नगर निगम के वार्र्डों के आरक्षण की सूची जारी होने के बाद तमाम पार्षद प्रत्याशी चुनावी समीकरण में जुट गए हैं. वार्ड का आरक्षण बदलने के बाद उन्हें चिंता तो सता रही है लेकिन रास्ते भी निकल रहे हैं. जिन वार्डों में महिला सीट आरक्षित हो गई है वहां इस बार पति की जगह पत्नी को चुनाव लड़ाने की तैयारी है. हालांकि जिन वार्डों में पिछड़ा वर्ग अनुसूचित जाति अनु जाति महिला सीट हुई है वहां पर समीकरण थोड़े अलग हो गए हैं. यहां पर प्रत्याशी खड़ा करना और लड़ाना आसान नही होगा. जिन वार्डों में सीट अनारक्षित है वहां प्रत्याशियों में खुशी की लहर है.


सीटों का आरक्षण बदलने पर एक्टिव हुए प्रत्याशी, अपनों का लड़ाने की जुगत तेज

प्रयागराज (ब्‍यूरो)। कई वार्डों को इस बार खत्म करके उन्हें दूसरे वार्ड में मर्ज कर दिया गया है। इसकी वजह से दूसरे वार्डों की आबादी कम और ज्यादा हो गई। इससे आरक्षण भी बदल गया। जहां पर अनारक्षित सीट थी वहां महिला हो गई है। जहां महिला थी वहां पर पिछड़ा वर्ग की सीट हो गई हे। हालांकि बहुत से पार्षदों की गणित भी चेंज हो गई है। इनमें प्रमुख रूप से पार्षद विनोद सोनकर, जिया उबैद, अकीलुर्ररहमान, आकाश सोनकर, नंदलाल, मुमताज अंसारी, मोहम्मद सादिक सहित दो दर्जन लोग शामिल हैं। इनके लिए इस बार कुर्सी बचाना आसान नही है। वापस मिल गया आरक्षण


पूर्व पार्षद राजू शुक्ला, शिवसेवक ङ्क्षसह, सतीश केसरवानी, सुशील यादव जैस पार्षद पिछले चुनाव में आरक्षण के चलते सीट से दूर थे। इस बार इनको मौका मिला है कि वह अपनी खोई हुई जमीन को वापस पा सकें। वहीं महिला सीट होने से मेहंदौरी के पार्षद मुकुंद तिवारी और मनोहर दास नगर के पार्षद अतहर रजा लाडले व चकिया पार्षद मो। आजम इस बार चुनाव नही लड़ पाएंगे। घटेगा वोट परसेंटेज

एक्सपट्र्स का मानना है कि जिन सीटों पर आरक्षण लागू हो गया है वहां पर वोट परसेंटेज घटेगा। क्योंकि अनारक्षित सीटों पर सभी का उत्साह होता है। इन पर कोई भी जाति या जेंडर का उम्मीदवार चुनाव लड़ता है और लड़ाई आमने सामने होती है। लेकिन आरक्षित सीटों पर वोटर्स का उत्साह कम हो जाता है। वह कई बार वोट देने के लिए उत्साह नही दिखा पाते हैं। बता दें कि इस बार ३५ सीटों के आरक्षण में बदलाव हुआ है। फिर से घूंघट में दिखेंगी पार्षद जिन सीटोुं में महिलाओं को आरक्षण दिया गया है उनमें कोई नई चीज नही कि घूंघट में पार्षद दिखाई पड़ें और काम पुराने पार्षद ही करें। ऐसा इसलिए कि पार्षद का चुनाव बेहद घरेलू होता है और इनमें जनता वोट उसी को करती है जो सुख दुख में साथ होता है। फिर जिसे चाहे उम्मीदवार बना दे, पब्लिक उसी को वोट देती है।

Posted By: Inextlive