मत जाओ... मत जाओ... हे राम अयोध्या छोड़ के...
प्रयागराज (ब्यूरो)।श्री महंत बाबा हाथी राम पजावा रामलीला कमेटी के तत्वावधान में शनिवार को रामवनवास का मंचन हुआ। लीला देखकर पूरी जनता भावविभोर हो उठी। मत जाओ मत जाओ हे राम अयोध्या छोड़ के तुम मत जाओ के गीत पर मैदान पर उपस्थित जनता की आंखों से आंसू बहने लगे, रानियों का विलाप तो देखते ही बन रहा था। उधर भरत द्वारा श्री राम को वन से वापस लाने की लीला देखकर लोग भावुक हो उठे। इसके पूर्व जस्टिस शेखर यादव इलाहाबाद हाईकोर्ट ने श्री राम लक्ष्मण, माता जानकी की आरती उतारी।
ऋषि मिलन व जयंत उद्धार की लीला
श्री दारागंज रामलीला कमेटी की ओर से ऋषि मिलन व जयंत उद्धार की लीला हुई। कमेटी संयोजक सियाराम शास्त्री के निर्देशन में ऋषि मिलन व जयंत उद्धार की लीला हुई। मंचन में भगवान श्री राम चित्रकूट से आगे बढ़ते हैं। वह रास्ते में ऋषि के आश्रम में जाते हैं और ऋषिगणों से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इसके बाद वहीं गुफा में जयंत राक्षस का वध करते हैं और उसका उद्धार करते हैं। कल शूर्पणखा की नाकट कटेगी और खर दूषण के वध का मंचन होगा।
खुशी में बजे ढोल व नगाड़े
श्री कटरा रामलीला के तत्वावधान में चल रही ध्वनि व प्रकाश के माध्यम से संपूर्ण रामायण की राम कथा के चौथे दिन आरती पूजन वरिष्ठ पार्षद आनंद अग्रवाल, आनंद घिल्डियाल, अजय यादव, अजय यादव व सुधीर गुप्ता, गोपाल जायसवाल ने किया। शनिवार को विवाह का मंचन हुआ। अयोध्या नरेश अपने दो पुत्रों के साथ विभिन्न प्रदेशों के राजा महाराजाओं के साथ बारात लेकर राजा जनक के महल में पहुंच गए। इस दौरान चारों ओर बारात आने की खुशी में ढोल नगाड़े बजाए गए। राजा दशरथ के सामन प्रस्ताव करते हुए कहा कि महाराज हमारे अन्य तीन पुत्रियों का विवाह लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न से कर लें। मुनि विश्वमित्र व मुनि वशिष्ठ से मंत्रणा करने के बाद अपनी स्वीकृति देते हैं। चारों भाइयों का विवाह संपन्न होकर विदाई हो जाती है। अंत में बारात अयोध्या नगरी में आती है और प्रजा में सभी को उपहार प्रदान किया जाता है। इस दौरान गाना व नृत्य होता है।
राम सीय सिर सेंधुर देहीं
श्री पथरचट्टी की रामलीला के तीसरे दिन विवाह का मंचन हुआ। अयोध्या से बारात जनकपुर पहुंचती है। बारात में राज परविार, श्रेष्ठ जन, गुरु वशिष्ठ समेत कई विद्वतजन शामिल रहे। इस दौरान राम और सीता की अलौकिक छवि हर किसी को आकर्षित कर रही थी। समस्त लोकरीति के अनुसार पावन मंत्रों के बीच चारों भाइयों की भांवर, सीता के साथ राम, मांडवी के साथ भरत, उर्मिला के साथ लक्ष्मण और श्रुतिकीर्ति के साथ शत्रुघ्न का विवाह हुआ।
सार्वजनिक रामलीला समिति काटन मिल मैदान नैनी पर चल रहे रामलीला में शनिवार को मंथरा महारानी कैकेई को राम को बनवास एवं भारत को राज्य देने के लिए महाराज दशरथ को वचनबद्ध करने की बात कहती है । इस पर महारानी कैकेई उसे बहुत डांटती हैं । डांटे जाने पर मंथरा कहती है। हमहुँ कहबि अब ठकुर सोहाती। नाङ्क्षह त मौन रहब दिनु राती अंत में महारानी कैकेई दासी मंथरा की बात मान लेती हैं और कोप-भवन में चली जाती हैं। महाराज दशरथ महारानी कैकेई के पास आते हैं और उनके रुठने का कारण पूछते हैं। महारानी कैकेई उनसे राम को 14 वर्ष का वनवास एवं भरत का राज्याभिषेक करने का वर मांगती हैं। इतना सुनते ही राजा दशरथ विकल होकर पृथ्वी पर गिर पड़ते हैं और बड़े ही कातर स्वर में कहते हैं। मोरें भरतु रामु दुइ आंखी। सत्य कहउँ करि संकरु साखी।