इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के बाइलाज में संशोधन होगा. फर्क सिर्फ इतना होगा कि पुराने प्रारूप जिस पर मतदान कराकर फैसला लिया जाना था उसमें चेंज किये जाएंगे. उन्हीं अधिवक्ताओं को वोट डालने का अधिकार होगा जिनके एक साल के दौरान कम से कम पांच मुकदमे दाखिल होंगे. किसी भी एक पद पर एक व्यक्ति अधिकतम तीन साल ही रह सकेगा. इस तरह के सुझावों के साथ इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन की बाइलाज संशोधन प्रारूप समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है.

चुनाव आयोग की तरह स्थायी होगी एल्डर कमेटी, एक पद पर अधिकतम तीन बार निर्वाचन
पीपीएफ स्कीम पर सहमत नहीं हुए कमेटी के सभी सदस्य, आमसभा में होगी चर्चा, मतदान से निर्णय
प्रयागराज (ब्‍यूरो)। प्रारुप समिति की तीन बैठकें हुईं। इसमें गहन विचार विमर्श किया गया। इसके बाद समिति पांच मुद्दों पर एकमत हुईं। प्रारूप समिति ने कहा है कि चुनाव में मतदान करने के लिए साल में कम से कम पांच केस दाखिल करना अनिवार्य होगा। हर पद का चुनाव लडऩे वाले प्रत्याशी के लिए भी पद वार अलग-अलग कैटेगिरी होगी। इसके लिए भी मुकदमो की न्यूनतम संख्या प्रस्तावित कर दी गयी है। इसका आंकलन न्यूनतम तीन साल लगातार से किया जायेगा। समिति ने कल्याण योजना के लिए 70 रुपये लेने की पुष्टि कर दी है। फोटो आईडेंटीफिकेशन के नाम पर वसूले जा रहे 430 रुपये पीपीएफ स्कीम में जमा करने को लेकर सदस्यों में एकराय नहीं बन सकी। तय किया गया है कि इसका फैसला जनरल हाउस में वोटिंग से लिया जायेगा। प्रारूप समिति में पूर्व अध्यक्ष, महासचिव सहित वर्तमान अध्यक्ष महासचिव व अन्य अधिवक्ता शामिल थे।

प्रारूप समिति के सुझाव
एल्डर कमेटी, चुनाव आयोग की तरह स्थायी होगी। कार्यकारिणी का कार्यकाल समाप्त होने के बाद कमेटी चार्ज लेकर चुनाव कराएगी।
एक पद किसी को भी अधिकतम तीन बार ही धारण करने का अधिकार होगा। इसके बाद चुनाव लडऩे का अधिकार नहीं रह जाएगा।
अध्यक्ष पद का चुनाव लडऩे वाले प्रत्याशी के लिए लगातार तीन साल तक हर साल 25 केस अनिवार्य होगा
वरिष्ठ उपाध्यक्ष व महासचिव पद के लिए हर साल 20 केस अनिवार्य रहेगा
उपाध्यक्ष व संयुक्त सचिव पद के लिए हर साल 15 केस की बाध्यता रहेगी
गवर्निंग काउंसिल के लिए लगातार तीन साल तक हर साल 10 केस दाखिल करना जरूरी होगा।

हुआ था व्यापक विरोध
हाई कोर्ट बार के बाइलाज में संशोधन का प्रस्ताव सितंबर में ही आ गया था। हाई कोर्ट बार की तरफ से किये गये प्रस्ताव को लेकर जबर्दस्त विरोध हुआ था। हालांकि बार की तरफ से आपत्ति दर्ज कराने का मौका दिया गया था। इसके साथ ही वोटिंग से यह तय करने का फैसला लिया गया था कि कितने सदस्य इसके विरोध में हैं और कितने समर्थन में? लेकिन, वोटिंग शुरू होने के दिन ही बवाल हो गया। बार के पदाधिकारियों पर आरोप लग गया। भारी विरोध के चलते वोटिंग टाल दी गयी थी।

बनायी गयी थी कमेटी
बार एसोसिशन के बाइलॉज में संशोधन का व्यापक पैमाने पर विरोध हुआ तो इससे नाराज होकर बार के अध्यक्ष ने पद से इस्तीफा देने तक की घोषणा कर दी थी। बाद में बार के पदाधिकारियों ने उन्हें ऐसा न करने के लिए मना लिया था। इसके बाद हुई मिटिंग में तय किया गया कि संशोधन प्रस्ताव को नये सिरे से तैयार करने और पुराने प्रारूप पर विमर्श के लिए प्रारूप समिति का गठन किया जाय। इस कमेटी में पूर्व अध्यक्ष, महासचिव के अलावा वर्तमान अध्यक्ष, महासचिव व अन्य वरिष्ठ अधिवक्ताओं को स्थान दिया गया था। तथ्यों को परखने के बाद कमेटी ने अपनी रिपोर्ट पेश की है।

पीपीएफ स्कीम को लागू करने पर एक राय नहीं बन पायी है। इस मद में इकट्ठा हो रहे 430 रुपये का क्या किया जायेगा? इस पर विमर्श के लिए शीघ्र ही आमसभा बुलायी जाएगी। मतदान कराकर तय किया जायेगा कि इस योजना का क्या करना है। जो रिजल्ट आयेगा उसे इम्प्लीमेंट कर दिया जायेगा।
राधाकांत ओझा अध्यक्ष, हाई कोर्ट बार एसोसिएशन

Posted By: Inextlive