बेली अस्पताल में हर किसी को नहीं मिलती बंद टॉयलेट की चाबी

दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट के रियलिटी चेक में चाबी का खेल आया सामने

सरकारी अस्पताल में टॉयलेट करना किसी संघर्ष से कम नहीं है। अगर आप संघर्ष नहीं कर सकते हैं तो आपको गंदे व सार्वजिनक टॉयलेट का इस्तेमाल करना पड़ सकता है। यह सुनकर आपको अटपटा जरूर लग रहा होगा। लेकिन यह हकीकत है। दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट द्वारा चलाये जा रहे अभियान च्टॉयलेट एक संघर्ष कथाच् में शुक्रवार को बेली अस्पताल में बने टॉयलेट का रियलिटी चेक किया गया। यहां बिना मरीज का बेड नंबर बताये तीमारदारों को बंद टॉयलेट की चाबी नहीं दी जाती है। मरीज का बेड नंबर बताने के बाद ही चाबी मिलती है।

बेड नंबर क्या है?

शुक्रवार को दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट रिपोर्टर ने बेली अस्पताल के वार्ड समीप बने तमाम टॉयलेट का रियलिटी चेक किया। रियलिटी चेक में सामने आया कि ज्यादातर टॉयलेट पर ताले लटके हुये थे। पूछने पर पता चला कि बाहर जाकर कहीं कर लें। यहां नहीं बना है। दुबारा पूछा गया। यह टॉयलेट ही तो है। एक स्टॉफ ने चिल्लाते हुये बोला। बेड नंबर क्या है ? रिपोर्टर ने कहा बेड नंबर बोले तो। स्टॉफ मरीज का बेड नंबर। मरीज नहीं है। डाक्टर से सिर्फ मिलने आया था। इसपर जवाब मिला आप बाहर वाले टॉयलेट को यूज करें। यहां की चाबी नहीं मिल सकती है। बाहर एक टॉयलेट बना था। जिसको लोग यूज कर रहे थे। वहां टॉयलेट के साथ नहाने की व्यवस्था थी। लेकिन वहां से बदबू आ रही थी। पूरा टॉयलेट गंदा पड़ा था। दीवारों पर काई लगी थी। वहीं दूसरे वार्ड पर जाने पर उसी तरह से टॉयलेट पर ताला लटकता था। वहां भी पूछा गया चाबी चाहिये क्या ? रिपोर्टर ने कहां हां चाबी चाहिये टॉयलेट जाना है। बेड नंबर बताए। रिपोर्टर ने एक मरीज का बेड नंबर व नाम नोट करके लाया था। उसने नाम व बेड नंबर बताया। तब जाकर टॉयलेट का दरवाजा खोला गया।

गंदा न हो इसलिए करें ताला सिस्टम

दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट रिपोर्टर द्वारा वहां मौजूद एक स्टॉफ से चाबी के 'खेल' के बारे में पूछा। उसने बताया कि अगर टॉयलेट का दरवाजा खुला रहेगा तो गंदा जल्दी हो जाता है। जो दिखाने भी आता है। वे लोग भी कैंपस से बाहर बने सार्वजनिक टॉयलेट का यूज करते हैं। इससे टॉयलेट की साफ-सफाई काफी देर तक चल जाता है। नहीं तो हर एक घंटे में साफ कराना पड़ जाए। सफाई के लिए कर्मचारी सिर्फ सुबह आते हैं। शाम को कभी-कभी भूले भटके आ जाते हैं

टॉयलेट जाना बेली अस्पातल में संघर्ष से कम नहीं है। बेड नंबर न बताने पर बाहर का टॉयलेट यूज करने को कहा गया। बाहर बना टॉयलेट बिल्कुल गंदा है। मजबूरी में बदबू वाले टॉयलेट को यूज करना पड़ा।

विनय मिश्र

टॉयलेट जाने पर चाबी काफी देर तक मांगता रहा। लेकिन नहीं मिला। जब बेड नंबर बताया तब जाकर चाबी दी गई। टॉयलेट तो साफ-सुथरा है। मगर बेड नंबर वाला 'खेल' सही नहीं है। किसी का प्रेशर बना हो तो खेल ही हो जाएगा।

संत लाल, मरीज का रिश्तेदार

यहां मरीज का बेड नंबर बताने पर चाबी मिलती है। जरूर नहीं है कि हर किसी को बेड नंबर मालूम हो। सिर्फ परेशान किया जा रहा है। टॉयलेट किसी को कभी भी लग सकती है। महिलाओं के बारे में विशेष रूप से सोचना चाहिये।

दीपक कुमार, मरीज का रिश्तेदार

टॉयलेट का ताला बंद मिलने पर गंदे टॉयलेट का यूज करना पड़ा। इस गंदे टॉयलेट का यूज करने से बीमारी हो सकती है। साफ टॉयलेट पर तो ताला लटका है। बेड नंबर पूछा जा रहा है।

सावित्री देवी, अस्पातल में आई महिला

Posted By: Inextlive