बगैर मिली भगत घोटाला नामुमकिन
प्रयागराज (ब्यूरो)। आखिर एजेंटों के पास पासबुक कहां से आई। इस सवाल पर डाकघर का कोई भी अफसर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। लाखों का खेल एजेंटों ने पासबुक के जरिए किया। दारागंज डाकघर की पासबुक ग्राहकों को देकर उनका भरोसा जीता। जाहिर सी बात है कि डाकघर के किसी कर्मचारी की मिली भगत के बगैर एजेंटों को पासबुक नहीं मिल सकती थी। मगर इस मामले पर दारागंज डाकघर का कोई भी अफसर कुछ बोलने को तैयार नहीं है। अफसरों ने दारागंज थाने में दो एजेंट और एक अन्य के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराकर चुप्पी साध ली है।
ये है मामला
निखिल श्रीवास्तव और नीति श्रीवास्तव दोनों भाई बहन हैं। निखिल की मृत्यु हो चुकी है। दोनों भाई बहनों ने 17 परिवारों के 44 एकाउंट दारागंज डाकघर के नाम पर खोले और पासबुक अपने ग्राहकों को दिया। दोनों भाई बहन ने मिलकर सभी ग्राहकों से हर महीना डाकघर की स्कीम में इनवेस्टमेंट के नाम पर किश्त लेना शुरू किया। कुछ लोगों का पैसा भी फिक्स कराया। दोनों ने ग्राहकों को इतना भरोसे में ले लिया कि वह दोनों खुद चलता फिरता डाकघर हो गए। ग्राहकों ने इन दोनों पर भरोसा किया और हर महीना किश्त अदा करते रहे या फिर लंबा एमाउंट दोनों के कहने पर इनवेस्टमेंट के नाम पर दे दिया।
शिकायतकर्ताओं ने जब अपनी इनवेस्ट की रकम लेने के लिए डाकघर का चक्कर काटना शुरू किया तो डाक कर्मियों ने पासबुक देखकर उसमें दर्ज एकाउंट नंबर को खारिज कर दिया। डाककर्मियों ने कहा कि इन नंबर का कोई एकाउंट डाकघर में खोला ही नहीं गया है। जबकि शिकायतकर्ताओं का दावा था कि वह एजेंट को हर महीने रकम किश्त की देते रहे। फिलहाल मसला अभी भी पासबुक का है। आखिर पासबुक दोनों एजेंट के पास आई कहां से। हैरत तो इस बात की है कि अफसर ये भी बताने को तैयार नहीं कि ठगे गए ग्राहकों के पास जो पासबुक है वह असली है या नकली।