टॉयलेट में चाहिए टार्च का साथ
- बेली अस्पताल में अव्यवस्थाओं का अम्बार, टॉयलेट से लेकर वार्ड तक फैली रहती है गंदगी
- दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट की रियलिटी चेक में सच आया सामने, टॉयलेट में रोशनी की नहीं है पर्याप्त व्यवस्था प्रयागराज- शासन की ओर से सरकारी अस्पतालों में कितनी ही सुविधायें उपलब्ध करा दी गई हों लेकिन अधिकारियों व कर्मचारियों की मनमानी के कारण सरकार की मंशा पर पानी फिरता जा रहा है। मौजूदा समय में मोती लाल नेहरु मंडलीय चिकित्सालय (काल्विन) अस्पताल में ज्यादातर वार्ड के अंदर बने टॉयलेट बदहाल हैं। साफ-सफाई न होने से यहां दुर्गध आती रहती है। शाम होते ही टॉयलेट अंधेरे में डूब जाता है। अस्पातल में भर्ती मरीज व तीमारदार शाम को टॉयलेट जाने से बचते हैं। शनिवार शाम को दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट रिपोर्टर की पड़ताल में यह सब सामने आया। इस पर वहां के कर्मचारी भी कुछ बोलने को तैयार नहीं है।गेट पर पहुंचते ही बदबू
दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट की ओर से च्टॉयलेट एक संघर्षच् कथा अभियान चलाया जा रहा है। इसके तहत शनिवार को सिटी के काल्विन अस्पताल के अंबर बने टॉयलेट की पड़ताल की गई। यह पड़ताल शाम को किया गया। पता चला कि अस्पताल के वार्ड के अंदर ज्यादातर टॉयलेट गंदे पड़े थे। टॉयलेट के गेट तक पहुंचते ही बदबू आने लगी। थोड़ी देर रूकते ही हर किसी को चक्कर आ जाए। चारों गंदा पानी फैला था। यहीं नही टॉयलेट में अंधेरा छाया था। वहां मौजूद एक स्टॉफ से पूछने पर पता चला कि एक ही बल्ब जलता है। कहा कि इसी हल्की रोशनी में सब जाते हैं, आप कोई स्पेशल थोड़ी है।
सार्वजनिक टॉयलेट का भी बुरा हाल वार्ड के अंदर बने टॉयलेट तो गंदे हैं ही। वहीं बाहर बने सार्वजनिक टॉयलेट का हाल भी बेहाल मिला। चारों तरफ गंदा पानी फैला था। बदबू आ रही थी। टॉयलेट यूज करने वाले महिलाओं व पुरुषों का कहना है कि आखिर कर भी क्या सकते हैं। अंदर तो शाम होते-होते टॉयलेट अंधेरे में डूब जाता है। उस अंधेरे से तो ठीक ही है। भले पांच रुपये देना पड़ रहा है। लेकिन पैसा देने के बाद भी साफ-सफाई नहीं है। इस पर कोई गौर करने वाला नहीं है। टॉयलेट के साथ-साथ वार्ड में भी गंदगी है। नाक दबा कर टॉयलेट जाना पड़ता है। यूज करने पर अक्सर टेंशन बनी रहती है कि कहीं बीमार न हो जाएं। सफाई का विशेष ध्यान रखने की जरूरत है। सूरज बली, मरीज के रिश्तेदारगंदे टॉयलेट और कम रोशनी को लेकर कई बार वार्ड के स्टॉफ से शिकायत की गई। लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। एक सफाई वाला दिन में आता है। सिर्फ फिनायल गिरा कर चला जाता है। चारों तरफ यहां गंदगी फैली हुई है।
शिव देवी, मरीज की मां इलाज के लिए अस्पताल आना मजबूरी है। इसलिए यहां बने टॉयलेट का भी इस्तेमाल करना पड़ता है। जब भी साफ-सफाई के लिए टोका जाता है। जवाब मिलता है ज्यादा दिक्कत है तो बाहर का यूज कर लें। राजकुमार, मरीज का रिश्तेदार टॉयलेट जाते ही दम घुटने लगता है। जेंट्स तो बाहर चले जाते हैं। मगर महिलाओं को मजबूरी में इन शौचालय का इस्तेमाल करना पड़ता है। रोशनी कम होने से रात में दिक्कत होती है। - शीला देवी, मरीज की पत्नी