01

बंडल में होते हैं 100 महुआ के पत्ते

03

तरह के बंडल तैयार करते हैं व्यापारी

50

रुपये सैकड़ा में बेचते हैं महुआ का पत्ता

600

से हजार रुपये रोज कमा रहे विक्रेता

---------------------

- कोरोना में रोजगार छिनने के बाद कामगारों ने खोजे अवसर, शुरू किए पत्ते का व्यापार

- शून्य लागत से कमा रहे हजारों रुपये, गरीबी का रोना रोने वालों को दे रहे नसीहत

PRAYAGRAJ: गरीबी भगाने के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा है तो आर्थिक तंगी राह का रोड़ा नहीं बन सकती। यह बातें कोरोना में काम धंधा ठप होने के बाद मुंबई से लौटे चंद कामगारों ने साबित कर दिखाया। स्टेशन के बाहर रोड किनारे वह हर रात महुआ के पत्तों को नोट में कनवर्ट कर देते हैं। रोजगार छिनने के बाद वह इस धंधे में उतरे तो पलट कर मुंबई का रुख नहीं किया। बिजनेस व्यापार के लिए पास में रुपये थे नहीं, लिहाजा वह महुआ के पत्तों को बेचना शुरू कर दिए। इन पत्तों को बेच कर वह बड़े शहरों में काम व मजदूरी में मिलने वाले रुपयों से कहीं ज्यादा कमा रहे हैं। यह बिजनेस मैन उन लोगों को नसीहत दे रहे हैं, जो आर्थिक तंगी की वजह से कुछ न कर पाने के कारण किस्मत और गरीबी का रोना रोते हैं।

हौसले व जुनून से गरीबी को दे रहे मात

कोरोना संक्रमण काल में लाखों लोगों के रोजगार छिन गए। कल कारखाने बंद होने से बड़े शहरों में कमाने गए कामगारों को वापस लौटना पड़ा। लॉकडाउन में सेफ पूंजी भी परिवार चलाने में चली गई। लाइफ काफी क्रिटिकल हो गई थी। लॉकडाउन खुला तो कोरोना के तीसरी लहर का डर सताने लगा। परिवार के भरणपोषण की जिम्मेदारी बगैर पैसे के निभा पाना मुश्किल था। मगर, जिंदगी जीने की हसरत और कुछ करने का जुनून इनके पांव में बंधी आर्थिक तंगी की बेडि़यों को तोड़ कर रख दिया। अपनी सोच और मेहनत के बूते महुआ के पत्तों का व्यापार शुरू किए। पेड़ों से महुआ के पत्तों को तोड़ने के बाद उसे साफ कर शहर लाकर बेचने लगे। इस बिजनेस के जरिए वह मुंबई और दिल्ली में हाड़तोड़ मेहनत के बाद मिलने वाली पगार से कई गुना ज्यादा कमा रहे हैं।

व्यापार का फंडा और इनकम

- हाल ही में महुआ के पत्तों का व्यापार शुरू करने वाले लोग बताते हैं कि वह बिजनेस का पूरा रूटीन बना रहे हैं

- महुआ के पत्तों को पेड़ से तोड़कर उसकी अच्छी तरह धुलाई के बाद गट्ठर में बांध कर शाम को शहर आते हैं

- यहां इन पत्तों का तीन तरह के बंडल तैयार करते हैं, इनमें एक 25 व दूसरा 50 एवं तीसरा 100 पत्तों का बंडल होता है

- इस काम में पत्‍‌नी व काम करने योग्य बच्चे भी इनकी मदद करते हैं, तैयार बंडल को बेच कर रुपये कमाते हैं

- कहते हैं कि 50 रुपये सैकड़ा इन महुआ के पत्तों की बिक्री करते हैं। सेल कम होने पर रेड घटाते-बढ़ाते रहते हैं

- धंधे में पुरुष ही नहीं महिलाएं भी हैं, यह कहते हैं कि रोज 600 से एक हजार रुपये सुबह 8-9 बजे तक कमा लेते हैं

जानिए डिमांड और ग्राहक

रोड पर महुआ के पत्तों का व्यापार करने वाले इन व्यापारियों के अपने ग्राहक हैं। कुछ तो थोक में खरीद कर पान और चाट के दुकानदारों पर सप्लाई करते हैं। थोक में पत्तों की खरीद करके दुकानों पर सप्लाई करने वालों के लिए पत्तों का रेट कम रखते हैं। कुछ नामचीन दुकानदार खुद या उनके लोग भोर में आते हैं। वह इन पत्तों को अच्छी तरह से छाट कर खरीदते हैं। इनके ग्राहक पत्तल बनाने वाले भी हैं, हालांकि इनकी संख्या वह कम बताते हैं।

यह काम अभी दो तीन महिलाओं के साथ शुरू किए हैं। हम सब मुंबई में रहकर मजदूरी करते थे। कोरोना में लौट आए थे। फिर एक और कोरोना आने वाला है। इसलिए नहीं गए। रुपए पैसे थे नहीं, इसलिए पत्ता बेचने लगे। मुंबई में कमाई से तो अच्छा ही है। रोज पत्ते मीरजापुर से लाते हैं और बेचते हैं।

आशा देवी, मोहनपुर मीरजापुर

हम पहली बार जब कोरोना आया था तब घर आए हैं। लॉकडाउन में जो कमाई रखी थी वह बाल बच्चों में चली गई। अब इतना पैसा तो है नहीं कि कोई बिजनेस करें तो पत्ता बेचने लगे। इसमें कोई लागत नहीं है, साहब बस पत्ता तोड़ै मां मेहनत और किराया बस। रोज हजार पांच सौ रुपये मिल जात हैं।

रमेश कुमार, सैनी कौशाम्बी

मैं भोपाल की एक फैक्ट्री में लेबर का काम किया करता था। लॉकडाउन में फैक्ट्री बंद हो गई थी। फैक्ट्री से बुलावा आया था मगर नहीं गए। जब मुसीबत के दिनों में वह काम नहीं आई तो क्या जाना साहब। अपना यही पत्ता बेच रहे हैं। परिवार पालने भर का मिल जाता है।

मुन्ना, विंध्याचल

बाहर जाने से बढि़या है कि साहब यहीं कुछ किया जाय। हम दिल्ली व मुंबई और गुजरात भी कमाने गए। दस, पंद्रह हजार से ज्यादा कहीं नहीं मिला। जितना मिलता है सब वहीं का रह जाता है। अभी लॉकडाउन बाद पत्ता बेचना शुरू किए हैं। वहां के काम से यह धंधा सही है।

निर्मल कुमार, मोहनपुर मीरजापुर

Posted By: Inextlive