सचिन भी दद्दा का नाम लेंगे
इसलिए है हाशिए पर है हॉकी
अशोक ध्यानचंद सीबीएसई ईस्ट जोन हॉकी चैंपियनशिप के समापन समारोह में हिस्सा लेने सिटी पहुंचे थे। इस दौरान हॉकी जगत में अपने टैलेंट का डंका बजवा चुके इस एक्स हॉकी स्टार ने आई नेक्स्ट से ढेर सारी बातें की। देश में हॉकी की मौजूदा हालत पर ये फॉर्मर स्टार दुखी भी दिखा। उनका कहना है कि हॉकी की ये हालत उसके कर्ता-धर्ताओं की वजह से ही हुई है। प्रोफेशनल रवैये और पैसों की लालच में वे बेसिक्स को ही मजबूत करना भूल गए। नतीजतन देश में हॉकी आज हाशिए पर है।
जीत की ललक ही नहीं थी
लंदन ओलंपिक में इंडियन हॉकी टीम के प्रदर्शन पर अशोक ध्यानचंद निराश होने के साथ ही खासे नाराज भी दिखे। उनका कहना है कि जीत-हार अपनी जगह होती है। शर्मनाक ये कि इस इंडियन टीम में जीत की ललक ही नहीं दिखी। ग्राउंड पर प्लेयर्स की बॉडी लैंग्वेज ही सब कुछ बयां करने के लिए काफी थी। बकौल अशोक ध्यानचंद, ओलंपिक जैसे इवेंट में आपको पूरे जी-जान से खेलना होता है। अरबों देशवासियों की उम्मीदें आपसे जुड़ी होती हैं। प्लेयर्स की कोचिंग-ट्रेनिंग पर ही करोड़ों रुपए फूंके गए। इसके बावजूद इस तरह के प्रदर्शन को शर्मनाक ही तो कहेंगे। याद करिए इसी देश की हॉकी टीम ने कभी लगातार कई-कई सालों तक हॉकी जगत में अपना दबदबा कायम रखा था। तब ने इतनी टेक्निक थी, न फैसिलिटी, न कोचिंग। इसके बावजूद इंडिया ने ओलंपिक के आठ गोल्ड मेडल अपने नाम किए। फिर अब ऐसा क्या हो गया कि टीम सबसे निचले स्थान पर रहती है।
हॉकी वल्र्ड में कभी इंडिया का जलवा था। आज भी ओलंपिक में सबसे ज्यादा मेडल इंडिया ने हॉकी में ही जीते हैं। ऐसे में यहां हॉकी के महारथियों की कमी नहीं। इसके बावजूद कोचिंग के लिए यहां विदेशी कोच बुलाए जाते हैं। क्यों, इस सवाल पर अशोक ध्यानचंद कहते हैं, दरसअल यहां लोगों की मानसिकता ही कुछ ऐसी हो चुकी है। इन्हें गुलामी की आदत पड़ चुकी है। तभी तो मोटे पैकेज पर ये विदेशी कोच को अप्वाइंट करते हैं। इसके बावजूद रिजल्ट ये होता है कि टीम बड़े टूर्नामेंट्स के लिए क्वालिफाई ही नहीं कर पाती। टीम की परफॉर्मेंस का सबसे पहला जिम्मेदार कोच होता है। समझ नहीं आता कि एक से एक टैलेंटड प्लेयर्स होने के बावजूद क्यों विदेश से कोच हायर किए जाते हैं।
इन्हें भी तो अपनी रोजी-रोटी चलानी है
क्रिकेट के मुकाबले हॉकी की उपेक्षा पर भी अशोक ध्यानचंद काफी नाराज हैं। वे कहते हैं इसके लिए गवर्नमेंट को आगे आना होगा। कुछ ऐसा करना होगा कि यंगस्टर्स हॉकी में करियर बनाएं। पैसा नहीं होगा तो प्लेयर्स भी कतराएंगे। आखिर उन्हें भी अपनी रोजी-रोटी चलानी है। आज देखता हूं कि एक टूर्नामेंट जीतने पर क्रिकेटर्स पर करोड़ों की बरसात होती है। हॉकी प्लेयर्स लाख रुपए के लिए भी तरसते हैं। ऐसे में गवर्नमेंट के लिए जरूरी है कि वह हॉकी के लिए स्पांसर्स खोजे। ये इतना टफ भी नहीं। जब क्रिकेट, बैडमिंटन और कार रेसिंग को स्पांसर मिल सकते हैं तो हॉकी को क्यों नहीं। कहीं न कहीं प्रयासों में ही कुछ कमी है।
Former Indian Hockey star
Arjun Award 1974
Represented India in Olympic- Two times
(1972 Munich & 1976 Montreal) India got Bronze at both the occassion
World cup(4 Times)
1971 Barcelona (Bronze)
1973 amsterdam (Silver)
1975 Kualalumpur (Gold)
1978 Argentina (Sixth)
Selected two times for World XI team By- Anurag Shukla