यहां 'जुगाड़' से होती है तत्काल एमआरआई
10 एमआरआई होती है पर डे
15 एमआरआई हो सकती है पर-डे यदि बढ़ जाय स्टॉफ 04 जांच प्रतिदिन सिफारिश वालों की होती है 10 से 12 हजार में होती है प्राइवेट सेंटर में एमआरआई जांच 02 हजार रुपये में होती है एसआरएन में जांच ---------------------- - बिना सिफारिश एमआरआई के लिए पेशेंट को करना पड़ता है दो महीने तक का इंतजार - एचओडी बोले, सिफारिश से परेशान हैं, ये सब बंद हो जाय तो जरूरतमंद को मिले ज्यादा फायदाएसआरएन हॉस्पिटल में एमआरआई जांच कराने जाना है तो जुगाड़ या सिफारिश साथ लेकर जाइये। वरना आपका नंबर दो महीने बाद आयेगा। यह बात बिल्कुल सत्य है। क्योंकि बुधवार को दैनिक जागरण आई- नेक्स्ट रिपोर्टर ने आमजन बनकर अपने रिलेटिव की एमआरआई के लिए रिक्वेस्ट किया तो सेंटर के स्टाफ ने 29 अप्रैल की डेट दे दी। जब रिपोर्टर ने अधिक दबाव बनाया तो स्टाफ ने कहा कि यहां तो केवल वीआईपी की सिफारिश या जुगाड़ से काम होता है। बाद में इस बात को स्वयं यहां के एचओडी ने भी स्वीकार कर लिया।
ज्यादा जरूरी है तो प्राइवेट चले जाइएबुधवार की दोपहर एक बजे रिपोर्टर एमआरआई सेंटर पहुंचा। यहां जांच कराने वालों की लंबी लाइन लगी थी। रिपोर्टर ने यहां के रिसेप्शन पर मौजूद स्टाफ से कहा कि उनके एक रिलेटिव को एमआरआई जांच करानी है। कब लेकर आएं। इस पर स्टाफ ने कहा कि अभी नहीं, अब तो मई की डेट मिलेगी। इस पर रिपोर्टर ने रिक्वेस्ट की तो स्टाफ ने 29 अप्रैल की डेट दे दी। रिपोर्टर ने अधिक दबाव बनाया तो स्टाफ ने कहा कि हम लोग तो पहले से सिफारिश से परेशान हैं। आप भी कोई जुगाड़ या सिफारिश ले आइए तो आपकी भी जांच तत्काल हो जाएगी। यह भी नहीं है तो प्राइवेट सेंटर पर जांच कराने चले जाइए।
पहले नेता तो फिर बाद में अधिकारी ने कर दी सिफारिशआम आदमी बताकर स्टाफ से सवाल जवाब किया तो उसने सच उगलना शुरू कर दिया। उसने बताया कि आज ही एक पार्टी के नेता के खास आदमी की जांच सिफारिश पर की गई है। जबकि उनका एमआरआई डेट देरी से दी गई थी, लेकिन सिफारिश आने पर तत्काल कराना जरूरी था। इसके बाद मेडिकल कॉलेज के एक उच्च अधिकारी के आदेश पर भी एक मरीज की जांच की गई। ऐसे में दो ऐसे मरीज जिनका आज नंबर था उनको या तो इंतजार करना होगा या अगले दिन आना होगा। मरीज इतने अधिक है कि वेटिंग बढ़ती जा रही है।
सिफारिश से परेशान हैं एचओडी
2016 में लगी थी एमआरआई मशीन एमएलएन मेडिकल कॉलेज में काफी मिन्नतों के बाद 2016 में एमआरआई मशीन लगाई गई थी। प्राइवेट सेंटर में इसकी जांच 10 से 12 हजार में होती है जबकि यहां पर महज दो हजार रुपए में जांच की जाती है। लेकिन इसका फायदा मजबूर और जरूरतमंद मरीजों को नहीं मिल रहा है। उनका नंबर काफी मुश्किलों से आता है। दो-दो माह वेट करना होता है। मौके पर मौजूद कई मरीजों से बातचीत में उन्होंने इसे स्वीकार भी किया लेकिन नाम या पहचान छापने से मना कर दिया। उनका कहना था कि आज हमारा बयान छाप देंगे तो दिक्कत हो जाएगी। इसी क्रम में हमने रेडियोलाजी विभाग के एचओडी से बात की तो उन्होंने भी कहा कि सिफारिश करने वालों से वह परेशान हो चुके हैं। इस पर रोक लग जानी चाहिये। इसलिये कम हो रही जांच प्रतिदिन कम संख्या में एमआरआई जांच होने के अन्य कारण भी हैं। इस विभाग में एक भी प्रोफेसर मौजूद नहीं है। दूसरे महज एक सीनियर रेजिडेंट मौजूद है। इसके लिए गवर्नमेंट को सीट बढ़ानी होगी। तीसरे यह कि केवल एक टेक्नीशियन के भरोसे जांच मशीन चल रही है।जिससे दस से अधिक आंकड़ा नहीं हो पाता है।
एचओडी का कहना है कि अगर दो से तीन टेक्नीशियन हो जाएं तो जांच की संख्या 15 पहुंच सकती है। एमआरआई जांच के लिए कई सिफारिशी फोन आते हैं। इस पर रोक लगनी चाहिए। कई बार न चाहते हुए वीआईपी पेंशेंट्स की एमआरआई करनी पड़ती है। इससे जरूरतमंद की जांच में देरी होने लगती है। हमारे पास संसाधन भी कम है। टेक्नीशियन, एसआर और प्रोफेसर की जरूरत है। डॉ। मुकेश पंत, एचओडी, रेडियोलाजी विभाग एसआरएन हॉस्पिटल