एक सूत्र में पिरो गया कल्पवास
एक माह की कठिन तपस्या में एकजुट रहा लोगों का परिवार
सुध लेने आए अपने, एक चूल्हे में पका खाना कई परिवारों के बीच बना रिश्ता, तय हो गई शादियां प्रयागराज- माघ मेले में एक माह का कल्पवास सही मायनों में कठिन तपस्या से कम नहीं है। श्रद्धालुओं को इस तपस्या का फल भी प्राप्त हो जाता है। लेकिन इस व्रत के दूसरे पहलू भी हैं। कल्पवास लोगों को एक सूत्र में पिरोने का काम भी करता है। कई अनजान परिवार एक रिश्ते में बंध जाते हैं। खुद के परिवार के सदस्य भी एकजुट होते हैं, जिससे उनके बीच की दूरियां खत्म हो जाती हैं। ऐसे कई सामाजिक ताने-बाने से बंधे कल्पवास का शनिवार को समापन हो गया। माघी पूर्णिमा के स्नान के बाद कल्पवासियों ने नम आंखों से एक-दूसरे से विदा ली। ठाकुर साहब को मिल गया बेहतर रिश्तामेले के सेक्टर नंबर पांच में कौशांबी से कल्पवास करने आए दीनानाथ ठाकुर की सबसे छोटी बेटी का रिश्ता लगभग तय हो गया है। उनके बगल के टेंट में कल्पवास करने आए नैनी के बच्चा सिंह का बेटा उन्हें पसंद आ गया। दोनों परिवारों के बीच बातचीत शुरू हो गई है। कल्पवास के दौरान ही दोनों परिवार एक दूसरे के काफी करीब भी आ गए। रायबरेली से कल्पवास करने आए सुरेंद्रनाथ शुक्ला की बेटियों की शादी प्रयागराज में हुई है। आमतौर पर सभी बेटियां एक साथ मायके नहीं जा पाती हैं। एक माह के कल्पवास के दौरान सभी कुछ दिनों के लिए एक साथ टेंट पर पहुंची। अल्टरनेट कोई न कोई टेंट में बना रहा।
गंगा मैय्या की आएगी याद एक माह तक जीवनदायिनी गंगा की गोद में कल्पवास करने के बाद जब शनिवार को माघी पूर्णिमा के स्नान के बाद लोग घर लौटने लगे तो उनकी आंखें नम हो गई। उन्होंने कहा कि गंगा मैय्या आपकी बहुत याद आएगी। अब अगले साल कल्पवास में आने का इंतजार रहेगा। त्रिवेणी के तट पर पूजा पाठ करने का अवसर कठिन तपस्या से ही मिलता है। सात लाख ने लगाई डुबकीमाघ मेले में अभी महाशिवरात्रि का स्नान पर्व शेष है लेकिन माघी पूर्णिमा से कल्पवास का समापन हो जाता है। शनिवार को सुबह संगम में डुबकी लगाने के बाद कल्पवासियों की रवानगी का सिलसिला शुरू हो गया। बड़ी संख्या में ट्रैक्टर में सवार कल्पवासी अपने घरों को लौट गए। जो बाकी रह गए वह रविवार को जाएंगे। दिनभर में संगम के तट पर सात लाख श्रद्धालुओं ने स्नान कर हर हर महादेव का जयकारा लगाया। हर साल कल्पवास पौष पूर्णिमा से शुरू होकर माघी पूर्णिमा तक चलता है।
एक माह कब बीत गया पता ही नहीं चला। कई रिश्तेदारों से भेंट हो गई। सालभर जो लोग घर नहीं आ पाते वह यहां पर स्नान करने जरूर आते हैं। ऐसे में उनसे आमना सामना हो जाता है। सुरेंद्रनाथ शुक्ला, कल्पवासी कठिन तपस्या और त्याग से ही एक माह का कल्पवास पूरा होता है। एक समय भोजन करना होता है और इसके बाद सूर्य की पहली किरण से पहले गंगा स्नान। घर जाने के बाद यह सभी चीजें याद आएंगी। उर्मिला शुक्ला, कल्पवासी कल्पवास के दौरान जिस समूह में आप रहते हैं वह एक परिवार की तरह हो जाता है। अनजान लोग भी अपने बन जाते हैं। जिनसे रिश्ता नहीं होता उनसे भी अपनापन जाग जाता है। सूर्यमणि शुक्ला, कल्पवासी जो बेटा बाहर नौकरी करता है वह भी कल्पवास में छुट्टी लेकर आया था। सभी बेटे एक साथ हमारी सेवा में जुटे रहते हैं। इससे बेहतर क्या होगा। गंगा किनारे की मिट्टी की यही खूबी है। निर्मला शुक्लाएक माह तक श्रद्धालु कठिन तप करते हैं। गृहस्थ जीवन से दूर उनका उददेश्य मोक्ष की प्राप्ति होती है। उनके इस तप में भी उनका परिवार साथ देता है। सगे संबंधियों के बिना यह तप भी पूरा नही होता।
नीरज स्वरूप ब्रम्हचारी महाराज जीवन के इस पड़ाव में जब ईश्वर की प्राप्ति के लिए लोग गंगा के तट पर आते हैं तो यहां पर भी अपने उनका साथ नहीं छोड़ते। किसी न किसी रूप में भगवान स्वयं इस कठिन व्रत को पूरा करने में साथ देते हैं। सत्यवती सिंह, कल्पवासी कल्पवास में जिनसे रिश्ता जुड़ता है वह अगले साल फिर मिलते हैं। इस तरह से हर बार कुछ नए लोग जुड़ते जाते हैं। कल्पवास हमें एक सूत्र में पिरोने का काम करता है। कलावती मिश्रा, कल्पवासी