नि:स्वार्थ अज्ञात व गरीबों की बॉडी को पहुंचा रहे घाट और कब्रिस्तान

PRAYAGRAJ: कोरोना काल की मजबूरी को कमाई का जरिया बना चुके एम्बुलेंस चालकों के चेहरे पर मो। रफीक उर्फ फैजुल भाई तमाचा हैं। वह बगैर किसी स्वार्थ के लोगों की बॉडी घाट या कब्रिस्तान तक पहुंचाने में जुटे हैं। फिर वह बॉडी ज्ञात हो या अज्ञात उनके लिए मायने नहीं रखता। मायने रखता है तो बस एक सूचना। अपनी एम्बुलेंस में अपना तेल खर्च कर पहुंचने में उन्हें देर नहीं लगती। जानकारी आने पर वह भी किसी से रुपयों की बात नहीं करते। स्वेच्छा से तेल का पैसा दे दिया तो भी ठीक, नहीं दिया तो भी ठीक। यह काम वे वर्षो से करते चले आ रहे हैं। मगर, चर्चा में वह इस कोरोना काल में उस वक्त आए, जब कुछ अन्य एम्बुलेंस वाले इंसानियत पर बदनुमा दाग लगाने पर उतर आए हैं।

आज तक किसी से नहीं मांगे रुपए

वह सिर्फ नि:स्वार्थ बॉडी को घाट तक ही नहीं पहुंचाते, जिनके कोई नहीं होता वे उनके अंतिम संस्कार का खर्च तक वहन करते हैं। आज से करीब 14 साल पहले वह टीन बेचने का काम करते थे। इस कमाई से वे अपनी चार बहनें हसीना, बीबी, फरीदा और सीना की शादी किए। इन शादियों में उनके बचत के सारे रुपये खर्च हो गए। बहनों की शादी के बाद उनसे दो भाई अलग हो गए। पिता नसीर अहमद की मौत के बाद मां मदीना बेगम फैजुल के साथ रहने लगीं। अचानक उनके दिमाग में खयाल आया कि जिनका कोई नहीं उनकी बॉडी का अंतिम संस्कार कौन करता होगा? गरीबों के पास तो इतने रुपये भी नहीं होते कि वह गाड़ी कर सकें। बस यही विचार उनके जीवन के कदमों की दिशा बदल कर रख दिया। वह पास में रखे कुछ रुपयों वह एक ट्राली रिक्शा खरीद लिए। इस रिक्शे से वे अज्ञात व गरीबों की बॉडी को नि:शुल्क घाट व कब्रिस्तान तक पहुंचाने का काम करने लगे। इस रिक्शे से वह सब की मदद नहीं कर पाते थे। जबकि उन्हें लोग बुलाते खूब थे। लोगों की जरूरत को देखते हुए वह नीलामी की 80 हजार रुपये में एक फोर व्हीलर ली। बताते हैं कि 32 हजार रुपये देकर शेख बाबू ने चारों टायर लगवाए थे। अब साठ हजार रुपये की और जरूरत थी। काफी परेशान थे। इस बीच लायंस क्लब ने उनकी यह जरूरत पूरी कर दी और एम्बुलेंस तैयार हो गई। कहते हैं कि तब से आज तक उनका सुबह से शाम तक बस यही काम है। एम्बुलेंस में ड्राइवर रखे हैं, पर चलते खुद साथ हैं।

जो दे उसका भी भला, जो न दे उसका भी भला

अतरसुइया वार्ड 73 में मां के साथ रहने वाले मो। रफीक फैजुल समाज सेवी के नाम से जाने जाते हैं।

उनके पास कॉल किसी की भी वह बॉडी उठाने पहुंच जाते हैं। बॉडी पहुंचाने के बाद वह बगैर कुछ मांग व बोले वापस लौट लेते हैं।

कुछ सक्षम लोग तेल व ड्राइवर का खर्च दे देते हैं। फैजुल का मानना है कि मुसीबत की इस घड़ी में रुपयों की बात करना सबसे बड़ा गुनाह है।

जिसे अल्लाह कभी माफ नहीं करते। ऐसे वक्त में उस परिवार की मदद ही सबसे बड़ा नेक काम है।

यहां फैजुल के पिता परिवार के साथ आए थे। उनका मूल घर माण्डा बहराइच सलारगंज में है।

कहते हैं रानीमण्डी में उनका ननिहाल है। फैजुल का जन्म भी यहीं पर हुआ था।

Posted By: Inextlive