पब्लिक ही नही, डॉक्टर भी है तनाव में
प्रयागराज (ब्यूरो)। मुंबई से आईं मेडिको लीगल एक्सपर्ट डॉ। विद्या शेट्टी ने कहा िक डॉक्टर, उनका स्टाफ और मरीज व परिजनों के बीच संवाद की निरंतरता बनी रहनी चाहिए। मरीज की डायग्नोसिस, उसका उपचार व अन्य विकल्प तथा उपचार के दौरान उत्पन्न हो सकने वाले काम्प्लीकेशंस के बारे में लिखित रूप से मरीज की भाषा मे दर्ज अवश्य करना चाहिए। इस अनुमति पत्र में मरीज के साथ उसके एक परिजन व दो अन्य स्वतंत्र गवाहों के हस्ताक्षर अवश्य करा लेने चाहिए।
दाखिले के साथ शुरू होता है संघर्षकेजीएमसी लखनऊ के फैमिली मेडिसिन के एचओडी डा। नरसिंह वर्मा ने डाक्टरों में तनाव व अस्वस्थता का कारण दोषपूर्ण चिकित्सा शिक्षा प्रणाली बताया। उन्होंने कहा कि मेडिकल कॉलेज में दाखिले के साथ ही हास्टलों में मेस की दुर्दशा, शिक्षा का असीमित व अनियमित समय, देर रात तक पढ़ाई के साथ साथ खेल कूद व अन्य पाठ्यक्रम गतिविधियों की कमी से ही इसकी शुरूआत हो जाती है। उन्होंने कहा कि इतना ही नहीं वरिष्ठ शिक्षकों का अव्यवहारिक सख्त व्यवहार इसमें कई गुना और वृद्धि कर देता है। आज आवश्यकता है चिकित्सा संस्थानों में प्रवेश के साथ ही चिकित्सकों को शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य का भी प्रशिक्षण दिया जाए। सेमिनार की अध्यक्षता एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ। सुजीत सिंह व संचालन डॉ। आशुतोष गुप्ता ने किया। इस मौके पर सीएमओ डॉ। नानक सरन, डॉ। सत्येन राय, डॉ। अभिलाषा चतुर्वेदी, डॉ। युगांतर पांडेय, डॉ। रोहित गुप्ता, डॉ। संजीव यादव, डॉ। मनीषा गुप्ता, डॉ। अनुराग वर्मा, डॉ। अनूप समेत कई डॉक्टर्स उपस्थित रहे।