दो से तीन लाख रुपए प्राइवेट अस्पताल में आता है खर्चएसआरएन अस्पताल का वार्ड है फुल हार्ट के मरीजों को करना पड़ रहा है इंतजारठंड बढऩे के साथ बढ़ गई है मरीजों की परेशानी 150 से अधिक मरीज रोजाना आ रहे हैं एसआरएन के कार्डियोलाजी विभाग में 70 रुपये लगता है सरकारी अस्पतालों में इसीजी का500 रुपये खर्च आ जाता है निजी अस्पताल में जांच कराने को

प्रयागराज ब्यूरो । ठंड शुरू होते ही अपने हार्ट को संभालकर रखिए। अगर कोई प्राब्लम हुई तो लाखों रुपए खर्च करने पड़ सकते हैं, क्योंकि सरकारी अस्पताल में जगह नही है और प्राइवेट में लाखों रुपए इलाज में खर्च होते हैं। ठंड के मौसम में हार्ट की समस्या बढ़ गई और इस स्थिति में मरीजों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है। इसका असर अस्पतालों में साफ नजर आ रहा है। एसआरएन अस्पताल में मरीजों को भर्ती होने के लिए इंतजार करना पड़ रहा है। सरकारी तंत्र के सीमित संसाधनों में हार्ट के गंभीर मरीजों को इलाज कराने में फजीहत का सामना करना पड़ रहा है।

तीन से चार घंटे का इंतजार
इस समय एसआरएन अस्पताल के कार्डियोलाजी विभाग में रोजाना 150 से अधिक मरीज आ रहे हैं।
इनमें से 20 से 25 मरीज रोजाना भर्ती कराने पड़ रहे हैं। जिसमें 4 से 5 हार्ट के मरीज हैं और 7 से 8 मरीज सीएचएफ यानी सांस की बीमारी के हैं।
यह वह मरीज हैं जिनकी हार्ट की समस्या के चलते फेफड़े भी कमजोर पड़ रहे हैं और सांस लेने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
महज 18 बेड के सीसीयू में नए मरीजों को बेड न मिलने से भर्ती होने के लिए तीन से चार घंटे का वेट करना पड़ रहा है।
ऐसे में उनकी जान सांसत मे ंफंसी रहती है और जरा सी लापरवाही से उनकी जान भी जा सकती है।

तीन गुना है इलाज में अंतर
ठंड के सीजन में हार्ट का ख्याल रखना क्यों जरूरी है, इसका साफ कारण है। अगर हार्ट अटैक आया और एक स्टेंट डालने की नौबत आती है तो सरकारी में इसके लिए 70 से 80 हजार रुपए खर्च करने होंगे। क्योंकि सरकार स्टेंट की कीमत में सब्सिडी दे रही है। वहीं प्राइवेट सेटअप में एक स्टेंट डलवाने में ढाई से तीन लाख आसानी से खर्च हो जाते हैं। यही कारण है कि पैसे के अभाव में बिना इलाज कई मरीज मर जाते हैं। आर्थिक स्थिति ठीक नही होने से उनकी जान चली जाती है।
हमारी है मजबूरी क्या करें
एसआरएन अस्पताल के कार्डियोलाजी विभाग के अधिकारियों से इस बारे मे ंबात की गई तो उन्होंने कहा कि हमारी भी मजबूरी है। किसी को भी इलाज से इंकार नही किया जाता है। लेकिन अगर 18 बेड के इमरजेंसी विभाग के सभी बेड भरे हैं तो नए मरीज को बेड खाली होने का इंतजार करना पड़ता है। यहां भर्ती कोई मरीज दूसरे वार्ड में चला जाए या डिस्चार्ज हो जाए तभी नए मरीज को भर्ती किया जा सकता है। लेकिन अक्सर थोड़े कम समय में मरीजों को भर्ती कर लिया जाता है।
जान बचाने की सस्ती कवायद
हार्ट के मरीजों के लिए सरकारी तंत्र में बहुत विकल्प नही है। केवल एमएलएन मेडिकल कॉलेज का एसआरएन अस्पताल है जहां हार्ट के गंभीर मरीजों को सस्ता इलाज मुहैया हो जाता है। यहां पर ईसीजी का महज 70 रुपए लगता है जबकि प्राइवेट अस्पताल में इसी जांच का 500 रुपए लिया जाता है। एसआरएन में रोजाना 70 से 80 मरीजों की ईसीजी की जांच हो रही है। इसके अलावा अन्य जांच में भी मरीजों का प्राइवेट के मुकाबले कई गुना कम खर्च होता है।
ऐसे रखें अपने दिल का ख्याल
- सुबह अर्ली मार्निंग मार्निंग वाक पर मत जाएं।
- हार्ट के रोगी डॉक्टर के संपर्क में लगातार बने रहें।
- सांस की समस्या भी है तो हार्ट की जरूर जांच करा लें।
- धूप निकलने के बाद रोजाना आधे घंटे एक्सरसाइज या वॉक जरूर करें।
- ठंड में बहुत अधिक वसा वाली चीजे जैसे देशी घी, खोवा या क्रीम आदि का सेवन मत करें।
- हार्ट के लक्षणों पर ध्यान दें, आशंका होने पर डॉक्टर से जरूर बात करें।
हार्ट अटैक के लक्षण
- सीने में दर्द
- सांस फूलना
- जी मचलाना
- बेचैनी और पसीना आना
- चक्कर आना
ठंड में क्यो बढ़ जाते हैं केस
दरअसल ठंड के मौसम में दिल के मामलों में बढ़ोतरी होती है। क्येांकि बॉडी में खून ले जाने वाली नसों में वसा जमा होने से रक्त संचरण बाधित होता है और इसकी वजह से हार्ट पर अधिक असर पड़ता है। हार्ट ऐसा अंग है जो पूरे शरीर में खून का संचार करता है। इस हालत में लोगों के अचानक हार्ट अटैक पड़ता है और तत्काल इलाज नही मिलने पर उनकी जान भी चली जाती है। ठंड के मौसम में हार्ट के मामले दोगुना तक बढ़ जाते हैं।


किसी भी मरीज को वापस नही किया जाता है। सभी को बेड मिल जाता है। कभी कभी उन्हें थोड़ा इंतजार करना पड़ता है। अभी दिल के सांस से जुडृ़े मरीज अधिक आ रहे हैं। हार्ट अटैक के मरीजों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है। लापरवाही बरतने पर लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
डॉ। पीयूष सक्सेनाा, एचओडी मेडिसिन विभाग, एमएलएन मेडिकल कॉलेज प्रयागराज


ठंड के मौसमस में मरीजों की संख्या में इजाफा निश्चित तौर पर होता है। हम लोग मरीजों को देखकर उनको भर्ती कराने की कोशिश करते हैं। बेड संख्या सीमित है इसलिए अगर थोड़ा इंतजार करना पड़ता है तो इसमें हम लोग मरीजों का पूरा ख्याल भी रखते हैं। किसी मरीज को परेशानी का सामना नही करना पड़ता है।
डॉ। मो। शाहिद, कार्डियोलाजिस्ट, एमएलएन मेडिकल कॉलेज प्रयागराज

Posted By: Inextlive