लगातार सामने आते हैं ऐसे मामले दस फीसदी को भी नहीं मिली आंखें


प्रयागराज ब्यूरो । मरने के बाद यह शरीर किसी के काम आ जाए तो इससे बेहतर क्या हो सकता है। खासकर आपकी दोनों आंखें। आपके मरने के बाद यह आंखें फिर से किसी नेत्रहीन के जरिए इस दुनिया को देख सकेंगी। इसलिए नेत्रदान करना जरूरी है। क्योंकि ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है जिन्हें कार्निया प्रत्यारोपण की जरूरत है। इनमें बच्चे, बुजुर्ग और युवा सभी शामिल हैं। डॉक्टर्स का कहना है कि जरूरत के अनुसार कार्निया नहीं मिलने से हर साल गिनती के लोगों की आंखों को ही रोशनी मिल पाती है। पांच साल में हुए गिनती के प्रत्यारोपण
एमडीआई हॉस्पिटल में इस समय आठ सौ लोगों ने अपना रजिस्ट्रेशन कराया है। यह वह लोग हैं जिन्हे कार्निया की जरूरत है। प्रत्यारोपण के जरिए उनकी आंखों की रोशनी लौट सकती है। यह संख्या दिनों दिन बढ़ रही है। लेकिन इसका हल उनके हाथ में है, जिनकी आंखें मरने के बाद परिजन दान कर देते हैं। लेकिन सोसायटी में ऐसे लोगों की संख्या गिनती की है। अक्सर देखा जाता है कि लोग जीवित रहते नेत्रदान की शपथ लेते हैं लेकिन मरने के बाद उनके परिजन इसकी जानकारी हॉस्पिटल के स्टाफ को नही देते हैं। कोरोना काल के बाद घट गई संख्या


कोरोना काल के पहले कार्निया प्रत्यारोपण बड़ी संख्या में हुए था। लेकिन इसके बाद यह संख्या तेजी से नीचे आई है। कारण है कि लोग नेत्रदान में इंट्रेस्ट नही लेते हैं। पिछले दो साल में एक हजार लोगों ने नेत्रदान की शपथ ली लेकिन 80 लोगों का ही कार्निया प्रत्यारोपण कर रोशनी प्रदान की जा सकी। अकेजनली लोग जोश में आकर शपथ ले लेते हैं लेकिन भविष्य में इसे भूल जाते हैं या परिजनों को इसकी जानकारी नही देते हैं। नियमानुसार मृत्यु के कुछ ही घंटों के भीतर कार्निया दान किया जाता है, इसके बाद वह खराब होने लगता है। फैक्ट फाइलकब कितनों को मिली आंखेंवर्ष कार्निया प्रत्यारोपण2018-19 822019-20 592020-21 102021-22 382022-23 42कब कितने नेत्रहीनों ने कराया प्रत्यारोपण के लिए रजिस्ट्रेशनवर्ष प्रत्यारोपण रजिस्ट्रेशन

2021-22 4252022-23 359इन्होंने ली नेत्रदान की शपथवर्ष शपथकर्ता2021-22 5202021-22 460इसलिए एक ही आंख को मिलती है रोशनीलोगों मे नेत्रदान को लेकर जागरुकता नही है और इसके चलते कम लोगों का ही कार्निया प्रत्यारोपण होता है। इतना ही नही, एक मृत शरीर से प्राप्त दोनों कार्निया से दो लोगों का प्रत्यारोपण किया जाता है। यानी एक व्यक्ति के एक ही आंख में रोशनी आती है। दूसरी आंख नेत्रहीन ही रह जाती है। कारण साफ है कि प्रत्यारोपण के लिए लोगों की लाइन लंबी है और नेत्रदान की संख्या इसके मुकाबले बहुत कम है।
अभी लोगों में जागरुकता की कमी है। अगर लोग आगे आकर नेत्रदान करें तो यह समस्या दूर हो सकती है। खासकर परिजनों का रोल काफी अहम है। उन्हे मृतक की इच्छा का पालन करना चाहिए। एक व्यक्ति के नेत्रदान से दो नेत्रहीनों के जीवन में उजाला आता है। प्रो। एसपी सिंह, डायरेक्टर, एमडीआई हॉस्पिटल प्रयागराज

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