'पगली घंटी' के खौफ से थर्राती है जेल!
प्रयागराज (ब्यूरो)।
3400 कैदी व बंदी मौजूदा समय में हैं इस जेल में
2016 में पास हुआ एक नई जेल बनाने का बजट
2018 में इस नई जेल का निर्माण किया गया शुरू
24 जनवरी 2022 को नए जेल का लोकार्पण
अपराधियों से उनका पूरा इलाका भले डरता हो, मगर नैनी सेंट्रल जेल के अंदर जेलर के बाद किसी का रौब और खौफ है तो वह 'पगली घंटीÓ ही है। 'पगली घंटीÓ के बजते ही जेल में बंद खूंखार से खूंखार अपराधी भी खौफ से थर्राने लगते हैं। यहां तक कि अधिकारियों व जवानों को भी पसीने छूट जाते हैं। जेल का जर्रा-जर्रा अलर्ट मोड में आ जाता है। बैरकों में चेकिंग और सुरक्षा से जुड़े अन्य सारे इंतजाम बगैर देर किए शुरू हो जाते हैं। सारे जवान जहां और जिस स्थिति में होते हैं भागकर जेल के अंदर पहुंच जाते हैं। सारे कैदी व बंदी तक लाइनअप हो और सतर्क मोड में आ जाते हैं। क्या है जेल की पगली घंटी? हम आप को यह सब कुछ बताएंगे। मगर, इसके पहले आप जान लीजिए कि यहां एक जेल ऐसी भी है, जिसमें किसी कैदी या बंदी के नहीं होने के बावजूद पिछले छह महीने से अफसर और जवान ड्यूटी और घंटा बजा रहे हैं। इस खाली जेल में बाकायदे जवानों की ड्यूटी और पहरा लगता है जिसकी अधिकारी रूटीन वर्क में चेकिंग भी कर रहे हैं।
जानिए क्यों बनाई गई यह नई जेल
नैनी सेंट्रल जेल होने के बावजूद एक और नई जेल बनाने के पीछे बड़ा कारण है। दरअसल नैनी सेंट्रल जेल की क्षमता मात्र 200 से 2200 कैदियों या बंदियों को रखने की है। मगर मौजूदा हालात यह है कि इस जेल में 3400 के आसपास कैदी व बंदी रखे गए हैं। मतलब यह कि वर्षों से इस नैनी सेंट्रल जेल ओवर लोड हो चुकी है। यहां पर जेल की क्षमता से अधिक बंदी और कैदी हैं। इस जेल में क्षमता से अधिक रखे गए कैदियों को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। कैदियों की परेशानी व नैनी सेंट्रेल जेल का लोड कम करने के लिए नई जेल बनाने का निर्णय लिया गया। बताते हैं कि इस नई जेल को बनाने के लिए वर्ष 2016 में करोड़ों रुपये का बजट स्वीकृत हुआ था। पैसा मिलने के बाद वर्ष 2018 में इसका निर्माण शुरू हुआ। इस जेल की बिल्डिंग बनकर तैयार होने के बाद 24 नवंबर 2022 को खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के द्वारा बिल्डिंग का लोकार्पण किया गया था। जेल की यह नई बिल्डिंग सेंट्रल सेंट्रेल जेल के ठीक पास में बनाई गई है। लोकार्पण के बावजूद इसमें आज तक एक भी कैदी या बंदी नहीं रखे जा सके हैं।
क्या है पलगली घंटी और ध्वनि के संदेश
वर्षों पूर्व जब संचार माध्यम इतना तगड़ा व हाईटेक नहीं उस दौर में तुहरी, नगाड़ा व ढोलक के ध्वनि के माध्यम से ध्वनि करके ही सूचनाओं का आदान प्रदान किया जाता है। राजा रजवाड़ों से लेकर कबीले के सरदार व लोग एवं जंगलों में रहने वाले लोगों में ध्वनि सूचना माध्यम का प्रयोग किया जाता था। यह परंपरा इस आइटेक युग में बंद हो गई, आज अपना देश चांद पर पहुंच चुका है। फिर जेल के अंदर कैदियों व बंदियों को सूचनाएं देने के लिए घंटी आज भी बजाई जाती है। इसकी आवाज से जेल में बंद कैदी व बंदी ही नहीं अफसर और बंदी रक्षक तक बगैर कुछ बताएं अंदर के हालात भलीभांति समझ जाते हैं। जेल के सूत्र बताते हैं कि लगातार तेज-तेज बगैर रुके एक ही आवाज में 50 बार बजाई जाने वाली घंटी को पगली घंटी कहते हैं। यह इस तरीके से घंटी की आवाज का मतलब है कि जेल में कैदियों के बीच मारपीट या जवानों पर हमला, अथवां कोई बड़ी बात हो गई है जिसे फौरन कंट्रोल करने की जरूरत है। यह घंटी बजने के बाद सभी अफसर व बंदी रक्षक जहां और जिस सिचुएशन में होते हैं अलर्ट मोड़ में भागकर जेल के अंदर पहुंचकर एक्शन आ जाते हैं। इस आवाज सुनते ही बंदी व कैदी भी थर्रा उठते हैं। क्योंकि वह जान जाते हैं कि माहौल खराब करने वाले बंदी या कैदी को जवानों के हल्के बल प्रयोग का सामना करना ही पड़ेगा। इसके अतिरिक्त सुबह, दोपहर और शाम को तीन-तीन बाज रुक-रुक कर बजने वाली घंटी के आवाज में नाश्ता, और खाने का संदेश बंदियों व कैदियों को मिल जाता है। बताते हैं कि जब यही घंटी पांच बार बजती है तो संदेश होता है कि सारे बंदी व कैदी अपने बैरक में पहुंच जाएं।
जेल के अंदर या बैरक में नहीं होती घड़ी
जेल के अंदर या बैरकों में घड़ी तो होती नहीं। लिहाजा इसी घंटी के ध्वनि से कैदियों व बंदियों को समय की जानकारी ड्यूटी पर तैनात बंदी रक्षक देते हैं। जैसे पांच बार रुक-रुक कर धीमी ध्वनि में बजाने के बाद दो से तीन सेकंड रुककर एक तेज घंटी के ध्वनि से पता चलता है कि पांच बज गया। यही प्रक्रिया हर घंटे कैदियों व बंदियों को समय बताने के लिए अनाई जाती है। यदि धीमी ध्वनि में 12 बार घंटी बजा कर दो तीन सेकंड के बाद तेजी से टन्न की आवाज सुनते ही सभी बंदी व कैदी समझ जाते हैं कि इस समय दोपहर के बारह बज चुके हैं।
नवनिर्मित इस जेल में छह महीने पूर्व एक जेलर, तीन डिप्टी जेलर व 26 बंदी रक्षकों यानी सिपाहियों की तैनाती की गई।
इस जेल में तैनात कुछ जवान दबी जुबान बताते हैं कि इस जेल में तैनात जवानों की हर रोज आठ-आठ घंटे की बाकायदे ड्यूटी लगाई जाती है।
लगाई गई ड्यूटी की बाकायदे निगरानी भी की जाती है। चूंकि इस जेल में बंदी या कैदी तो हैं नहीं,
लिहाजा गेट से लेकर बैरक व परिसर तक में तैनात जवान दीवारों व दरवाजों को टुकुर-टुकुर निहारते हैं।
बताया तो यह भी जा रहा कि इस जेल के अंदर एक कोने में घंटा लगा है। जिसे ड्यूटी पर तैनात जवान हर घंटे इस घंटा को बजाते हैं।
ताकि जेल में बंद बंदियों व कैदियों को समय का पता चलता रहा। मगर यहां न बंदी हैं और न कैदी फिर घंटा बजाने के पीछे मकसद क्या है?
यह बात खुद अंदर तैनात बंदी रक्षकों को समझ नहीं आ रही है। यह प्रक्रिया पूरे छह महीने से चल रही है।
इतना ही नहीं जेल में बंदी और कैदी तो हैं नहीं, लिहाजा बगैर काम में ड्यूटी बजा रहे जवानों का बाकायदे वेतन दिया जा रहा है। इस पर भी दीजिए ध्यान
छह महीने पूर्व नई जेल में जवानों की हुई तैनाती
एक जेलर और तीन डिप्टी जेलर किए गए हैं तैनात
जेल अफसरों के साथ 26 जवानों की भी है तैनाती
बंदी रक्षकों की रोज 8-8 घंटे की लगाई जाती है ड््यूटी
हर घंटे पर घंटा बजा कर दीवारों को टाइम बता रहे जवान? जेल की नई बिल्डिंग में जल्द ही सेंट्रेल जेल के कुछ बंदी व कैदी शिफ्ट किए जाएंगे। इसका प्लान तैयार किया जा रहा है। अफसरों व जवान तैनात किए जा चुके हैं। ड्यूटियां इस लिए जगाई जा रहीं हैं ताकि काम उनके रूटीन और आदत में आ जाए। बजने वाली घंटी के ध्वनि में कई तरह के संदेश छिपे होते हैं।
रंगबहादुर पटेल, अधीक्षक नैनी सेंट्रल जेल