पुलिस कमिश्नर की ऑफिस फाइनल नहीं होने से भटक रही है पब्लिक और फाइलेंलॉ एंड आर्डर की सिचुएशन मेंटेन करने के साथ ही पब्लिक को सुविधाजनक स्थिति प्रदान किये जाने के लिए कमिश्नरेट व्यवस्था लागू की जा चुकी है. कमिश्नरेट व्यवस्था लागू होने के बाद जिला मजिस्ट्रेट के पास रही 14 शक्तियां पुलिस कमिश्नर को ट्रांसफर हो गई हैं. यह सभी शक्तियां पुलिस और अपराध एवं आपराधियों से सम्बंधित हैं. डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के यहां से सीपी कोर्ट में देखी जाने वाली फाइलों पर सुनवाई बंद हो चुकी है. यह एक पक्ष है तो दूसरा पक्ष यह है कि सीपी को एक महीना बीत जाने के बाद भी ऑफिस तक परमानेंट नहीं एलॉट हुआ है. कोर्ट का भी अता पता नहीं है. नतीजा इन मुकदमो में पैरवी करने वाले भटक रहे हैं. इस स्थिति का समाधान कब तक मिल पायेगा? इस पर अभी कोई कुछ बोलने के लिए भी तैयार नहीं है.

प्रयागराज ब्यूरो । प्रयागराज में कमिश्नरेट सिस्टम लागू किये जाने की घोषण पिछले महीने की 25 तारीख को हुई थी। एक दिसंबर को आईजी कैडर के ऑफिसर रमित शर्मा ने जिले के पहले पुलिस कमिश्नर के रूप में कार्यभार ग्रहण करने के लिए प्रयागराज में इंट्री ली थी। घोषणा के 48 घंटे के भीतर ही अधिसूचना जारी कर दी गयी थी। इसमें यह भी स्पष्ट कर दिया गया था कि कमिश्नरेट व्यवस्था लागू पर किसे कौन सा पावर डेलीगेट होगा। कमिश्नरेट व्यवस्था लागू होने के बाद जिले में शासन द्वारा पुलिस कमिश्नर रमित शर्मा की तैनाती की गई है। वह पूरे स्ट्रक्चर को खड़ा करने के लिए दिन रात कसरत करने में जुटे हैं। लगातार मीटिंग और बैठकें हर रोज चल रही हैं।
गंगा और यमुना नगर के पुलिस उपायुक्त को भी ऑफिस का इंतजार
14 अधिनियम की जिला मजिस्ट्रेट के पास रही शक्तियां पुलिस कमिश्नर को मिल गई हैं। पुलिस कमिश्नर को प्राप्त इन शक्तियों में अपराध और अपराधियों से जुड़े तमाम कार्य शामिल हैं। पोस्टिंग के बाद से अब तक पुलिस कमिश्नर व्यवस्थाओं को पटरी पर लाने की जुगत में जुटे हैं। उनकी कोर्ट तो दूर अभी तक ऑफिस और आवास तक क्लियर नहीं हो सका है। पुलिस उपायुक्त यमुनानगर व गंगा नगर को भी अपने इलाके में बैठकर फरियाद सुनना है। दोनों ही क्षेत्रों में उनकी ऑफिस का बंदोबस्त अब तक नहीं हो सका है। ऐसे में पब्लिक के साथ उन अधिनियमों के तहत की जाने वाली कार्रवाई की फाइलें भी भटक रहीं हैं। विभागीय लोग बताते हैं कि पब्लिक की शिकायतें तो रोज नामित अफसर सुन ले रहे हैं। मगर कार्रवाई की कुछ फाइलें ऐसी हैं जिनका निस्तारण पुलिस कमिश्नर की कोर्ट में होना है। उनकी कोर्ट और दफ्तर के लिए जगह अभी तक डिसाइड नहीं हो सकी। ऐसी स्थिति में माना यह जा रहा कि वह फाइलें डंप होती जा रही हैं। इस सम्बंध में और जानकारी के लिए पुलिस कमिश्नर को कई दफा फोन किया गया। मगर व्यस्तता के कारण उनका फोन रिसीव नहीं हुआ। सीयूजी नंबर पर कॉल रिसीव करने वाले उनके पीआरओ ने बताया कि साहब मीटिंग में व्यस्त हैं।

अधिनियम जिसे देखेंगे पुलिस कमिश्नर
उत्तर प्रदेश गुण्डा नियंत्रण अधिनियम 1970 व विष अधिनियम 1919
अनैतिक व्यापार व निवारण अधिनियम 1956 व अधिनियम 1922 पुलिस द्रोह-उद्दीपन
पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 और विस्फोटक अधिनियम 1884
कारागार अधिनियम 1994 के साथ शासकीय गुप्त बात अधिनियम 1923
विदेशियों विषय अधिनियम 1946 और पुलिस अधिनियम 1861
विधिविरुद्ध क्रियाकलाप निवारण अधिनियम 1967 व संयुक्त प्रांत अग्निशमन सेवा अधिनियम 1944
उत्तर प्रदेश अग्नि निवारण एवं अग्नि सुरक्षा अधिनियम 2005
उत्तर प्रदेश गिरोहबंद और समाज विरोधी क्रियाकलाप निवारण अधिनियम 1986
इन 14 अधिनियमों के अधीन जिला मजिस्ट्रेट की समस्त शक्तियां पुलिस कमिश्नर को सौंपी गई हैं।
जानकार बताते हैं कि मतलब यह हुआ कि इन अधिनियमों के अधीन आने वाले समस्त प्रकार के कार्य व क्राइम पुलिस कमिश्नर देखेंगे

चौदह अधिनियमों के अधीन कार्यों को करने की शक्ति पुलिस कमिश्नर के पास है। इस सम्बंध में एक लेटर आया था। पूरी डिटेल देखने के बाद ही बता पाएंगे।
संजय खत्री
डीएम प्रयागराज

Posted By: Inextlive