खत्म हुआ कल्पवास, आज घर लौटेंगे श्रद्धालु
प्रयागराज (ब्यूरो)।
क्या है माघी पूर्णिमा का महत्वपुराणों के अनुसार माघी पूर्णिमा पर भगवान श्रीविष्णु गंगाजल में निवास करते हैं। माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से शोभायमान होकर अमृत की वर्षा करते हैं। इसके अंश वृक्षों, नदियों, जलाशयों और वनस्पतियों में होते हैं इसलिए इनमें सारे रोगों से मुक्ति दिलाने वाले गुण उत्पन्न होते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार माघ पूर्णिमा में स्नान दान करने से सूर्य और चंद्रमा युक्त दोषों से मुक्ति मिलती है। इसलिए इस दिन गंगा नदी में स्नान करना चाहिए, इसके अलावा गंगाजल का आचमन यानी हथेली में थोड़ा सा गंगाजल पी लेने से भी पुण्य मिलता है। माघी पूर्णिमा पर भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करना चाहिए। इससे हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। माना जाता है कि माघी पूर्णिमा पर देवता भी रूप बदलकर गंगा में स्नान करने आते हैं।
दान करने से मिलती है नरक से मुक्ति
बताया जाता है कि श्रद्धालु तीर्थराज प्रयाग में एक मास तक कल्पवास करते हैं। माघी पूर्णिमा पर उनके व्रत का समापन होता है। सभी कल्पवासी माघी पूर्णिमा पर मां गंगा की आरती पूजन करके साधु संन्यासियों और ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं। बची हुई सामग्री का दान कर देवी गंगा से फिर बुलाने का निवेदन करने के बाद घर को प्रस्थान करते हैं। माघ पूर्णिमा पर ब्रह्म मुहूर्त में नदी स्नान करने से रोग दूर होते हैं। इस दिन तिल और कंबल का दान करने से नरक लोक से मुक्ति मिलती है। बता दें कि कल्पवास के पहले शिविर के मुहाने पर तुलसी और शालिग्राम की स्थापना कर उनकी रोजाना पूजा की जाती है और कल्पवासी परिवार की समृद्धि के लिए शिविर के बाहर जौ का बीज जरूर रोपते हैं। कल्पवास समाप्त होने पर तुलसी को गंगा में प्रवाहित कर शेष को अपने साथ ले जाते हैं।
सुबह स्नान आदि करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें।
पितरों का श्राद्ध कर ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र, तिल, कंबल, कपास, गुड़, घी, फल, अन्न आदि का दान करें।
माघी पूर्णिमा गौ दान का विशेष फल प्राप्त होता है। इसी दिन संयमपूर्वक आचरण कर व्रत करें। दिन भर कुछ खाए नहीं।
एक समय फलाहार करना फलदायक होता है। इस दिन ज्यादा जोर से बोलना नही चाहिए या क्रोध नही करना चाहिए।
संयमपूर्वक व्रत करने से व्रती को पुण्य फल प्राप्त होते हैं।
होने लगी पैकिंग, लौटने को तैयार
जो कल्पवासी मकर संक्रांति में आए थे वह 14 फरवरी से पहले ही लौट गए। इनकी संख्या बीस फीसदी के आसपास थी। जो कल्पवासी पौष पूर्णिमा पर आए थे वह माघी पूर्णिमा पर आज या फिर गुरुवार को लौट जाएंगे। जिसकी तैयारियां मंगलवार से शुरू हो गईं। टेंट में रखा सामान समेटा जाने लगा। वाहन बुक हो गए। चला चली की बेला में कल्पवासी अपने आसपास के लोगों से मिलने जुलने में लगे रहे। यह माह साथ रखने के दौरान उनमें अच्छे संबंध भी विकसित हो गए।
माघी पूर्णिमा पर होने वाली जबरदस्त भीड़ को देखते हुए मेला प्रशासन ने मंगलवार दोपहर को ही रूट डायवर्ट कर दिया। मेले के भीतर काली सड़क पर वाहनों को जाने पर रोक लगा दी। चार पहिया वाहनों को पार्किंग में लगवा दिया गया। केवल दो पहिया वाहनों को जाने देने की छूट रही। जिस तरह से भीड़ का आगमन हो रहा था उसको देखते हुए शाम से ही दो पहिया वाहनो पर भी रोक लगा दी गर्ई। मौसम खुलने से धूप निकलने पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के माघी पूर्णिमा पर पहुंचने की उम्मीद की जा रही है।
एक माह भगवान की पूजा में कब बीत गया पता ही नही चला। अब घर वापस जाना है। गंगा मईया चाहेंगी तो अगले साल फिर से कल्पवास करने संगम नगरी जरूर आएंगे।
सत्यवती देवी, कल्पवासी
उर्मिला देवी, कल्पवासी जाते समय कल्पवासी यही मांगते हैं कि गंगा मईया अगले साल फिर बुला लेना। जो सच्चे मन से कल्पवास करते हैं उनकी मनोकामना गंगा मईया जरूर पूर्ण करती हैं।
राम लखन शुक्ला, कल्पवासी सब कुछ यही दान करने के बाद घर जाना होता है। इससे पहले ब्राम्हणों को भोजन कराना होता है। माघी पूर्णिमा पर नियम संयम का पालन करना होता है।
निर्मला देवी, कल्पवासी जाने से पहले कल्पवासी रामायण का पाठ कराते हैं या श्रीसत्यनारायण भगवान की कथा कराते हैं। इसके बाद भंडारे का आयोजन किया जाता है। पौष पूर्णिमा से शुरू हुआ कल्पवास माघी पूर्णिमा को समाप्त हो जाता है।
मधु चकहा, तीर्थ पुरोहित