मरीजों पर भारी पड़ रहा सरकारी डॉक्टरों का ब्रांडेड दवाओं से प्रेम
प्रयागराज (ब्यूरो)। एसआरएन अस्पताल में आने वाले मरीजों को सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने के लिए परिसर में अमृत फार्मेसी का संचालन 2018 में शुरू किया गया था। यहां पर तमाम कंपनियों की जेनेरिक दवाएं बेची जाती हैं। लेकिन यहां आने वाले मरीजों के पर्चों पर दवाओं के कम्पोजिशन (जेनेरिक) नाम की जगह ब्रांड नेम लिखा रहता है। जिससे मरीजों को दवा उपलब्ध कराना आसान नही होता। यही कारण है कि रोजाना 200 से 250 पर्चे बाउंस हो जाते हैं। कई बार दवा ले जाने के बाद मरीज उसे वापस भी कर जाते हैं।इनको नही मिल पा रहा समुचित इलाज
इतना ही नही, वार्ड में भर्ती आयुष्मान योजना के मरीजों के पर्चों पर भी दवाओं का ब्रांड नेम लिखा जा रहा है। इसकी वजह से उनको अमृत फार्मेसी से दवाएं उपलब्ध नही हो पा रही हैं। फार्मेसी के कर्मचारियों का कहना है कि नियमानुसार यहां आने वाले सभी मरीजों चाहे वह आयुष्मान का हो, पर्चे पर दवाओं का कम्पोजिशन लिखा जाना चाहिए। इससे मरीजों को आसानी से सस्ती और बेहतर दवाएं उपलब्ध कराई जा सकती हैं। लेकिन ब्रांड नेम लिखने से मरीजों को उचित इलाज उपलब्ध नही हो पाता है। प्रिंसिपल ने व्यक्त की थी नाराजगी
मरीजों ने कुछ दिन पहले मेडिकल कॉलेज प्रशासन से शिकायत दर्ज कराई थी। उनका कहना था कि पर्चे पर ब्रांडेड दवाएं लिखे जाने से उनको प्राइवेट दुकानों से महंगी दवाएं लेनी पड़ रही है। जबकि इन्ही दवाओं का जेनेरिक वर्जन काफी कम पैसे में उपलब्ध है लेकिन डॉक्टर इन दवाओं को वापस कर देते हैं और उसी ब्रांड नेम की दवाओं की मांग करते हैं। इस पर प्रिंसिपल ने सभी विभागों के एचओडी के नाम नोटिस जारी की थी। जिसमें कहा गया था कि जेनेरिक नाम नही लिखने पर अगर किसी मरीज को समुचित इलाज नही मिल पाता है तो इसके जिम्मेदार संबंधित डॉक्टर होगा।मिलती हैं सस्ती दवाएं
बता दें कि जेनेरिक दवाओं और ब्रांडेड दवाओं के रेट में काफी अंतर रहता है। ब्रांडेड दवाओं में मरीजों को महज दस फीसदी का डिसकाउंट मिलता है जबकि जेनेरिक दवाओं में तीस फीसदी तक रेट कम हो जाता है। बावजूद इसके मरीजों को महंगी दवाएं खरीदने पर मजबूर किया जा रहा है। जबकि इन दोनों दवाओं का मरीज पर प्रभाव बराबर होता है। जो मरीज इस बात को जानते हैं वह डॉक्टर के कहने के बावजूद जेनेरिक दवाएं ही खरीदते हैं। कुंडा से आए कृष्णचंद्र मिश्रा और लालगंज के विकास ने बताया कि वह ब्रांडेड दवाएं न लेकर जेनेरिक दवाएं ही करते हैं। इससे उनको सस्ती और अच्छी दवाएं मिल जाती हैं।क्या है जेनेरिक और ब्रांडेडदवा कंपनियां किसी भी साल्ट का ब्रांड वर्जन बनाती हैं तो उसका जेनेरिक भी बनाती हैं। इनके दामों में भारी अंतर होता है। लगभग 90 फीसदी तक इसे माना जा सकता है। एग्जाम्पल के तौर पर जेनेरिक में बी काम्प्लेक्स 40 पैसे की है तो ब्रांडेट की कीमत 2 से 35 रुपए तक होगी, पैरासिटामाल की कीमत 30 पैसे है तो ब्रांडेड में यही 2 रुपए तक होगी। सेट्रिजीन जेनेरिक में 30 पैसे तो ब्रांडेड में एक गोली 5 रुपए तक पड़ सकती है। सिप्रोफ्लाक्सासीन की एक गोली के दोनों वर्जन में 1.50 रुपए से 12 रुपए तक का अंतर होता है। कंपनियां जेनेरिक दवा का कोई नाम नही रखती, यह कम्पोजीशन नेम से बिकती हैं। जबकि ब्रांडेड दवा का नाम होता है और इसके प्रचार प्रसार में कंपनियां पैसे पानी की तरह बहाती हैं और बाद में महंगा बेचकर इसकी वसूली की जाती है। ओपीडी के आसपास घूमते हैं दलाल
एसआरएन अस्पताल की डॉक्टरों की ओपीडी के आसपास दलालों की चहल कदमी बढ़ती जा रही है। वर्तमान में यह दलाल ओपीडी से निकलते ही मरीज का पर्चा ले लेते हैं और ब्रांडेड दवा लिखी होने पर इसे दस फीसदी डिस्काउंट में बेचने का लालच देते हैं। मरीज इस बचत के चक्कर में उसके साथ चला जाता है। अगर यही मरीज इसी नाम की जेनेरिक दवा लेता है तो उसे ओपीडी से वापस कर दिय ाजाता है। बताया जाता है कि यह वह दवा नही है जो पर्चे में लिखी है। डॉक्टर्स के पर्चे तो बाउंस होते ही हैं, साथ ही कुछ माह पहले दवाओं की वापसी भी बढ़ गई थी। इसको लेकर प्रिंसिपल से शिकायत की गई थी। यही कारण है कि उनके द्वारा पत्र जारी किया गया है। इस पत्र को हमने फार्मेसी केबगल चस्पा कर दिया है।विनय खरवार, संचालक, अमृत फार्मेसी एसआरएन अस्पतालशिकायत मिलने पर जांच की गई तो यह सही निकला। डॉक्टर्स के लिए नोटिस जारी किया गया है। इसकी कॉपी विभागों के एचओडी को भी भेजी गई है। अगर सुधार नही होता है तो फिर से रिमाइंडर जारी किया जाएगा।प्रो। एसपी सिंह, प्रिंसिपल, एमएलएन मेडिकल कॉलेज प्रयागराज