना होगा। ऐसे में सिर्फ एक महीने के लिए पूरा खर्च सिर्फ बोझ बढ़ाएगा।आरती केसरवानी
- स्कूल पहले ही लगातार फीस जमा करने का दबाव बना रहे थे। लेकिन ऑनलाइन क्लासेस के कारण पैरेंट्स पर प्रेशर कम था, लेकिन स्कूल भेजने का मतलब है कि वहां पर बच्चों पर प्रेसर बनने लगेगा। फिर तो पैरेंट्स को मजबूरी में फीस व अन्य खर्च करना होगा।
निशा अग्रहरी - स्कूलों को भी सोचना चाहिए कि सिर्फ एक महीने के लिए इतनी कवायद क्यों कर रहे हैं। जबकि मार्च के बाद एक अप्रैल से पैरेंट्स बच्चों का स्कूल भेजने को तैयार है। ऐसे में फाइनल एग्जाम भी ऑन लाइन कराकर सेशन खत्म करें। दुर्गा प्रसाद - स्कलों पर भी थोड़ा प्रेशर पड़ना चाहिए। सिर्फ पैरेंट्स ही उनके साफ्ट टारगेट होते है। ऐसे में भी एक महीने के चक्कर में जनरेटर से लेकर अन्य मद भी फीस वसूलने की तैयार में स्कूल जुट गए है। सुधा गौड़