हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज कराने जाएं तो आरोपित किसे बनाएं? बन जाता है बड़ा सवाल घायलों के लिएगला काट देने की क्षमता रखने वाला मांझा आम्र्स एक्ट की किसी भी कैटेगिरी में नहीं आता सड़क पर चलने वाले बाइक सवार हो या फिर पैदल. सबकी जान मांझे के चलते खतरे में है. खास तौर पर पुल फ्लाईओवर और ओपन स्पेश के आसपास स्थित सड़क पर. एक साल के भीतर शहर में ही सात घटनाएं हो चुकी हैं. संयोग से इसमें कुछ लोगों को जान से भी हाथ धोना पड़ गया. इसके बाद भी मांझे का शिकार बनने वाले परिवार लाचार हैं. उनके लिए कानून के लंबे हाथ मददगार नहीं बन पाते हैं. ऐसा क्यों होता है.

प्रयागराज (ब्‍यूरो)। यह जानने के लिए दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट ने बुधवार को एक ऐसे युवक से सम्पर्क किया जिसकी गर्दन और बांह मांझे से कट गयी थी। धरती के भगवान ने उसकी जिंदगी बचा ली। इसके चलते परिवार को तमाम दिक्कतें झेलनी पड़ी। लेकिन, इस मामले में न तो कोई रिपोर्ट दर्ज करायी गयी और न ही यह सिलसिला थमा। क्यों ऐसी स्थिति आयी होगी? यह हमने पुलिस, अधिवक्ता और पीडि़त से जानने की कोशिश की। चौंकाने वाला तथ्य सामने आया। पता चला कि इस कातिल के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए पुलिस के पास हथियार बेहद कमजोर है। रिस्क घायल या मृतक के परिजनो को लेना होगा, तभी किसी स्तर पर कार्रवाई की नौबत आयेगी।

घायल की कहानी उसी की जुबानी
कीडगंज के रहने वाले अमेय अग्रवाल बीआईटी नोएडा से बीएससी की पढ़ाई कर रहे हैं। परिवार में एक बहन संपदा और मां जया हैं। पिता अतुल अग्रवाल सेंट्रल एक्साइज में नौकरी करते हैं। 6 महीने पहले वह अपने मित्र अनमोल जयसवाल के साथ रामबाग से सामान खरीद के कीडगंज लौट रहे थे। रामबाग डाट पुल पर अचानक से मंझा उनके गले में लिपट गया। इससे गर्दन कट गयी और तेजी से खून बहने लगा। स्कूटी के पीछे बैठे अनमोल भी इससे बच नहीं पाये। गले के साथ कंधे पर जख्म बन गया। यह देखकर चलने वाले रुक गये। उन लोगों ने मानवता दिखायी और आनन-फानन में अस्पताल पहुंचाया। ईश्वर का शुक्र था कि इलाज के बाद जान बच गयी। अमेय अग्रवाल बताते हैं कि उस वक्त स्कूटी की स्पीड थोड़ा भी और तेज होगी तो शायद जान न बचती। हेलमेट ने भी उनका जीवन बचाने में मदद की। वह बताते हैं कि मांझे की धार इतनी तेज थी कि गले में लिपटते ही उनके गले से ब्लड निकलना शुरू हो गया। उनका कहना है यहां जानलेवा हमले का मामला है। इस पर धारा 307 के तहत मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए था। एक पल के लिए मन में तो आया कि कि मुकदमा दर्ज करा दें। पुलिस से संपर्क भी किया। पुलिस ने कहा कि हत्या के प्रयास का मुकदमा आखिर दर्ज किस पर करें? इसके बाद उन्होंने इस घटना को सिर्फ एक बुरे सपने की तरह दिमाग से हटाना तय कर लिया और मुकदमा दर्ज नहीं कराया। उनका कहना है कि यह भी हमले का मामला है। इसके लिए भी कड़ा कानून होना चाहिए।

कातिल मांझे के लिए कोई धारा नहीं
कातिल मांझे का इस्तेमाल होने पर पुलिस के पास कार्रवाई के लिए सीधे कोई धारा नहीं है। आम्र्स एक्ट में इसका कोई प्रावीजन नहीं है। पुलिस के पास कार्रवाई के लिए ऑप्शन तब बनता है तब मुकदमा लिखा जाए। डिप्टी एसपी सत्येंद्र तिवारी बताते हैं कि मांझे से कोई घायल होता है और उसका जीवन संकट में पड़ता है तो धारा 338 के तहत कार्रवाई की जा सकती है। किसी की जान चली जाती है तो धारा 304 ए के तहत मुकदमा दर्ज हो सकता है। वह बताते हैं कि सिर्फ मांझा पर कार्रवाई के लिए कोई धारा ही नहीं है क्योंकि यह किसी कैटेगिरी के हथियार में शामिल नहीं है।

इस तरह की घटनाएं बहुत ही दुखद होती हैं। क्योंकि ऐसे मामलों में सीधे किसी को आरोपित भी नहीं बनाया जा सकता। मांझा से नुकसान झेलने वालों के लिए सरकार की तरफ से मुआवजे का प्रावधान किया जाना चाहिए। हत्या का मुकदमा लिखा जाना चाहिए भले ही अज्ञात में लिखा जाए। जांच के दौरान पुलिस आरोपितों को पकडऩे की कोशिश करे। तभी कुछ राहत मिलेगी।
विजय द्विवेदी, अधिवक्ता

खरीदना व बनाना वाला दोनों ही गलत है। इस मुद्दे को लेकर सरकार के सामने अपना पक्ष जरूर रखा जाएगा। इस पर सख्त कानून बनना चाहिए, टोटल इसको बैंड कर देना चाहिए। जो बेचता हुआ पाया जाए या फिर खरीदा हुआ पाया जा दोनों पर कार्रवाई हो।
अनिल कुमार सिंह चीफ स्टैंडिंग काउंसलिंग इलाहाबाद हाई कोर्ट

यह मुद्दा काफी संवेदनशील है। मंझा प्रतिबंध होने के बाद भी बेचा जा रहा है। इसमें क्रेता और विक्रेता दोनों पर गैर इरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज होना चाहिए। इस पर गंभीर होकर कार्रवाई भी हो तभी बिक्री पर पूर्ण पाबंदी लगायी जा सकेगी।
कृष्णा शर्मा, अधिवक्ता

Posted By: Inextlive