जीवनदायिनी कही जाने वाली गंगा का पानी धीरे-धीरे संक्रमित होता जा रहा है. इसका कारण नदी में तेजी से बढ़ते प्रदूषण को माना जा रहा है. हालात यह है कि गंगा किनारे कछारी एरिया में बसे लोगों में गॉल ब्लाडर के कैंसर के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है. दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट द्वारा चलाए जा रहे 'सेहत न बिगाड़ दे पानीÓ कैंपेन में सामने आया कि गंगा किनारे कछारी इलाकों में रहने वाले ज्यादातर लोगों के घरों में नगर निगम की सप्लाई न पहुंचने से सबमर्सिबल लगा रखे हैं. जिसके कारण गंगा का गंदे पानी तक सबमर्सिबल के प्रेशर आ रहा है. डाक्टर्स की माने तो हैवी मेटल्स से सेंट्रल नर्वस सिस्टम प्रभावित हो रहा है.

प्रयागराज (ब्‍यूरो)। कैंपेन के जरिए पता चला कि कमला नेहरू मेमोरियल हॉस्पिटल के रीजनल कैंसर सेंटर पर हर साल कैंसर के पांच हजार नए मरीज आते हैं। इनमें से एक हजार से अधिक पित्त की थैली के कैंसर से पीडि़त होते हैं। यह संख्या अपने आप में काफी ज्यादा है। जिससे प्रयागराज यूपी में इस बीमारी के पीडि़तों की संख्या को लेकर सबसे ऊंचे पायदान पर पहुंच रहा है। कैंसर से पीडि़त कुल महिलाओं में 8 फीसदी और पुरुषों में सात फीसदी इस बीमारी से ग्रसित होते हैं।

ग्राउंड वाटर है दिक्कत का सबब
प्रयागराज दोनों ओर से नदियों से घिरा हुआ है। गंगा और यमुना का यहां मिलन होता है। जिससे यहां का ग्राउंड वाटर लेवल दूसरे शहरों की अपेक्षा बेहतर है। एक्सपस्ट्र्स का कहना है कि नदियों के पानी की ऊपरी सरफेस को तो साफ कर दिया जाता है लेकिन काफी गहराई के पानी में शामिल भारी मेटल ग्राउंड वाटर के जरिए हमारे पेट में पहुंचकर बीमारियां फैला रहे हैं। नेशनल काउंसिल ऑफ रेडिएशन प्रोटेक्शन एंड मेजरमेंट्स की स्टडी में भी पाया गया कि गंगा के पानी में न सिर्फ मेटल की मोटी परतें जमा हैं बल्कि इसमें कई जानलेवा केमिकल्स पाए गए हैं, जिनसे कैंसर होने का खतरा बना रहता है।

पहले स्टेज पर पहुंचने वाले दस फीसदी
गॉल ब्लाडर की थैली के कैंसर के मरीजों को शुरुआत में पता नहीं चल पाता है। थैली में बनने वाली पथरी धीरे-धीरे कैंसर में तब्दील होने लगती है। महज दस फीसदी मरीज ही ऐसे होते हैं जिन्हें इस बीमारी का अंदाजा पहली स्टेज में हो जाता है और उनका इलाज समय रहते शुरू हो जाता है। बड़ी संख्या में मरीज दूसरे और तीसरे स्टेज में डॉक्टर के पास पहुंचते हैं, जिनका इलाज करना आसान नहीं होता है।

कैंसर के लक्षण
- पेट के दाहिने कोने में तेज दर्द उठना
- लगातार गैस बनने की शिकायत बने रहना
- लीवर के नीचे गांठ बनना
- उठने-बैठने में तकलीफ होना
- पीलिया की शिकायत हो जाना
- प्रयागराज में हर साल कैंसर के दस हजार नए मरीज आते हैं।
- इनमें से बीस से पच्चीस फीसदी गॉल ब्लाडर की थैली के कैंसर से पीडि़त होते हैं।
- दस फीसदी मरीज ही पहली स्टेज पर डॉक्टर के पास पहुंचते हैं
- गंगा की बेल्ट में रहने वालों को पित्ताशय के अलावा किडनी, भोजन नली, प्रोस्टेट, लीवर, यूरिनरी ब्लैडर और स्किन कैंसर के चांसेज अधिक होते है।

Posted By: Inextlive