मोटे अनाज से बने खाद्य पदार्थों के प्रति पब्लिक में क्रेज जगाने के लिए एयरपोर्ट पर मंगलवार को 'मिलेट्स एवं पोषणÓ विषय पर वर्कशाप का आयोजन किया गया. मुख्य वक्ता प्रो जीएस तोमर ने कहा कि भारत के प्राचीन पोषक अनाज 'श्री अन्नÓ को भोजन की थाली में पुन: सम्मानजनक स्थान दिलाने के लिए सभी को मिलकर प्रयास करना होगा. मोटे अनाज की उपयोगिता एवं आवश्यकता सम्बन्धी भारत के प्रस्ताव का 72 देशों ने समर्थन किया है और आज भारत इंटरनेशनल ईयर आफ मिलेट्स का प्रतिनिधित्व कर रहा है.


प्रयागराज ब्यूरो ।हम आम तौर पर ग्लूटीन और कम फाइबर युक्त अनाज जैसे गेहूं और चावल ही खाते हैं जो हमारे शरीर पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव एवं हरित क्रांति से मोटा अनाज यानी मिलेट्स हमारे थाली से गायब हो गया। हरित क्रांति के फायदे कम नुकसान कहीं अधिक हुए हरित रासायनिक खाद और विदेशी बीज के आयात से अनेक बीमारियों ने जगह बना ली। हमने उत्पादन तो बढ़ाया पर भोजन की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया। आज पूरा देश लाइफस्टाइल बीमारियों डायबिटीज, हाइपरटेंशन, अर्थराइटिस, एनीमिया, कैल्शियम की कमी, कुपोषण की समस्या से जूझ रहा है जिसका एक मात्र समाधान मिलेट्स हैं। बाजरा, बाजरा, रागी, सामा, कोदो, कुटकी, कंगनी जैसे महत्वपूर्ण मिलेट्स हाई फाइबर युक्त हैं और इनमे कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, विटामिन, विटामिन बी6, फोलिक एसिड, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा गेहूं और चावल से कई गुना ज्यादा है जो हमें अनेक बीमारियों से बचा सकते हैं। डायरेक्टर आरआर पाण्डेय ने बताया कि मोटे अनाज को पकाने की प्रक्रिया भी महत्वपूर्ण है। ओवर प्रोसेसिंग से मिलेट की गुणवत्ता समाप्त न हो, इसका भी ध्यान रखना चाहिए। भारत विश्व में मोटे अनाज का सबसे बड़ा उत्पादक देश है इसलिए इस पहल को सफल बनाने की बड़ी जिम्मेदारी भी हमारी है। आयुर्वेद चिकित्साधिकारी डा अवनीश पाण्डेय, सहायक महाप्रबंधक अभिषेक केशरी, फहरुख एहसान, प्रदीप सागर, डा आशीष कुमार मौर्य, चीफ सिक्योरिटी ऑफिसर विजय कुमार मिश्र एवं एयरपोर्ट अथॉरिटी के अधिकारी एवं कर्मचारी मौजूद रहे।

Posted By: Inextlive