Allahabad : ओलंपिक में इस बार बॉल और पिच का कलर चेंज हो गया था. हम लोग पिछले तीन महीने से नए पिच व बॉल पर प्रैक्टिस में जुटे थे ताकि कलर को लेकर कोई दिक्कत न हो. लेकिन लंदन में मैच शुरू होने के बाद हम लोग अच्छा नहीं खेले. हम चाह कर भी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सके और मैच हारते चले गए. वजह चाहे जो भी लेकिन हकीकत तो यही है कि हम अच्छा नहीं खेले और हार गए.

उसकी recovery नहीं हो सकी
हां इतना जरूर था कि पहले मैच के बाद से हमारा कांफिडेंस लूज होना शुरू हो गया और उसकी रिकवरी नहीं हो सकी। ऐसा होना स्वाभाविक था। हमें गोल करने के लिए कई चांस मिले लेकिन हम ये चांस मिस करते चले गए। ऐसा नहीं था कि हमारे साथियों ने गोल करने का प्रयास नहीं किया लेकिन किस्मत हमारे साथ नहीं थी और कोई गोल नहीं हो सका। बार-बार ऐसा होने से हमारा कांफिडेंस लूज होता गया।

कोई भी नहीं कर सका गोल
ओलंपिक में पहला मैच हारने के बाद हम दूसरे मैच के लिए पूरी तरह से तैयार थे। शुरुआती बढ़त बना चुके थे। मैच हमारे कब्जे में था। लेकिन अचानक पासा पलटा और मैच हमारे हाथ से निकलने लगा। हम चाह कर भी कुछ नहीं कर सके और मैच हार गए। कोई भी प्लेयर गोल नहीं कर सका।

कोई भी success नहीं हुआ
पहले तो गोल करने के लिए एक स्पेशल प्लेयर फ्रंट पर होता था लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब तो सेंटर फॉरवर्ड से लेकर मिडिल ऑर्डर का प्लेयर भी गोल करने पहुंच जाता है। हमारी टीम में तुषार, सुरेन्दर और सुनील गोल करने में माहिर हैं। लेकिन कोई भी बंदा पिच पर सक्सेज नहीं हुआ। यही तीनों ही नहीं गेम के दौरान अन्य प्लेयर्स को भी मौका मिलता था और वे बॉल लेकर गोल करने पहुंचे भी थे लेकिन रिजल्ट सिफर ही रहा। कभी कोई गोल नहीं कर पाया तो कभी सही समय पर पास नहीं मिला। नतीजा हम मैच हारते चले गए।

उनका fitness level काफी high था
दानिश के बड़े भाई शारिक की मानें तो काफी हद तो इंडियन प्लेयर्स का फिटनेस प्रॉब्लम भी एक बड़ा कारण रहा। इंडिया और लंदन के एटमॉसफियर में काफी अंतर है। इंडियन प्लेयर्स और दूसरे देशों के प्लेयर्स के मैच के दौरान स्टेमिना और स्टे्रंथ का अंतर काफी देखने को मिल रहा था। उनका फिटनेस लेवल काफी हाई था। हम जल्द ही थक जा रहे थे जबकि विपक्षियों के अंदर कहीं से भी थकान नहीं दिख रहा था। हारने का एक बड़ा कारण फिटनेस और पॉवर की कमी भी रही।

Explosive strength नहीं है
दिल्ली में प्लेयर्स के लिए फिटनेस जिम चलाने वाले नासिर की मानें तो इंडियन प्लेयर्स हर फन में माहिर हैं लेकिन उनके अंदर एक्सप्लोसिव स्टें्रथ की कमी है। स्पीड की कमी है। यही कारण है कि इंटरनेशनल लेवल पर इंडियन प्लेयर्स का फिटेनस में नीचे से छठवां स्थान है। काफी हद तक इसके शिकार हमारे इंडियन हॉकी प्लेयर्स भी हैं।
उनके अंदर भी पॉवर की कमी है। बहुत जल्द ही पिच पर वे थक जाते थे। दूसरे देश के प्लेयर्स की अपेक्षा उनके अंदर फाइट करने की स्टे्रंथ कम थी। दरअसल, हमारे यहां फिजिकल ट्रेनर की कमी है, जिसके कारण प्लेयर्स को सही गाइडेंस नहीं मिल पाती। अगर मिलती भी है तो बहुत लेट। जैसे किसी छोटे शहर या कस्बा से कोई प्लेयर कड़ी मेहनत के बाद जूनियर लेवल पर या सीनियर लेवल पर सेलेक्ट होता है।
अगर कोई सीनियर प्लेयर सेलेक्ट होता है तो उसकी उम्र करीब 18 से 20 के बीच होती है। वह अपने फन में माहिर तो होता है लेकिन फिजिकली ट्रेंड नहीं होता। मसलन उसे फिजिकल ट्रेनिंग न मिलने के कारण उसका बॉडी स्टें्रथ कम हो जाता है। नेशलन लेवल पर जांच के बाद पता चलता है कि उसके बॉडी का कोई हिस्सा वीक था। उस समय काफी प्रयास के बाद भी उतनी रिकवरी नहीं हो पाती जितनी उसकी बचपन से एक्सरसाइज से होती है।

Posted By: Inextlive