जनता के बीच रहना आया काम
प्रयागराज (ब्यूरो)। शहर उत्तरी विधानसभा सीट पर लगातार दूसरी बार भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर हर्षवर्धन बाजपेयी को जीत मिली है। इस सीट को लेकर जनरल परसेप्शन था कि मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी अनुग्रह नारायण सिंह और हर्षवर्धन के बीच होगा लेकिन रिजल्ट चौंकाने वाला आया। इस सीट पर अनुग्रह कहीं लड़ाई में ही नहीं दिखे। उनके स्थान पर समाजवादी पार्टी के संदीप यादव ने अच्छी लड़ाई लड़ी। बता दें कि यही वह सीट थी जिस पर भाजपा ने सबसे देर में अपना प्रत्याशी घोषित किया था। माना जा रहा है कि इसके चलते हर्षवर्धन के पक्ष में सिम्पैथी क्रिएट हुई। इसी के बदौलत उन्होंने शानदार जीत हासिल कर ली।
सिद्धार्थ ने विकास की इबारत पर लिखी जीत की पटकथा
शहर पश्चिमी विधानसभा सीट पर सीधा मुकाबला पूर्व सरकार में कैबिनेट मिनिस्टर रहे सिद्धार्थ नाथ सिंह और समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी डॉ। ऋचा सिंह के बीच था। कांग्रेस से तस्लीमुद्दीन और बहुजन समाज पार्टी से गुलाम कादिर का मैदान में उतरना सिद्धार्थ नाथ सिंह के पक्ष में चला गया। वह क्षेत्र के विकास का मुद्दा लेकर मैदान में उतरे थे। पिछली बार उनके इस सीट पर जीतने से पहले यहां से अतीक अहमद के परिवार का कब्जा था। इससे इस क्षेत्र में विकास का मुद्दा गौड़ होता था। भाजपा सरकार में अतीक पर खुलकर कार्रवाई की गयी। इसका असर भी इस सीट के चुनाव परिणाम में दिखा।
फाफामऊ विधानसभा सीट पर पिछली बार भी भाजपा और सपा के बीच सीधा मुकाबला था। भारतीय जनता पार्टी ने सिटिंग सीट होने के बाद भी प्रत्याशी बदल दिया था। विक्रमाजीत के स्थान पर गुरू प्रसाद मौर्या पर पार्टी ने दांव लगाया। उनके निकटतम प्रतिद्वन्दी एक बार फिर से समाजवादी पार्टी के अंसार अहमद थे। अंसार 2012 में इस सीट पर विधायक रह चुके थे। संयोग से इस बार भी दोनों के बीच नजदीकी मुकाबला रहा। इसमें बाजी भाजपा प्रत्याशी गुरू प्रसाद के हाथ लगी। गुरू प्रसाद को पूर्व सरकार में डिप्टी सीएम रहे केशव प्रसाद मौर्या का करीबी बताया गया था।
यमुना को उठाना पड़ा नाराजगी का नुकसान
सोरांव सीट इस बार समाजवादी पार्टी ने अपना दल से छीन ली है। पिछली बार इस सीट पर भाजपा अपना दल गठबंधन के प्रत्याशी यमुना प्रसाद सरोज के हाथ जीत लगी थी। यमुना प्रसाद अपना दल सोनेलाल के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। इसी के चलते इस बार भी उन्हें गठबंधन ने अपना प्रत्याशी बनाया था। उनके सामने सपा की गीता शास्त्री थीं। बताया जाता है कि यमुना प्रसाद को लेकर पब्लिक में नाराजगी थी। इसी कारण के चलते उन्हें चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ गया। समाजवादी पार्टी ने भी इस सीट पर अपना चेहरा बदला था, इसका लाभ उसे मिल गया।