दीपावली पर मन तो बहुत करता है कि घर जाऊ पोतों के साथ त्योहार मनाऊ. लेकिन बेटे और बहू के डर से हिम्मत नहीं पड़ती साहब. बेटवा बहुत मारत है. आधारशिला वृद्धाश्रम में रहने वाले रानी आदिवासी और उनके पति बब्बू आदिवासी की यही कहानी है. बेटे की मारपीट से परेशान होकर दोनों बुजुर्गो ने घर छोड़ दिया. लेकिन पोतों के प्रति प्यार आज भी उनके दिल में वैसे ही है. अपने पोतों को याद करके रानी आदिवासी आज भी रोने लगती है. कहती है कि दीपावली पर बच्चों की याद आती है लेकिन डर के कारण घर जाने की हिम्मत नहीं पड़ती है. लगता है बेटा फिर से मारने पीटने लगेगा तो इस बार मर ही जाएंगे.


प्रयागराज (ब्यूरो)। आंसू पोछते हुए रानी आदिवासी बताती है कि उनके एक बेटा है और एक बेटी है। बेटा का नाम संतोष है। वह पेशे से बिजली मिस्त्री है। बहू निर्मला और दो पोते आनंद 15 साल का और शुभम् 13 साल का है। रानी बताती है कि बेटा शराब पीता और रोज उनके साथ मारपीट करता था। उनके पति हाथों से विकलांग है। उनके ऊपर भी दया नहीं करता था। हमेशा पैसा मांगता था। बोलता था कि पैसा नहीं दोगे तो बहुत मारेंगे। रानी ने बताया कि उनके पति पहले रिक्शा चलाते थे। कुछ साल पहले उनके हाथों मे दिक्कत हुई और वह विकलांग हो गए। उसके बाद कमाई के सारे संसाधन बंद हो गए। ऐसे में वह बेटे को पैसा कहां से देते। लगातार उसकी गाली और मारपीट से परेशान रहते थे। बहू भी लगातार चुगली करती रहती थी। जिस पर बेटा हमेशा मारपीट करता था। बेटा वहीं करता था, जो बहु कहती थी। रोज की मारपीट और लड़ाई से तंग आकर आखिरकर उन्होंने कुछ दिन इधर -उधर बिताया और आखिर में उनको आधारशिला वृद्धाश्रम नया ठिकाना मिला। वह कहती है कि यहां आने के बाद लगा कि शायद कुछ साल और जिंदा रह लेंगे। अगर अपने घर पर होते, तो कब का दुनियां से चले जाते। बस दुख इतना ही है कि पोतो की बहुत याद आती है। दोनों पोते बहुत प्यार करते है।

मम्मी हम भी बड़े होकर ऐसा ही करेंगे आपके साथ
रानी आदिवासी ने बताया कि जब भी बहु के कहने पर बेटा उनके साथ मारपीट करता तो पोतो का बहुत खराब लगता था। लेकिन पोते छोटे है, तो उनकी एक नहीं चलती थी। लेकिन कई बार पोतो ने अपनी मां और पिता से कहा कि है बड़े होकर वह भी उनके साथ ऐसे ही मारपीट और व्यवहार करेंगे। रानी आदिवासी के पति बब्बू आदिवासी कहते है कि उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि ये दिन भी देखना होगा। पूरी जिंदगी मेहनत करके बेटे को बड़ा किया। सोचा था कि बुढ़ापे में सहारा होगा। लेकिन ऐसा दिन भी देखना पड़ेगा, ये नहीं सोचा था। लेकिन जो किस्मत में है, वह तो होकर ही रहेगा। कोई क्या कर सकता है। यहां वृद्धाश्रम में आने के बाद उम्मीद बंधी है कि अब सुकून से रहेंगे। उन्होंने बताया कि कभी -कभी बेटी बबिता मिलने आती है। लेकिन आज भी पोतो के लिए मन में टीस उठती है कि काश उनसे मिल पाते है। कई बार सोचा कि जाए पोतो से मिल आऊ, लेकिन मारपीट के डर से हिम्मत नहीं पड़ी।

Posted By: Inextlive