नहीं जाना चाहते यूक्रेन, देश में ही पढ़ाई कर बनना चाहते हैं डॉक्टर
प्रयागराज (ब्यूरो)।
सवालों के मिले जवाब दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट द्वारा ट्विटर हैंडल पर ट्वीट कर तीन सवाल किए गए्र-वर्तमान परिस्थितियों के बाद भी पढाई के लिए यूक्रेन जाना पसंद करेंगे?
क्च-यूनिवर्सिटी आनलाइन पढाई और एग्जाम का ऑप्शन देती है तो क्या करेंगे?
ष्ट-यूक्रेन वापसी का सीन नहीं बना तो इंडिया में पढाई का क्या विकल्प?
1- शिवांगी गुप्ता ने कमेंट करके बताया कि ऑप्शन ए सही नहीं लगता है। क्योंकि इंडिया ने यूक्रेन को सपोर्ट नहीं किया है। इसलिए यूक्रेनियन ने बच्चों को बॉर्डर पर ही परेशान किया है। अगर अब वापस जाएंगे तो वे लोग बहुत परेशान करेंगे।
2- करंज गोसाई का कहना है कि ए ऑप्शन नहीं चाहिए।
3- पुडजा नाम की स्टूडेट का कहना है कि 'एÓ यहां तक कि पाठयक्रम समान है लेकिन विभिन्न वर्षों में विषयों के अध्ययन का पैटर्न यूक्रेन के समान नहीं है।
4- आंचल कहना है कि थ्योरी क्लास ऑनलाइन तो सही है मगर प्रैक्टिकल क्लास के लिए सरकार कोई विकल्प निकाले। ताकि पढाई हो सके। सबसे अच्छी बात तो है कि सरकार को इंडिया में ही कोई इंतजाम कर देना चाहिए। जिससे बच्चों को बाहर न जाना पड़ा।
5- प्रिंस का कहना है कि हालात ठीक होने पर जाएंगी। क्योंकि इंडिया में कोई विकल्प नहीं है।
6- मोनिका का कहना है कि ऑनलाइन से ज्यादा ऑफलाइन प्रैक्टिकल क्लास महत्वपूर्ण होता है। अगर संभव नहीं है तो इंडियन गर्वमेंट यहीं कोई अरेंज करें। ताकि बच्चों को मजबूरी में बाहर न जाना पड़े।
1- साक्षी का कहना है कि केंद्र सरकार मेडिकल कॉलेजों में उनकी पढ़ाई की व्यवस्था कर दें तो वे किसी भी सूरत में यूक्रेन जाना नहीं चाहेंगे।
2- श्रेयष कहना है कि वे देश के ही मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई करके देश में ही अपनी सेवाएं देने का मूड बना रहे हैं। बस सरकार थोड़ा ध्यान दें।
3- प्राची का कहना है कि रोमानिया, हंगरी, पोलैंड जैसे देशों ने अपने यहां मेडिकल पढ़ाई की पेशकश की। इंडिया को भी कुछ सोचना व करना चाहिए। कोई ऐसी आपदा नीति के तहत राहत दें। जिससे उनके आगे की पढ़ाई के लिए रास्ता खुल जाए। अधिकांश पाठ्य सामग्री छूट गए
दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट से बातचीत में छात्रों ने बताया कि उनका सारा सामान और किताबें वहीं पर है। अब डर है कि इस जंग में तहस-नहस हो जाएंगी। वे अपने साथ लैपटॉप के साथ कुछ सामान ही ला सके हैं जबकि बाकी सामान यूक्रेन में ही छूट गया है। यह ही नहीं ऑपरेशन गंगा के तहत यूक्रेन से सुरक्षित वापस लौटे सभी छात्र छात्राओं को युद्ध का खौफ अब भी सता रहा है। इतना ही नहीं यूक्रेन से लौटे सभी छात्र परिजनों के साथ ही रिश्तेदारों और दोस्तों को उन तमाम दुश्वारियों को साझा कर रहे हैं जो उन्होंने यूक्रेन से निकलते समय रोमानिया और पोलैंड जैसे देशों में पहुंचने तक झेली।
सपने को पूरा करने के लिए लिया है कर्जयूक्रेन में फंसे और लौटेने वाले ज्यादातर छात्र-छात्राएं मध्यवर्गीय परिवार से हैं। अपने लाल को डॉक्टर बनाने के सपने को साकार करने के लिए किसी ने जमीन बेच दी तो किसी ने कर्ज लेकर खर्च को पूरा किया। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध ने अरमानों पर पानी फेर दिया। वजह अब तक पढ़ाई पर किया गया खर्च लगभग डूब गया है तो दूसरी ओर पढ़ाई अधर में लटक गई है। कई छात्र व अभिभावक कहते हैं कि नीट में अच्छे नंबर आने के बाद भी सरकारी कॉलेज में सीमित सीट होने से दाखिला नहीं हो पाया। ऐसे में निजी कॉलेज ही विकल्प बचे। निजी कॉलेजों में महंगी फीस से बचने के लिए ही यूक्रेन का रूख किया।