बराबरी का है हक, हम नहीं सॉफ्ट टार्गेट
Test case one
बेसिक शिक्षा विभाग से जुड़ी महिलाओं ने तत्कालीन बीएसए पर यौन उत्पीड़न के साथ मानसिक उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए शिकायत उच्च अधिकारियों के यहां दर्ज कराई। अफसर खामोश रहे और पुलिस चुप। रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की गई। विभागीय अफसर जांच के नाम पर मामले की उलझाए रहे। इसके बाद मामला हाई कोर्ट तक पहुंच गया। कोर्ट के आदेश पर बीएसए से डीआईओएस पोस्ट पर प्रमोट हुए अफसर को हटाने के साथ कार्रवाई का आदेश दिया। Test case twoसिविल लाइन एरिया में स्थित एक प्राइवेट कम्पनी के ऑफिस में काम करने वाली महिला को उसके बॉस के साथ ही अन्य कर्मचारी बुरी नजर से देखते थे। कई बार कमेंट भी पास करते थे। इससे आजिज आकर महिला थाने पहुंची। शिकायत बता दी लेकिन कार्रवाई नहीं हुई क्योंकि कंपनी की साख का सवाल बताकर आरोपीगण इमोशनली उसका ब्रेन वॉश करने में कामयाब हो गए। नतीजा समझौते के आधार पर मामले को निबटा दिया गया।
--Work place पर महिलाओं के उत्पीड़न पर सख्त है कानून -अधिकार का इस्तेमाल करने के बजाय समझौता करने पर मजबूर की जाती हैंALLAHABAD: कानून को सख्त बना दिया गया। महिलाओं को इसकी जानकारी देने के लिए प्रयास भी खूब हो रहे हैं। इसके बाद भी वर्कप्लेस पर बराबरी का हक रखने वाली महिलाएं साफ्ट टारगेट हैं। वर्कप्लेस पर कमेंट और अश्लील मजाक तो झेलना ही पड़ता है कंपनी की ग्रोथ के अनुरूप उन्हें कामयाबी में शेयर भी बमुश्किल ही मिलता है। दूसरे शब्दों में कहें तो उन्हें दोयम दर्जे का अधिकार ही प्राप्त है। इसकी गवाही देते हैं आंकड़े। महिलाओं के साथ बढ़ती आपराधिक घटनाएं उन्हें मानसिक तौर पर भी परेशान करती हैं। इससे उनका हौसला कमजोर पड़ता है और वे खुलकर विरोध नहीं कर पातीं।
33 की जगह सिर्फ 4.5 फीसदी महिलाओं की समस्याओं को सुनने और कार्रवाई के लिए ही गृह मंत्रालय ने पुलिस विभाग में महिला पुलिस कर्मियों की संख्या बढ़ाकर 33 फीसदी करने का सुझाव दिया था। इसके उलट सच यह है कि उत्तर प्रदेश में सिर्फ 4.5 फीसदी महिला पुलिसकर्मी ही तैनात हैं। यह स्थिति महिलाओं को अपनी शिकायत लेकर थाने जाने से पहले सिक्योर फील नहीं कराती। एक और बड़ी मजबूरी यह है कि शारीरिक, मानसिक प्रताड़ना झेलने के साथ इसे साबित करने का भी बोझ आम तौर पर उन्हीं पर होता है। कई बार इंवेस्टिगेटिंग ऑफिसर के सवाल ऐसे होते हैं कि महिला शिकायत पर कार्रवाई के लिए आगे बढ़ने के स्थान पर उसे वापस ले लेने में ही अपनी भलाई समझती है।निजी जिंदगी पर भी पड़ता है दुष्प्रभाव
महिलाओं को अधिकार तो दे दिए गए लेकिन उन्हें हक की लड़ाई के लिए प्रेरित करने वाले भी कम ही हैं। दूसरे शिकायत करने की स्थिति में उनकी पर्सनल लाइफ भी प्रभावित होती है और कई बार परिवार के लोगों का सपोर्ट भी यहां नहीं मिलता। इससे उनका हौसला कमजोर पड़ता है। 1997 में जारी हुई गाइड लाइंस वर्क प्लेस पर महिलाओं को तमाम तरह के अधिकार मिले हुए हैं। सेक्सुअल हैरेसमेंट से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में विशाखा जजमेंट के तहत गाइडलाइंस तय की थी। इसके तहत महिलाओं को प्रोटेक्ट किया गया है। सुप्रीम कोर्ट की यह गाइड लाइन तमाम सरकारी व प्राइवेट दफ्तरों में लागू है। वर्क प्लेस पर महिला के उत्पीड़न की शिकायत मिलने पर विभाग द्वारा संबंधित कम्पनी या फिर व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई की जाती है। इससे पहले कम्पनी अपने कमेटी की रिपोर्ट विभाग को सौंपती है। -डॉ एसएन यादव, सहायक श्रम आयुक्त