आपसी सौहार्द की मजबूत कड़ी है मेला
प्रयागराज (ब्यूरो)। क्रिसमस पर्व सोमवार को परंपरागत तरीके से सेलीब्रेट किया गया। चर्चों में प्रार्थना सभा हुई और फिर शुरू हो गया घरों में दावतों का दौर। सेलीब्रेशन में हर धर्म व समुदाय के लोग शामिल हुए। सिविल लाइंस पत्थर गिरजा घर और सेंट जोसेफ ग्राउंड पर भव्य मेले का आयोजन हुआ। काबिले तारीख बात यह रही कि इस मेले में हर धर्म व समुदाय के लोग पहुंचे। मेले में पहुंचे लोगों से 'दैनिक जागरण आईनेक्स्टÓ ने बात की। वह जो उत्तर दिए उसे जानकर आप का भी सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा। हर किसी ने यही कहा 'मेला तो मेला होता है
सवाल मेला जैसे आयोजन से क्या समझते हैं?
उत्तर- मेला सिर्फ खरीदारी या घूमने के लिए नहीं होता। एक दूसरे से मिलने मिलाने व उनकी भावनाओं के सम्मान का प्रतीक भी होता है। ऐसे आयोजनों से अनेकता में एकता को बल मिलता है।
सवाल- क्या मेला के पीछे कोई उद्देश्य भी होता है?
उत्तर- जी बिल्कुल, मेला या पर्व किसी भी धर्म के हों, उनका उद्देश्य समाज को एक धागे में पिरोने का ही होता है। मानवीय संवेदनाओं के साथ एक दूसरे के सुख-दुख में शामिल होने की सीख तो मिलती ही है। परंपराएं भी जीवित रहती है।
सवाल- मेले में सर्व समाज की मौजूदगी को आप क्या मानते हैं?
उत्तर- मेला सर्व समाज के लिए होता ही है। जिस मेले में किसी एक धर्म या समुदाय की मौजूदगी हो वह मेला नहीं रह जाता। मेला हमारी भारतीय संस्कृति व कल्चर के प्रतीक तो होते ही हैं, सर्व समाज की एकता को भी बनाए रखने का काम करते हैं।
सवाल- क्रिसमस पर्व से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- देखिए, यह देश ही पर्वों और मान्यताओं का है। यहां आयोजित होने वाले पर्व चाहे क्रिसमस डे हो या दशहरा अथवा ईद हमें मिलकर एकता बनाए रखते हुए इंसानियत के रास्ते पर चलने की सीख देते हैं। एक दूसरे के सुख दुख में शामिल होने की भी सीख ऐसे पर्वों से समाज के हर व्यक्ति को मिलती है। यही सीख हमें क्रिसमस पर्व से भी मिलती है।
आशीष यादव, नीवां
पर्वों पर मेला वर्षों पुरानी प्रथा रही है। वह ईद का मेला हो या दहशरा अथवा क्रिसमस का। सारे पर्व व मेला हमें एकता व एजुटता की सीख देते हैं। अपने देश की यही तो खासियत है, हम हर धर्म के पर्व पर आयोजित कार्यक्रमों को शिद्दत से मिलकर मनाते हैं।
मनीष जायसवाल, न्यू कैंट
आनन्द गौतम, अलोपीबाग मेला की परंपराएं अपने देश में सदियों पुरानी हैं। देश गुलाम था तब भी मेले आयोजित होते रहे हैं। यह देश ही परंपराओं और रीतियों से जुड़ा है। मेला किसी जाति या धर्म का नहीं, सब का होता है सभी को इसका उद्देश्य समझना चाहिए।
निशा, अलोपीबाग क्रिसमस पर्व व आयोजित इस मेले में हर धर्म के लोग दिखाई दे रहे हैं। यही दृश्य दशहरा व ईद पर्व पर भी आयोजित होने वाले मेले का होता है। इससे पता चलता है कि हमारा धर्म कोई भी, मकसद एक ही इंसानियत व एकता को बनाए रखने का है।
सविता, अशोक नगर
मेला के उद्देश्य काफी व्यापक होते हैं। इसका किसी धर्म या जाति या पर्व से मतलब नहीं होता। ऐसे आयोजनों में शामिल होने से हमारी संस्कृति तो संरक्षित होती ही है, ऐसे लोग भी मेले में मिल जाते हैं जिनसे वर्षो से मुलाकातें नहीं हुई होतीं। मेला सिर्फ खाने व खरीदारी के लिए ही नहीं होता।
शकुंतला द्विवेदी, मेजा