प्रयागराज ब्यूरो । कुरआन की आयतें पढ़ कर रोजेदारों द्वारा घर से मस्जिद तक की गई अल्लाह की इबादततीन अशरों में बांटा गया है रमजान का मुकद्दस महीना हर अशरे की है अपनी अलग खासियत माह-ए-रमजान बख्शीश और मुबारक का महीना है. रोजा के पहले दिन रविवार को घर से लेकर मस्जिद तक कुरआन की आयतें पढ़ी गईं. इसी बीच रोजे की नमाज भी अदा की गई. रमजान का मुकद्दस महीना तीन अशरों में बंटा है. इस पाक महीने के पहले दस दिन रहमत के अशरे में आते हैं. जबकि दूसरे दस दिन मगफिरत और रमजान का आखिरी दस दिन जहन्नुम से निजात का अशरा होता है. पहले अशरा अशरा रहमत का है. इस अशरे में अल्लाह अपने बंदों पर रहमत की बारिश करते हैं. अथाना इन दस दिनों तक रोजेदारों व नमाजियों पर अल्लाह की बेशुमार रहमें नाजिल होती हैं. दूसरे अशरे में अल्लाह मरहूमों मगफिरत फरमाते हैं और रोजेदारों को उनके गुनाहों से आजाद करते हैं. जबकि तीसरे और आखिरी अशरे में अल्लाह अपने बंदों को जहन्नुम से निजात देते हैं.


प्रयागराज (ब्यूरो)। इस्लाम धर्म के जानकारों की मानें तो रोजा रखने का मतलब सिर्फ यह नहीं कि दिन भर कुछ खाया पिया नहीं जाय। रोजा सभी को हर तरह के गुनाहों और बुराइयों से दूर रहने की सीख देता है। रोजा आंख, नाक, कान, मुंह और हाथ व पैर एवं दिमाग तक का होता है। कहते हैं कि रोजा बुरा या बुराइयों को देखने व सुनने एवं मुंह से बुरा बोलने और बुराइयों की तरफ कदम उठाने की इजाजत नहीं देता। पाक रमजान महीने में रोजा रखना अल्लाह की सबसे बड़ी इबादत है। हर गुनाहों से दूर रहकर रोजा रखने वाले बंदों पर अल्लाह रहमतों की बारिश करते हैं। यही वह महीना है जिसमें अल्लाह जन्नत के सारे दरवाजे खोल देते हैं। फरिश्तों को अल्लाह का हुक्म होता है कि मेरे बंदों को वो सब कुछ दे दो वह जिस चीज की ख्वाहिश रखते हैं। रमजान इस्लामिक कैलेंडर का एक पवित्र महीना है। इस्लाम धर्म के जानकार कहते हैं कि यही वह पाक महीना है जिसमें पैगंबर मोहम्मद (स.अ.) प पवित्र कुरान नाजिल हुआ था।

अल्लाह ताला की इबादत का यह पाक महीना है। इस महीने में रोजेदार की हर मुराद अल्लाह पूरी करते हैं। रोजा रखने के कई दीनी फायदे व कायदे हैं।
ह$जरत मौलाना मो। आरिफ वारसी, मुतवल्ली वारसी कमेटी

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