- एनआईसीयू की कमी होने से मरीजों को नहीं मिल पा रहा वेंटीलेटर



प्रयागराज ब्यूरो । प्रयागराज- कौशांबी के रहने वाले विवेक पांडे का बेटा महज चार दिन का था। अचानक उसकी तबियत खराब हो गई। डॉक्टर्स ने कहा कि उसे वेंटीलेटर की जरूरत है। परिजन उसे चिल्ड्रेन अस्पताल लेकर गए लेकिन वहां बताया गया कि यहां वेंटीलेटर खाली नहीं है। बेली और डफरिन अस्पताल में भी उसे भर्ती करने की जगह नहीं मिली। परिजन उसे दिल्ली एम्स लेकर गए लेकिन यहां भी डॉक्टर से अपाइंटमेंट नहीं मिल पाया। आनन फानन में बच्चे को लेकर फिर से प्रयागराज आए परिजनों ने चिल्ड्रेन अस्पताल में काफी मिन्नत की, तब जाकर उन्हें बेड मिल सका। हालांकि तब तक इतनी देर हो चुकी थी लेकिन बच्चा सर्वाइव नही कर सका और उसकी मौत हो गई। हालांकि यह पहली घटना नही है। नवजात शिशुओं की एनआईसीयू की कमी से अक्सर जान चली जाती है। उन्हें मौके पर वेंटीलेटर की सुविधा उपलब्ध नही हो पाती है।

70 लाख की आबादी पर केवल 27 वेंटीलेटर

प्रयागराज जिले की आबादी वर्तमान में 70 लाख के आसपास है लेकिन यहां पर एक माह तक के नवजात शिशुओं के लिए उपलब्ध एनआईसीयू वार्ड में महज 27 वेंटीलेटर ही उपलब्ध है। इतनी बड़ी आबादी में यह संख्या काफी कम है। अक्सर यह पूरी तरह से फुल होते हैं और नए मरीजों को रखने के लिए काफी जददोजहद करनी पड़ती है। जानकारी के मुताबिक चिल्डेन अस्पताल में 15 और डफरिन अस्पताल में 12 वेंटीलेटर मौजूद हैं। डॉक्टर्स का कहना है कि यहां भर्ती होने वाले नवजात शिशुओं को ठीक होने में काफी समय लग जाता है। इसलिए एक बच्चे के भर्ती होने के बाद बेड खाली होने में काफी समय लगता है। ऐसे में नए मरीजों को भर्ती करने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। प्राइवेट में कर दिए जाते हैँ रेफरसरकारी अस्पतालों में जहां वेंटीलेटर का इलाज फ्री है वहीं प्राइवेट में इसके लिए प्रतिदिन दस से पचास हजार रुपए तक खर्च हो जाता है। इलाज इतना महंगा है कि हर व्यक्ति इसे अफोर्ड नही कर पाता है और अंत में बच्चे की जान चली जाती है। प्राइवेट अस्पताल के डॉक्टर्स का कहना है कि छोटे बच्चों के वेंटीलेटर को संचालित करना आसान नही है। इसके लिए परमानेंट डॉक्टर की आवश्यकता होती है। अगर जरा सी लापरवाही हुई तो मरीज की जान भी जा सकती है। पीआईसीयू में भर्ती नही होते नवजात
बेली अस्पताल में भी कोरोना काल के दौरान पीआईसीयू वार्ड का निर्माण किया गया था। लेकिन यहां पर छह साल से अधिक उम्र के बच्चों को भर्ती किया जाता है। डॉक्टर्स का कहना है कि हमारे यहां नवजात को भर्ती करने की सुविधा नही है। न तो वेंटीलेटर है और न ही डॉक्टर्स हैं। इसलिए इतने छोटे बच्चों को चिल्ड्रेन अस्पताल के लिए रेफर कर दिया जाता है। बता दें कि प्रयागराज में रोजाना सैकडों की संख्या में बच्चे पैदा होते हैं लेकिन इनके इलाज की बेहतर सुविधा सरकारी महकमे में उपलब्ध नही है। क्यों होती है वेंटीलेटर की आवश्यकतानवजात बच्चों को वेंटीलेटर की आवश्यकता तब होती है जब उन्हें जन्म के ठीक बाद आक्सीजन नही मिलती है। ब्रेन को आक्सीजन नही मिलने से वह अचेत हो जाता है और ऐसे में वेंटीलेटर की आवश्यकता होती है। डॉक्टरों की माने तो रोजाना पैदा होने वाले 5 फीसदी बच्चों को काम्प्लिकेशन होने पर वेंटीलेटर की जरूरत होती है। इसके अलावा जो बच्चे समय से पहले पैदा होते हैं उनको प्री मैच्योर बेबी कहते हैं। उनको भी वेंटीलेटर चाहिए होता है।हमारे यहां छह साल से अधिक उम्र वाले बच्चों के लिए वेंटीलेटर है। एक माह से कम वाले बच्चों को नही भर्ती किया जाता है। हमारे पास इतने छोटे बच्चों के फालोअप के लिए स्टाफ भी नही है। डॉ। एमके अखौरी, अधीक्षक बेली अस्पताल
कुल 15 बेड का एनआईसीयू हमारे पास है और अक्सर यह बेड फुल होते हैं। नए बच्चों को भर्ती करना आसान नही होता है। जब तक बेड खाली नहीं होगा नए मरीज को भर्ती नही कर पाएंगे।डॉ। एमवी सिंह, एचओडी, चिल्ड्रेन अस्पताल

Posted By: Inextlive