- आक्सीजन गैस सिलेंडर के रखरखाव में बरती जा रही लापरवाही- ध्यान नहीं देते हैं हॉस्पिटल स्वास्थ्य विभाग भी बना बेपरवाह- हर साल होनी चाहिए आक्सीजन सिलेंडर की टेस्टिंग


प्रयागराज ब्यूरो ।अगर ध्यान नहीं दिया गया तो प्रयागराज में भी लखनऊ जैसी आक्सीजन गैस सिलेंडर जैसी ब्लास्ट की घटना हो सकती है। इसके जिम्मेदार खुद हॉस्पिटल वाले होंगे। क्योंकि यहां पर दर्जनों की संख्या में आक्सीजन सिलेंडर लंबे समय तक रखे रहते हैं और इनके रखरखाव में लापरवाही बरती जाती है। इसकी वजह से भविष्य में समस्या खड़ी हो सकती है। प्राइवेट अस्पतालों में अधिक दिक्कतकोरोना काल के बाद सरकारी अस्पतालों में आक्सीजन प्लांट बनवा दिए गए हैं, जबकि प्राइवेट अस्पतालों में अभी भी तमाम फैक्ट्रियों से आक्सीजन गैस सिलेंडरों की सप्लाई की जा रही है। इनकी संख्या एक हजार से अधिक है। कोरोना काल के बाद अधिकतर अस्पतालों में आक्सीजन प्लांट बनने के बाद सप्लाई में कमी आई है। सोर्सेज का कहना है कि निजी अस्पताल व नर्सिंग होम सिलेंडर के रखरखाव पर ध्यान नही देते हैं। एक्सपायरी सिलेंडर से दुर्घटना की आशंका


आक्सीजन सिलेंडर से दुर्घटना की आशंका एक्सपायरी होने पर अधिक होती है। जानकारी के मुताबिक एक सिलेंडर की उम्र बीस साल निर्धारित की जाती है। इससे अधिक होने पर ब्लास्ट की आशंका रहती है। जबकि हर साल सिलेंडर की टेस्टिंग होना जरूरी है। इस पर अस्पतालों और फैक्ट्रियों को अधिक ध्यान देने की जरूरत होती है। बता दें कि लखनऊ में ठाकुरगंज के एक निजी अस्पताल के बाद हाफ लोडर से आक्सीजन सिलेंडर उतारते समय उसमें ब्लास्ट हो गया। जिससे एक की जान चली गई और दो लोग घायल हो गए।यहां लग गए आक्सीजन प्लांटसरकारी अस्पतालों में कोरोना काल के बाद सरकार ने जन प्रतिनिधियों के योगदान से आक्सीजन प्लांट लगवाए हैं। इनमें डफरिन अस्पताल, टीबी अस्प्ताल, काल्विन अस्पताल, फूलपुर और भगवतपुर अस्पताल में एक-एक आक्सीजन प्लांट लगाया गया है। वहीं बेली और एमएलएन मेडिकल कॉलेज में दो प्लांट लगाए गए हैं। इन सभी की क्षमता 300, 1000 और 1200 एलपीएम की है। हालांकि कुछ प्राइवेट अस्पतालों में भी आक्सीजन प्लांट लगाए गए हैं। बावजूद इसके इमरजेंसी के चलते इन अस्पतालों आक्सीजन सिलेंडर स्टोर किए जाते हैं।क्या है आक्सीजन सिलेंडर और क्या है लाभजब मरीजों को आक्सीजन की कमी होती है तो उन्हे आक्सीजन थेरेपी के जरिए इलाज किया जाता है। मरीजों को आक्सीजन देने के लिए कंसंटे्रटर या आक्सीजन सिलेंडर की मदद ली जाती है। आमतौर पर वायुमंडल में मौजूद जो हवा हम खीचते हैं उनमें 21 फीसदी आक्सीजन और 79 फीसदी नाइट्रोजन होती है। जबकि कम्प्रेस्ड आक्सीजन 99.5 फीसदी होती है। आक्सीजन सिलेंडर का यूज इलाज के साथ व्यवसायिक जरूरतों के लिए भी किया जाता है।

कोरोना के बाद आक्सीजन सिलेंडर का यूज नार्मल हो गया है। हमारी ओर से सुरक्षा के पूरे नाम्र्स फालो किए जाते हैं। अस्पतालों को भी अवेयर किया जाता है। हर साल टेस्टिंग कराई जाती है। इस मामले में कोई समझौता नही होता।अभय अग्रवाल, चीफ आपरेटिंग आफिसर, पारेहाट केमिकल प्राइवेट लिमिटेडसभी हॉस्पिटल्स को आक्सीजन सिलेंडर के रखरखाव में सावधानी बरतने के आदेश दिए गए हैं। समय समय पर इनका इंस्पेक्शन भी किया जाता है। कहीं कमी मिलने पर कार्रवाई भी की जाएगी।डॉ। वरुण क्वात्रा, डिप्टी सीएमओ स्वास्थ्य विभाग प्रयागराज

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