एक भी मरीज नहीं, अब तो 'फ्री' कर दीजिए 'बेली'
नार्मल डेज में यहां की ओपीडी में पहुंचते थे दो हजार से अधिक लोग
कोविड 19 लेवल थ्री बेली अस्पताल में एक वर्तमान में एक भी कोरोना मरीज भर्ती नही है। एक मात्र मरीज भी 24 घंटे पहले डिस्चार्ज कर दिया गया। बावजूद इस अस्पताल में सामान्य मरीजों की इंट्री पर रोक है। अस्पताल के कोरोना के लिए नोटिफाइड होने के चलते ऐसा हुआ है। दो माह पहले बना कोविड अस्पताल बेली को दो माह पहले जिला प्रशासन ने कोविड अस्पताल बनाया था। यहां लेवल टू के मरीजों को भर्ती किया जा रहा था। इनके लिए यहां आक्सीजन युक्त वार्ड बनाए गए थे। इसके अलावा आईसीयू वार्ड भी संचालित किया जा रहा था। अप्रैल में ऐसा भी समय आया था जब यहां पर 250 कोरोना मरीज भर्ती थेसंक्रमण की रफ्तार कम होने के बाद अब यहां एक भी मरीज भर्ती नही है। सभी वार्ड खाली पड़े हैं।
मरीजों के इलाज लिए ड्यूटी पर लगाए गए आधा दर्जन डॉक्टर और 18 पैरामेडिकल स्टाफ इस समय कार्यविहीन हो गए हैं। प्राइवेट अस्पताल में होने लगी ओपीडीप्रशासन ने जिले के सभी प्राइवेट अस्पतालों को कोरोना से सामान्य अस्पताल में परिवर्तित कर दिया है। बेली में अभी सिर्फ आई और ई एंड टी की ओपीडी खोली गयी है। आई की ओपीडी में बमुश्किल चार से पांच मरीज पहुंचते हैं। ई एंड टी का कोई डाक्टर ही यहां पोस्ट नहीं है। इससे यहां सन्नाटा पसरा रहता है। आम दिनों में बेली में रोजाना दो से तीन हजार मरीजों की ओपीडी होती है।
सुविधाओं के लिए तरस रहे मरीज बेली हॉस्पिटल में मंडलीय लैब मौजूद है जहां तमाम महत्वपूर्ण जांचें नि:शुल्क होती हैं। इसके अलावा इस अस्पताल में एमआरआई, एक्सरे और सीटी स्कैन की सुविधा भी उपलब्ध है। जनरल पेशेंट्स की इंट्री बंद होने से पब्लिक को ये सुविधा भी नहीं मिल पा रही है अब जब कोरोना के केसेज कम हो गए हैं तो बेली अस्पताल को आम मरीजों के लिए उपलब्ध करा देना चाहिए। इससे आम मरीजों का काफी भला हो जाएगा। उज्जवल सचदेवा एक माह के लाकडाउन के बाद अस्पतालों को चालू किया गया है। ऐसे में बेली अस्पताल को भी फ्री कर देना चाहिए। इससे मरीजों को बेहतर इलाज मिल जाएगा। जितेंद्र बजरंगीबेली अस्पताल के बंद होने से सारा लोड काल्विन पर आ गया है। जांच की सुविधा भी प्राइवेट लैब से लेनी पड़ रही है। कोरोना का संक्रमण कम होने के बाद बेली को फ्री कर देना चाहिए।
दिनेश मिश्रा
बेली अस्पताल में महज ढाई हजार में एमआरआई जांच हो जाती है जबकि प्राइवेट में 12 हजार लगते हैं। इसलिए सरकार को अब आम मरीजों के बारे में भी सोचना होगा। अंकित टंडन