मलिन बस्तियों के डेढ़ सौ बच्चों के जीवन में मुफ्त शिक्षा की ज्योति जला रहे अभिषेक भीख मांग रही बच्ची के मासूम जवाब ने बदल दिया तैयारी करने वाले छात्र का मकसदअच्छे स्कूलों में नहीं करा पाए दाखिला तो जन सहयोग से खुद खोल दिए एक स्कूल

प्रयागराज (ब्‍यूरो)। जुनून हो और कुछ अच्छा करने की चाहत तो आर्थिक पक्ष मायने नहीं रखता। बस कदम बढ़ाने की जरूरत है, जन सहयोग खुद-ब- खुद मिलने लगेगा। अभिषेक शुक्ला को इस बात के लिए बतौर उदाहरण देखा जा सकता है। रोड पर भीख मांगने वाली एक बच्ची की दशा पर उनकी नजर क्या पड़ी उनके जीवन का मकसद ही बदल गया। गरीबी के चलते स्कूल से दूर स्लम बस्तियों में रहने वाले बच्चों के जीवन में वह शिक्षा की ज्योति जलाने का वीणा उठा लिए। आठ वर्षों से उनकी यह लगन और मेहनत देखकर मदद के लिए लोग अपने आप हाथ बढ़ाने लगे। मौजूदा समय में वह ऐसे गरीब परिवारों के बच्चों को मुफ्त में शिक्षा दे रहे हैं। जनसहयोग से वह बच्चों को कम्प्यूट तक का ज्ञान दे रहे हैं। इसके लिए बाकायदे वह एक छोटा सा स्कूल खोल रहे हैं। जहां दो से ढाई हजार पर मंथ में युवक बतौर टीचर उन बच्चों को पढ़ाया करते हैं।

मिशन से जुडऩे लगे लोग
अभिषेक शुक्ला मूल रूप से फूलपुर स्थित शुक्लान मोहल्ला के हैं। लोको पायलट पद से रिटायर पिता राम कुमार शुक्ला ने बेटे को सिविल सर्विसेज की तैयारी के लिए शहर भेजा था। उनका भाई विकास शुक्ला इंजीनियरिंग पूरी कर बंग्लोर में साफ्टवेयर इंजीनियर बन गया। अभिषेक बताते हैं कि 19 सितंबर 2016 की बात है, जब वह अलोपीबाग एरिया में कहीं जा रहे थे। इस बीच एक बच्ची तंग हालत में रोड पर भीख मांगते हुए उनके पास जा पहुंची। उन्होंने उसे पढ़ाई को लेकर सवाल लिया। बच्ची का मासूम सा जवाब, साहब मां नहीं, पिता शराब पीता है, छोटा भाई है। खुद और भाई को पालने के लिए तो पैसे हैं नहीं पढ़ाई कैसे करें। करीब सात आठ साल की उस बच्ची का वह जवाब अभिषेक के दिल में घर कर गया। वह उस बच्ची को लेकर चुंगी के पास झोपड़पट्टी में जा पहुंचे। बच्ची के साथ उन्हें देखकर बस्ती के लोग तंज कसने लगे। कहने लगे, क्या साहब फोटो खिंचाकर आप भी चले जाओगे। बच्चों को पढ़ाने नहीं लोग फोटो खिंचवाने ही यहां आते हैं। यह बात उनके दिमाग की हर नस में झंझनाहट पैदा कर दी। बस वहीं से उन्होंने मलिन बस्ती के बच्चों के जीवन में बुझी हुई शिक्षा की ज्योति को जलाने का फैसला कर लिए।

पाकेटमनी से शुरुआत
दूसरे दिन वह पिता को बगैर बताए पैसे मांगे और पेंसल कॉपी और किताबें लेकर उस बस्ती में जा पहुंचे। बच्चे वह सब पाकर खुश हुए। बस्ती के लोगों को यकीन नहीं था कि कोई उनके बच्चों की तकदीर बदलने के लिए कल भी आएगा। दूसरे दिन वह फिर पहुंचे और बच्चों को तिकोनिया चौराहा तिरंगा पार्क लाकर पढ़ाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे इन बस्तियों के लोगों का विश्वास उनपर बन गया और बच्चों को पढऩे के लिए उनके पास भेजने लगे। आज इन मलिन बस्तियों में रहने वाले परिवारों के करीब डेढ़ सौ बच्चे उनकी सरपरस्ती में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। पार्क में आने वाले बच्चों सभी बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देते हैं। उनके साथ अब पांच और तैयारी करने वाले युवक यहां नियमित रूप से शाम को उन्हें पढ़ाने के लिए पिछले कई वर्षों से जा रहे हैं। उन बच्चों को वह मुफ्त में कॉपी किताब और पेंशल आदि देते हैं। उनके मोटिवेशन से परिजन भी बच्चों की साफ सफाई पर ध्यान देने लगे हैं।

मदद को बढऩे लगे हाथ
उनके इस प्रयास से दर्जनों बच्चे पढऩे में काफी अच्छे निकल गए। यह बात आसपास के लोगों को मालूम चली तो वह उनके इस अभियान से जुडऩे लगे। कोई हजार कोई पांच सौ तो कोई दो हजार रुपये की मदद करने लगा। मदद मिली तो उनके हौसले को पंख लग गए। बात जब उनके रिटायर्ड लोको पायलट पिता और इंजीनियर भाई को मालूम चली तो वह विरोध के बजाय मदद में आगे आ गए। भाई और पिता की पूरी सर्किल मदद में जुट गई। उन सभी के जहन सहयोग से वह रेंट पर कमरा लेकर उन बच्चों के लिए स्कूल खोल दिए। उस स्कूल में कम्प्यूटर तक की शिक्षा वह मलिन बस्तियों के बच्चों को दे रहे हैं।

खुद रहते हैं स्कूल में
खुद के द्वारा खोले गए स्कूल में अभिषेक खुद भी रात में इसलिए रहते हैं क्योंकि, मलिन बस्तियों के आठ बच्चे ऐसे हैं जो हाईस्कूल और इंटर में काफी अच्छे नंबर लाए थे। वहां रात में वे उन्हें कोचिंग भी देते हैं। एक इंजीनियरिंग करने वाला बच्चा भी उसी स्कूल में रहता है। अभिषेक कहते हैं कि मलिन बस्तियों में रहकर वे बच्चे अब आगे की पढ़ाई बेहतर नहीं कर सकते। इसलिए उन्हें स्कूल में ही रहने की इजाजत दे दी गई है। मददगारों से मिले पैसों से वे स्कूल की बिल्डिंग का पैसा और उन सभी बच्चों का खर्च उठाते हैं।

Posted By: Inextlive