कचरे वाली होलिका बिगाड़ न दे आबोहवा
प्रयागराज (ब्यूरो)। परंपरानुसार होली के दिन कई लोग होलिका में लकडिय़ों के साथ-साथ कई अन्य चीजें भी डाल देते हैं, जिससे प्रदूषण फैलता है। लकडिय़ां भी अलग-अलग तरह की होती हैं। जिनका धुआं भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इस अभियान के दूसरे दिन शहर के जोन टू में आधा दर्जन के करीब होलिका दहन के लिए सूखी व हरी लकड़ी चौराहा और गली में रखी मिलीं। इसमें जोन टू मुट्ठीगंज, रसूलपुर ऑफिस, मिन्हाजपुर का रेलवे स्टेशन गेट नंबर एक के सामने गुलाब मेन्सन आता है। विशेषज्ञों का भी मानना है कि प्लास्टिक की वस्तुएं और टायर आदि ठोस कचरे को जलाना पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए बेहद घातक है। इसके कारण हवा में हानिकारक पार्टीकुलेट मैटर (पीएम टेन) की मात्रा बढ़ जाती है। हवा में मौजूद ऐसे कण सांस के जरिए इंसानों के बॉडी में पहुंचकर दिक्कत पैदा करते हैं।
ऐसे ही नही बनी परंपराएं
गौरतलब है कि मंदिर से लेकर घरों में होने वाले यज्ञ हवन में भी गाय के गोबर वाले कंडों का इस्तेमाल होता है। इसका उद्देश्य वातावरण के शुद्धिकरण से है। कंडों के जलने पर ऑक्सीजन का उत्सर्जन होता है, जिससे वातावरण दूषित नहीं होता है। होलिका दहन में कंडों को जलाने की परंपरा धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है। ऐसे में होलिका में गोबर के कंडे यानी उपले, सूखी लकडिय़ों के उपयोग को बढ़ाना जरूरी है।
अगर हम अपने शहर में होलिका दहन पर नजर डालें तो हर साल 763 स्थानों पर होलिका दहन होता है। हर गली-मोहल्ले में होली जलाई जाती है और सैंकड़ों टन लकडिय़ों का इस्तेमाल किया जाता है। एक होली में औसतन ढाई कुंतल लकड़ी जलती है। यदि हम एक शहर में जलने वाली होलिका दहनों की संख्या से हिसाब लगाएं तो लगभग चार लाख किलो लकड़ी हर साल होली पर जला दी जाती हैं। जबकि पुराने जमाने में घर-घर से लकड़ी लेकर होलिका जलाने की प्रथा थी। हमें परंपरागत होलिका जलानी चाहिए। हर्बल में गोबर के उपलों का प्रयोग होना चाहिए, उसमें हवन सामग्री आदि भी डालें। अब लोग लड़कियों के साथ अपने घरों का कचरा धीरे से अंधेरे की आड़ में डाल आते है। यह गलत बात है। ऐसा करने व करते देख किसी को भी टोके व बोलकर रोके।
ललिता शुक्ला
होली हमारी धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा त्योहार है और होलिका दहन एक पवित्र कार्य है। इसे प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए गोबर से बीन कंप्रेस्ड वुड का प्रयोग करके नाइट्रोजन-डॉई-ऑक्साइड, सल्फर-डाई-ऑक्साइड व कार्बन-डाई-ऑक्साइड जैसी विषक्त गैसों की सांद्रता को कम किया जा सकता है।
आकांक्षा श्रीवास्तव
रिंकू चौराहों पर होलिका दहन के लिए एकत्रित की गई लकडिय़ों में कोई कचरा फेंक आए है। ऐसा करने से लोगों को बचना चाहिए। लोग लकड़ी की जगह पर हरी पत्तियों को न काट कर फेंके। अब तो लोग विभिन्न चीजें डालते थे। जिससे कार्बन उत्सर्जन होता है उससे एलर्जी, डस्ट, राख, धूंए से आंख नाक में एलर्जी बढ़ जाती है।
डा। अरूण गुप्ता पर्यावरण का वाकई ही बहुत नुकसान होता है, पहले से ही वाहनों के चलते पर्यावरण की स्थिति खराब हो रही है, दूसरा हम अधिक मात्रा में छोटी छोटी जगह लकडिय़ों को जलाते है। जबकि ये बड़े आयोजनों के रुप में एक जगह पर एकत्रित होकर करना चाहिए इससे कम लकड़ी जलेगी पर्यावरण पर कम असर पड़ेगा।
अंशुमान सिंह
इस संबंध में क्षेत्र के पार्षद के साथ एक मीटिंग हुई है। सबको मैसेज भी किया गया है। अपने-अपने क्षेत्र में जोनल अधिकारियों के साथ भ्रमण कर चेक करें। आखिर कही कोई कचरे का ढेर तो नहीं एकत्रित किया है। अगर कोई किया है तो उसे जलाने से पूर्ण रूप से रोका जाए। पब्लिक भी थोड़ा जागरूक हो।
उत्तम कुमार वर्मा, पर्यावरण अभियंता नगर निगम प्रयागराज
14 वार्ड है जोन टू में
21 स्थानों पर अभी तक होलिका दहन के लिए स्थापित की गई
32 से अधिक कर्मचारी लगे है इन वार्ड में कचरा उठाने के लिए सफाई कर्मचारी
09 वार्ड में डोर टू डोर कचरा उठाने के लिए हाल ही में हुआ था टेंडर
05 वार्ड में अब भी पुरानी एजेंसी उठा रही है कचरा