कोविशील्ड ही नहीं, कोवैक्सीन भी कोरोना से लड़ने में कारगर
- काल्विन हॉस्पिटल में लगाई जाएगी कोवैक्सीन, अभी तक लग रही थी कोविशील्ड
- कोवैक्सीन को प्रमोट करना चाहती है सरकार, दूर होंगी भ्रांतियां कोरोना संक्रमण के रोकथाम के लिए जितनी कारगर कोविशील्ड है, उतनी ही कोवैक्सीन भी है। लेकिन पब्लिक को यह नहीं पता है। कोवैक्सीन को लेकर फैली भ्रांतियों को दूर कर इसके उपयोग पर सरकार ध्यान दे रही है। स्वास्थ्य विभाग भी चाहता है कि अधिक से अधिक लोगों को कोवैक्सीन ही लगवाई जाए। इसको लेकर रणनीति भी बनाई जा रही है। जल्द ही जिले के कई केंद्रों को कोवैक्सीन के लिए एलॉट किया जाएगा। मिल चुकी 28 हजार डोजप्रयागराज को अब तक कोरोना वैक्सीन की डेढ़ लाख डोज दी जा चुकी है। इसमें से 28 हजार 240 डोज कोवैक्सीन की थी। अभी तक जिले के 93 सेंटर्स में सबसे ज्यादा कोविशील्ड लगाई जा रही है। शुरुआत में कोवैक्सीन को लेकर कुछ भ्रांतियां थी लेकिन अब सरकारी चाहती है इस वैक्सीन को अधिक से अधिक संख्या में लोगों को लगवाया जाए। यही कारण है कि पीएम नरेंद्र मोदी और स्वास्थ्य मंत्री डॉ। हर्षवर्द्धन ने खुद कोवैक्सीन की डोज लगवाई है। यह वैक्सीन भारत बायोटेक कंपनी ने बनाई है और इसे सरकार ने पूरी तरह से सुरक्षित घोषित किया है।
कॉल्विन में लगेगी कोवैक्सीनसरकार की मंशा को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग ने ग्रामीण एरिया के चार ब्लॉक में कोवैक्सीन लगवाने का फैसला किया है। वही शहर में काल्विन हॉस्पिटल में भी अब कोवैक्सीन ही लगाई जाएगी। अधिकारियों का कहना है कि दोनों वैक्सीन पूरी तरह सुरक्षित है। यह भी बता दें कि कोविशील्ड की दूसरी डोज को पहली डोज के 28 से 42 दिन के अंतर में लगवा सकते हैं। इस समय अंतराल में इसे अधिक उपयोगी पाया गया है। वही कोवैक्सीन को 28 दिन के अंतर में ही दोनों डोज लगवानी होगी। तभी यह कारगर है।
फिर आई कोविशील्ड, बनी है शार्टेज शहर में अब तक कोविशील्ड अधिक मात्रा में आई है जबकि कोवैक्सीन की शार्टेज बनी हुई है। बुधवार को एक बार फिर वाराणसी से 45 हजार डोज कोविशील्ड प्रयागराज भेजी गई है। डॉक्टर्स का कहना है कि दोनों वैक्सीन की रिसर्च लगभग पूरी हो चुकी है और अब दोनों को बराबर मात्रा में भिजवाना चाहिए। जिससे लोगों को आसानी से वैक्सीनेशन हो सके। दोनों वैक्सीन में अंतर कोवैक्सीन - यह इनऐक्टिवेटेड वैक्सीन है यानी किस मृत कोरोना वायरस से बनाया गया है।- इसके लिए भारत बायोटेक ने पुणे के नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरलॉजी में आइसोलेट किए गए कोरोना वायरस के एक सैंपल का इस्तेमाल किया।
- जब यह वैक्सीन लगाई जाती है तो इम्युन सेल्स मृत वायरस को पहचान लेती हैं और उसके खिलाफ ऐंटीबॉडीज बनाने लगती हैं। - वैक्सीन की दो डोज चार हफ्तों के अंतराल पर दी जाती है और इसे 2 डिग्री सेल्सियस से 8 डिग्री सेल्सियस के बीच स्टोर की जा सकती है। कोविशील्ड - ऑक्सफोर्ड यूनिवíसटी और अस्त्राजेनका ने मिलकर डेवलप किया गया है। इसे भारत में सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया तैयार कर रही है। यह वैक्सीन आम सर्दी-जुकाम वाले वायरस के एक कमजोर रूप से बनी है। इसे मॉडिफाई करके एक कोरोना वायरस जैसा दिखने वाला बनाया गया है मगर इससे बीमारी नहीं होती। जब वैक्सीन लगती है तो वह इम्युन सिस्टम को किसी कोरोना वायरस संक्रमण से लड़ने के लिए तैयार करती है। यह वैक्सीन दो डोज में चार से छह हफ्तों के अंतराल पर लगती है। इसे भी 2 डिग्री से 8 डिग्री के बीच स्टोर किया जा सकता है।हमने तय किया है कि जिले के चार ब्लॉक में कोवैक्सीन लगवाई जाए। साथ ही काल्विन हॉस्पिटल में भी कोवैक्सीन लगवाने की तैयारी की जा रही है। लोगों को दोनों वैक्सीन लगवानी चाहिए।
डॉ। प्रभाकर राय, सीएमओ प्रयागराज